कितने SPF की सनस्क्रीन क्रीम लें जो स्किन कैंसर से बचा ले?
अगर सनस्क्रीन का सही तरीके से और लगातार इस्तेमाल किया जाए, तो ये स्किन कैंसर के रिस्क को कम कर सकती है.
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सनस्क्रीन सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों को काफी हद तक ब्लॉक कर देती है (फोटो: Freepik)
सनस्क्रीन. इसका काम होता है, स्किन को सूरज की हानिकारक किरणों से बचाना. टैनिंग से बचाना. लोग इस उम्मीद में महंगी-महंगी सनस्क्रीन ख़रीदते हैं. इसे भर-भरकर लगाते हैं. लेकिन अगर इतनी मेहनत के बाद पता चले कि वो सनस्क्रीन किसी काम की नहीं है तो?
ऐसा ही कुछ हुआ है ऑस्ट्रेलिया में. यहां के कई मशहूर सनस्क्रीन ब्रांड्स टेस्ट में फेल हो गए हैं. ये टेस्ट SPF से जुड़ा हुआ था. SPF यानी स्किन प्रोटेक्शन फैक्टर. दरअसल, चॉइस ऑस्ट्रेलिया नाम का एक कन्ज़्यूमर एडवोकेसी ग्रुप है. इसने ऑस्ट्रेलिया में मिलने वाली 20 सबसे पॉपुलर सनस्क्रीन्स को टेस्ट किया. ये चेक किया कि सनस्क्रीन में जितना SPF होने का दावा किया जा रहा है, वो सच है या नहीं. ये टेस्ट ऑस्ट्रेलिया की एक स्वतंत्र लैब में हुआ.
जानते हैं क्या नतीजे आए? 20 में से सिर्फ 4 सनस्क्रीन ही ऐसी थीं जिनका SPF उनके दावे के मुताबिक था. बाकी 16 सनस्क्रीन इस टेस्ट में फेल हो गईं.
चॉइस ऑस्ट्रेलिया की ये रिपोर्ट आने के बाद देश में खूब बवाल मचा हुआ है. क्योंकि, वहां लोग सनस्क्रीन का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में हर 3 में से 2 लोगों को कभी न कभी स्किन कैंसर होने का खतरा रहता है. और, ऐसा दावा किया जाता है कि सनस्क्रीन कैंसर से बचाती है.
मगर सनस्क्रीन कैंसर से बचाने में कैसे मदद करती है, ये हमने पूछा रीजेंसी हेल्थ, कानपुर के डर्मेटोलॉजी डिपार्टमेंट में कंसल्टेंट, डॉक्टर पवन सिंह से.

डॉक्टर पवन बताते हैं कि अगर सनस्क्रीन का सही तरीके से और लगातार इस्तेमाल किया जाए. तो ये स्किन कैंसर के रिस्क को कम कर सकती है. सूरज से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलेट किरणें यानी UV रेज़ स्किन के सेल्स में मौजूद DNA को नुकसान पहुंचाती हैं. जिससे उनमें बदलाव आने लगता है और फिर कुछ तरीके के स्किन कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है. जैसे मेलानोमा, बेसल सेल कार्सिनोमा और स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा.
मगर जब आप सनस्क्रीन लगाते हैं, तो उसमें मौजूद तत्व सूरज की इन UV रेज़ को ब्लॉक कर देते हैं. खासकर UV-B रेज़ को. कितनी UV-B रेज़ ब्लॉक होंगी, ये सनस्क्रीन के SPF पर निर्भर करता है. अगर आपकी सनस्क्रीन का SPF 15 है, तो वो करीब 93% किरणों को रोकता है. SPF 30 है तो वो लगभग 97% किरणों को रोकता है. SPF 50 है तो वो करीब 98% UVB किरणों को रोकता है.
अगर सनस्क्रीन का पूरा फायदा चाहिए. तो इसे रोज़ इस्तेमाल करें. हर दो से तीन घंटे बाद दोबारा लगाएं. भले ही धूप निकली हो या नहीं.

कुछ सनस्क्रीन में ऑक्सीबेंज़ोन, ऑटीनॉक्सेट और होमोसालेट जैसे एक्टिव इंग्रीडिएंट पाए जाते हैं. एक्टिव इंग्रीडिएंट यानी उस क्रीम का सबसे मुख्य तत्व. ये तत्व UV रेज़ को रोकने में असरदार होते हैं. पर कुछ स्टडीज़ से पता चला है कि ये स्किन में थोड़ा-बहुत एब्ज़ॉर्व होकर खून में पहुंच सकते हैं. इसका शरीर को कितना नुकसान होगा, ये अभी तक पता नहीं चला है. इस पर जांच चल रही है. देखा जा रहा है कि कहीं लंबे समय तक ऐसा होने से हॉर्मोन्स के लेवल पर तो असर नहीं पड़ेगा.
ये ध्यान रखें कि हर सनस्क्रीन की एक एक्सपायरी डेट होती है. किसी भी प्रोडक्ट को उसकी एक्सपायरी डेट पार होने के बाद इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसा प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से स्किन में जलन या एलर्जी हो सकती है. स्किन कैंसर होने का खतरा भी बढ़ सकता है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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