अगर आप अच्छे से नहीं सो रहे, तो दिल को मुसीबत में डाल रहे हैं, जानिए ये कितना खतरनाक है
अगर नींद पूरी न हो या नींद बार-बार टूटे, तो दिल पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ऐसे में हार्ट अट्रैक या स्ट्रोक का चांस भी बढ़ जाता है. उस पर, अगर किसी को नींद से जुड़ा कोई डिसऑर्डर है. जैसे स्लीप एपनिया, तो दिल को और ज़्यादा नुकसान पहुंचता है.

आजमगढ़ के रहने वाले अनूप ने करीब दो महीने पहले IIT-BHU में एडमिशन लिया. मैकेनिकल इंजीनियरिंग में. 3 सितंबर को उनका एक एग्ज़ाम था. इसलिए अनूप और उनके दोस्तों ने 2 सितंबर की रात 3 बजे तक पढ़ाई की. उसके बाद सब सोने चले गए.
जब सुबह 6 बजे अनूप के दोस्तों ने उन्हें जगाने की कोशिश की, तो वो उठे नहीं. उनका शरीर हल्का गर्म था. घबराए दोस्तों ने CPR दिया. पर कोई फायदा नहीं हुआ. इसके बाद अनूप को अस्पताल ले जाया गया. पर तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.

जानते हैं मौत की वजह क्या थी? कार्डियक अरेस्ट. ये दिल से जुड़ी एक कंडीशन है. इसमें दिल की धड़कन अचानक रुक जाती है. अब अनूप को कार्डियक अरेस्ट क्यों पड़ा, ये तो पता नहीं. पर ये ज़रूर है कि अगर नींद पूरी न हो या नींद बार-बार टूटे, तो दिल पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ऐसे में हार्ट अट्रैक या स्ट्रोक का चांस भी बढ़ जाता है. उस पर, अगर किसी को नींद से जुड़ा कोई डिसऑर्डर है. जैसे स्लीप एपनिया, तो दिल को और ज़्यादा नुकसान पहुंचता है.
लिहाज़ा डॉक्टर से जानिए कि नींद की कमी या ख़राब नींद दिल पर किस तरह असर डालती है. हार्ट अटैक या स्ट्रोक के रिस्क से नींद का क्या संबंध है. क्या स्लीप एपनिया जैसे डिसऑर्डर, दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ाते हैं. और, नींद सुधारने के लिए क्या करें ताकि दिल सुरक्षित रहे.
ये हमें बताया डॉक्टर आदित्य कुमार सिंह ने.

नींद की कमी या ख़राब नींद दिल पर कैसे असर डालती है, इसके लिए पता होना चाहिए कि अच्छी नींद शरीर के लिए क्या करती है. जब हम गहरी नींद में सोते हैं, तो दिमाग और दिल दोनों को आराम मिलता है. हमारा इम्यून सिस्टम रेस्ट मोड में चला जाता है. हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को मरम्मत का समय मिलता है. हॉर्मोन्स, जैसे कोर्टिसोल, सेरोटोनिन, डोपामिन और सेक्स हॉर्मोन का लेवल ठीक रहता है.
अगर खास दिल की बात करें, तो गहरी नींद में पैरासिम्पेथेटिक सिस्टम एक्टिव रहता है. इससे हार्ट रेट धीमा होता है और ब्लड प्रेशर कम होता है. खून की नलियां फैलती हैं, जिससे शरीर में खून का फ्लो सुधरता है. गहरी नींद में सोने से वैस्कुलर सिस्टम यानी शरीर में खून की नलियां हेल्दी रहती हैं. लेकिन अगर नींद बार-बार टूटे तो सिम्पेथेटिक सिस्टम एक्टिव होता है. ये बीपी बढ़ाता है, धड़कनें तेज़ करता है जिससे दिल को आराम नहीं मिल पाता.
हार्ट अटैक या स्ट्रोक के रिस्क से नींद का क्या संबंध है?हार्ट अटैक और स्ट्रोक का नींद से गहरा संबंध है. अगर नींद पूरी न हो, तो शरीर लगातार स्ट्रेस में रहता है. वहीं गहरी नींद शरीर को रिलैक्स करने में मदद करती है.
नींद की कमी से कोर्टिसोल (स्ट्रेस हॉर्मोन) का लेवल बढ़ा रहता है. ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं रहती. ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. धड़कनें तेज़ हो जाती हैं. अरिदमिया (अनियमित धड़कन) का ख़तरा बढ़ जाता है. खून में थक्के जमने की संभावना भी बढ़ जाती है. नींद ढंग से पूरी न होने पर शरीर प्रो-इंफ्लेमेटरी स्टेट में चला जाता है. यानी शरीर के अंदर सूजन बढ़ाने वाले केमिकल्स ज़्यादा बनने लगते हैं. इससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का ख़तरा सामान्य से कहीं ज़्यादा हो जाता है.

स्लीप एपनिया जैसे डिसऑर्डर दिल की बीमारियों का रिस्क कई गुना बढ़ा देते हैं. स्लीप एपनिया में सोते समय अचानक सांस रुक जाती है. इससे शरीर में ऑक्सीजन कम हो जाती है और कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाती है.
साथ ही, धड़कनें तेज़ हो जाती हैं. ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. खून की नलियां सिकुड़ जाती हैं. जब भी नींद के दौरान सांस रुकती है, तब बार-बार ऐसा होता है. लंबे समय तक ऐसा रहने से पैरासिम्पेथेटिक एक्टिविटी नहीं हो पाती. शरीर हमेशा स्ट्रेस में रहता है. ऐसा होने पर अरिदमिया (अनियमित धड़कन) होने की संभावना ज़्यादा होती है. खून का थक्का जमने और स्ट्रोक पड़ने का रिस्क बढ़ जाता है. हार्ट अटैक और हार्ट फ़ेलियर का चांस भी ज़्यादा रहता है.
नींद सुधारने के लिए क्या करें ताकि दिल सुरक्षित रहे?हम सब एक घर में रहते हैं. अगर परिवार के सभी लोग एक समय पर काम खत्म करके सोने जाएं, तो स्ट्रेस कम होता है. अगर हम सो रहे हों और घर का कोई सदस्य जागे या काम करे, तो उसका असर हम पर भी पड़ता है. इसलिए बेहतर है कि परिवार साथ में सोने जाए.
रोज़ एक तय समय पर सोएं. हमारा शरीर एक रिदम (बॉडी क्लॉक) को फॉलो करता है. अगर हम रोज़ एक समय पर सोने जाते हैं. तब अगर किसी दिन उस समय नींद न आ रही हो, तो भी लेटने पर आ जाएगी.
सोने से पहले स्क्रीन टाइम कम करें. सोने से आधा–एक घंटा पहले मोबाइल या कोई चमकदार स्क्रीन न देखें. ज़्यादा रोशनी से दिमाग अलर्ट रहता है. सोने के कमरे में अंधेरा रखें. ज़्यादा रोशनी होने पर शरीर को दिन जैसा माहौल लगता है. इससे शरीर में मेलाटोनिन (नींद लाने वाला हॉर्मोन) कम बनता है. सोने से पहले थोड़ी देर टहलें. इससे शरीर रिलैक्स होता है और नींद अच्छी आती है.
अच्छी नींद सिर्फ सुबह फ्रेश ही फील नहीं कराती. ये दिल के लिए भी अच्छी है. इसलिए, कितना ही बिज़ी शेड्यूल क्यों न हो, सोने के लिए 7 से 8 घंटे का समय ज़रूर निकालें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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