मसल्स बनाने हैं तो लीट प्रोटीन या हाई फैट प्रोटीन में से क्या खाएं?
लीन प्रोटीन यानी ऐसा प्रोटीन जिसमें फैट कम और प्रोटीन ज़्यादा हो. ये चिकन, टर्की ब्रेस्ट और अंडे की सफेदी वगैरह में होता है.

आपकी मांसपेशियों, हड्डियों, स्किन और बाल सबको प्रोटीन की ज़रूरत होती है. इसलिए इसका आपकी डाइट में होना बेहद ज़रूरी है. जो लोग खूब एक्सरसाइज़ करते हैं, मसल्स बनाना चाहते हैं, वो ख़ासतौर पर अपनी डाइट में प्रोटीन ज़्यादा लेते हैं, क्योंकि प्रोटीन से मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं. इसके लिए कुछ लोग चिकन, मछली, अंडे खाते हैं. वहीं कुछ लोग भर-भरकर सप्लीमेंट्स और प्रोटीन पाउडर लेते हैं. लेकिन, प्रोटीन भी अलग-अलग तरह का होता है. जैसे लीन प्रोटीन और हाई फैट प्रोटीन.
इनको लेकर हमेशा एक बहस छिड़ी रहती है कि आखिर दोनों में से बेहतर क्या है? चलिए, इस कन्फ्यूज़न को हमेशा के लिए दूर कर देते हैं.
आज डॉक्टर से जानेंगे कि लीन प्रोटीन क्या है. ये किन चीज़ों में पाया जाता है. हाई फैट प्रोटीन क्या है. ये किन चीज़ों में होता है. मसल्स बनाने, उन्हें मज़बूत रखने और वज़न घटाने के लिए दोनों में क्या बेहतर है.
लीन प्रोटीन क्या होता है?ये हमें बताया डॉक्टर अपर्णा गोविल भास्कर ने.

लीन प्रोटीन यानी ऐसा प्रोटीन जिसमें फैट कम और प्रोटीन ज़्यादा हो. ये शरीर को ज़रूरी अमीनो एसिड्स देते हैं, बिना ज़्यादा फैट या कैलोरी बढ़ाए. इनका फायदा ये है कि ये प्रोटीन जल्दी पच जाते हैं. इससे अमीनो एसिड्स मांसपेशियों तक तेज़ी से पहुंचते हैं. एक्सरसाइज़ के बाद ये मांसपेशियों की मरम्मत और ग्रोथ में मदद करते हैं.
ये किन चीज़ों में पाया जाता है?लीन प्रोटीन चिकन और टर्की ब्रेस्ट जैसे लीन मीट में पाए जाते हैं. अंडे की सफेदी में भी ये प्रोटीन होते हैं. रोहू, सुरमई और बोम्बिल जैसी मछलियों से भी ये मिलते हैं. लो फैट दूध, दही और पनीर भी इसके अच्छे सोर्स हैं. अगर आप प्लांट-बेस्ड खाना खाते हैं, तो दाल, छोले, राजमा और सोया प्रोटीन बेहतरीन विकल्प हैं.
हाई फैट प्रोटीन क्या होता है?हाई फैट प्रोटीन में प्रोटीन तो होता है. साथ ही फैट, खासकर सैचुरेटेड फैट या कभी-कभी हेल्दी अनसैचुरेटेड फैट भी थोड़ा ज़्यादा होता है. इसका मतलब ये नहीं कि हाई फैट प्रोटीन बुरा होता है. फैट भी शरीर के लिए एक ज़रूरी पोषक तत्व है. ये हॉर्मोन्स के बीच बैलेंस सुधारते हैं, एनर्जी बढ़ाते हैं और सेल्स को हेल्दी बनाते हैं. सैल्मन और ट्राउट जैसी मछलियों में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स भी होते हैं. ये शरीर की अंदरूनी सूजन कम करते हैं, दिल की सेहत सुधारते हैं और हॉर्मोनल बैलेंस बनाते हैं. ये एक तरह से मांसपेशियों की मरम्मत में भी मदद करते हैं.
ये किन चीज़ों में पाया जाता है?ये मटन और पोर्क में पाए जाते हैं. फुल फैट दूध, चीज़ और मक्खन में भी इनकी मात्रा ज़्यादा होती है. ऑयली फिशेज़ जैसे सैल्मन और ट्राउट भी इसके अच्छे सोर्स हैं.

हाई फैट प्रोटीन धीमे पचते हैं, इसलिए अमीनो एसिड्स मांसपेशियों तक देर से पहुंचते हैं. इस वजह से वर्कआउट के बाद लीन प्रोटीन लेना ज़्यादा अच्छा माना जाता है. उस वक्त शरीर को फौरन मिलने वाले अमीनो एसिड्स की ज़रूरत होती है. लेकिन, नाश्ते या जिस दिन आप वर्कआउट नहीं कर रहे. उस दिन हाई फैट प्रोटीन लेना ज़्यादा फायदेमंद हो सकता है. इनसे आपको लगातार एनर्जी मिलती है, पेट भी देर तक भरा रहता है. अगर आप वज़न घटाना चाहते हैं, तो लीन प्रोटीन लेना ज़्यादा फायदेमंद है. ये कैलोरी कंट्रोल करने में भी आपकी मदद करता है.
अगर आप मसल्स बनाना चाहते हैं या उन्हें मज़बूत रखना चाहते हैं, तो हाई फैट प्रोटीन खाएं. बस फैट की क्वालिटी अच्छी हो. इसके लिए मेवे, बीज और ऑयली फिश खा सकते हैं. कुल मिलाकर, लीन प्रोटीन और हाई फैट प्रोटीन दोनों ही ज़रूरी हैं. बस उनके बीच बैलेंस और टाइमिंग सही होनी चाहिए. लीन प्रोटीन से शरीर को फुर्ती और काम करने की एनर्जी मिलती है. वहीं, हाई फैट प्रोटीन से लंबे समय तक एनर्जी और हॉर्मोनल बैलेंस बना रहता है.
अपने वज़न के हर किलोग्राम के प्रति 1 से 1.5 ग्राम प्रोटीन लेना हेल्दी माना जाता है. कोशिश करें कि डाइट में लीन प्रोटीन ज़्यादा हो. लेकिन हेल्दी फैट्स से भी पूरी तरह परहेज़ न करें.
अगर किसी को किडनी या लिवर की कोई बीमारी है, तो उन्हें डॉक्टर से सलाह के बाद ही खाने में प्रोटीन बढ़ाना चाहिए. किसी भी हालत में 2 ग्राम प्रति किलो बॉडी वेट से ज़्यादा प्रोटीन नहीं लेना चाहिए. इससे ज़्यादा प्रोटीन लेना सेफ़ नहीं है. खासकर किडनी या लिवर की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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