एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से पीएम मोदी भी डरे, वजह क्या है?
प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से विनती करते हुए कहा कि वो अपनी मनमर्ज़ी से एंटीबायोटिक न खाएं. कोई भी दवा, खासकर एंटीबायोटिक तभी लें, जब डॉक्टर कहे.

ज़रा-सी तबियत ख़राब हुई नहीं कि तुरंत एंटीबायोटिक खरीदकर खा ली. न डॉक्टर को दिखाया. न ये जानने की कोशिश की, कि आखिर तबियत ख़राब हुई क्यों. वायरस, बैक्टीरिया, पैरासाइट या फंगस, इंफेक्शन का ज़िम्मेदार था कौन?
अगर आप भी हर बात पर एंटीबायोटिक्स खा लेते हैं. तो आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये बात ज़रूर सुननी चाहिए, जो उन्होंने 28 दिसंबर 2025 को मन की बात में कही. पीएम ने कहा,
ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. इसमें बताया गया है कि निमोनिया और UTI जैसी कई बीमारियों के खिलाफ़ एंटीबायोटिक दवाएं कमज़ोर साबित हो रही हैं. हम सभी के लिए ये बहुत ही चिंताजनक है. रिपोर्ट के मुताबिक, इसका एक बड़ा कारण लोगों द्वारा बिना सोचे-समझे एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन है. ये ऐसी दवाएं नहीं हैं, जिन्हें यूं ही ले लिया जाए. इनका इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए. आजकल लोग ये मानने लगे हैं कि बस एक गोली ले लो. हर तकलीफ़ दूर हो जाएगी. यही वजह है कि बीमारियां और इंफेक्शन, एंटीबायोटिक दवाओं पर भारी पड़ रही हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से विनती करते हुए कहा कि वो अपनी मनमर्ज़ी से एंटीबायोटिक न खाएं. कोई भी दवा, खासकर एंटीबायोटिक तभी लें, जब डॉक्टर कहे.
जब कोई इंसान ज़्यादा और हर कुछ समय में एंटीबायोटिक दवाएं खाता है, तो बैक्टीरिया इन दवाओं के खिलाफ अपनी खुद की इम्यूनिटी डेवलप कर लेते हैं. इससे ये दवाएं शरीर पर असर नहीं करतीं. नतीजा? इंफेक्शन ठीक नहीं होता. बीमारी बढ़ती जाती है. इसे ही एंटीबायोटिक रज़िस्टेंट कहते हैं.
आपको याद होगा, 2019-20 में जब कोविड के मामले बढ़ना शुरू हुए थे. तब कई लोगों ने एज़िथ्रोमाइसिन नाम की दवा खाई थी'. ये एक एंटीबायोटिक है. यानी बैक्टीरिया से लड़ने की दवा. जबकि कोविड-19 एक वायरल बीमारी है. यानी वायरस से फैलने वाली बीमारी. ज़्यादा एंटीबायोटिक्स लेने से लोगों में एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस का ख़तरा बढ़ गया था.

28 सितंबर 2024 को द लैंसेट जर्नल में एक स्टडी छपी. इसके मुताबिक, 2021 में दुनियाभर में 47 लाख से ज़्यादा मौतों के पीछे एक बड़ा कारण एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस था. वहीं साढ़े 11 लाख के करीब मौतें सीधे तौर पर एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस की वजह से हुई थीं. यानी लोगों को बैक्टीरियल इंफेक्शन हुआ. लेकिन एंटीबायोटिक्स लेने के बाद भी, दवाओं ने असर नहीं किया.
प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च स्कॉलर और एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस पर लैंसेट में छपी सीरीज़ के को-ऑथर हैं प्रोफेसर रामानन लक्ष्मीनारायण. उनके मुताबिक, साल 2019 में भारत में 10 लाख 43 हज़ार से ज़्यादा मौतें एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस के कारण हुई थीं.
एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस यानी जब बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और पैरासाइट उन पर असर करने वाली दवाओं के खिलाफ अपनी खुद की इम्यूनिटी पैदा कर लेते हैं. नतीजा? एंटीवायरल और एंटीबायोटिक जैसी दवाएं बसर हो जाती हैं.
आपको पता है? World Health Organization यानी WHO की एक रिपोर्ट में भी ये सामने आया कि पूरी दुनिया में एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं. ये रिपोर्ट 13 अक्टूबर 2025 को जारी की गई थी. इससे पता चलता है कि एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस सेहत के लिए टॉप 10 ख़तरों में से एक है. इसी की वजह से साधारण इंफेक्शन भी आसानी से ठीक नहीं होते. जैसे सर्दी, जुकाम, बुखार, पेट या पेशाब के इंफेक्शन.

साल 2023 में दुनियाभर में हर 6 में से 1 इंफेक्शन पर एंटीबायोटिक काम नहीं कर पाई. पेशाब से जुड़े हर 3 में 1 इंफेक्शन पर दवाएं बेअसर रहीं. वहीं हर 6 में से 1 ब्लड इंफेक्शन पर दवाओं ने काम करना बंद कर दिया. ब्लड इंफेक्शन्स बहुत गंभीर माने जाते हैं. इनकी वजह से मरीज़ के अंग काम करना बंद कर देते हैं. मौत तक हो सकती है.
यानी जब आप हर छोटी-छोटी परेशानी के लिए एंटीबायोटिक लेते हैं. बिना डॉक्टर से सलाह लिए. पुरानी बची हुई दवा खा लेते हैं. तब एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस होने का चांस बढ़ जाता है.
एंटीबायोटिक दवाएं काम न करने से क्या होता है? और, एंटीबायोटिक रज़िस्टेंस से बचने के लिए क्या करें? ये हमने पूछा नारायणा हॉस्पिटल, गुरुग्राम में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर. पी. वेंकट कृष्णन से.

डॉक्टर कृष्णन कहते हैं कि जब किसी मरीज़ पर एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करतीं. तब उसका इंफेक्शन या बीमारी गंभीर होने लगती है. नॉर्मल इलाज भी बहुत मुश्किल हो जाता है. इंफेक्शन पूरे शरीर में या कई अंगों में फैल सकता है. इससे मल्टी-ऑर्गन फेलियर तक हो सकता है. यानी शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. ये बहुत ही सीरियस कंडीशन है. इससे मरीज़ की जान भी जा सकती है.
जब शुरुआती दवाएं काम नहीं करतीं. तो डॉक्टर स्ट्रॉन्ग दवा देते हैं, ताकि किसी तरह इंफेक्शन ठीक हो. लेकिन इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी ज़्यादा होते हैं. उस पर, मरीज़ को लंबे वक्त तक हॉस्पिटल में रहना पड़ता है. इससे इलाज का खर्च बढ़ जाता है. इसलिए खुद को एंटीबायोटिक और एंटीमाइक्रोबियल रज़िस्टेंस से बचाना बहुत ज़रूरी है.

अगर आप चाहते हैं कि एंटीबायोटिक्स आप पर असर करती रहें. तो एंटीबायोटिक्स तभी खाएं, जब डॉक्टर कहें. दवाएं उतनी ही डोज़ और दिनों तक लें, जितना डॉक्टर ने बोला है. बिना डॉक्टर की सलाह के खुद से एंटीबायोटिक्स खरीदकर न खाएं. अगर एंटीबायोटिक्स के साइड इफेक्ट्स दिखें या आप इन्हें सहन न कर पाएं, तो डॉक्टर को बताएं.
साथ ही, अपने आसपास और खुद की सफाई रखें. अगर आपको खांसी-जुकाम या कोई इंफेक्शन है तो घर पर आराम करें. बाहर निकलने से ये दूसरों में भी फैल सकता है. खांसते या छींकते समय रुमाल का इस्तेमाल करें. खाने को ढककर रखें और सही तरह स्टोर करें. खाना खाने से पहले हाथ ज़रूर धोएं. ऐसा करके आप खुद को इंफेक्शन से बचा सकते हैं. अगर आपको कोई दिक्कत काफी वक्त से है. जैसे पेशाब करते हुए दर्द या जलन. खांसी. सांस का फूलना. या बार-बार तबियत खराब होना. तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
कुछ इंफेक्शंस से बचने के लिए वैक्सीन भी मौजूद हैं. बच्चों और बुजुर्गों को ये वैक्सीन ज़रूर लगवानी चाहिए. इससे न केवल इंफेक्शन, बल्कि गंभीर कॉम्प्लिकेशंस से भी बचा जा सकता है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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