पड़ताल: अजरबैजान का ये यूनेस्को धरोहर सिर्फ़ हिंदुओं का मंदिर नहीं था, पूरी कहानी कुछ और
सोशल मीडिया पर वायरल है इस मंदिर की तस्वीर और उसके साथ जुड़े कई दावे.
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दावा है कि ये अजरबैजान में स्थित ये मंदिर हिंदुओं का है और यहां 3 हज़ार साल से ज्वाला जल रही है.
दावा
सोशल मीडिया पर एक स्मारक की तस्वीर वायरल हो रही है. स्मारक के सामने एक ज्वाला जल रही है. सोशल मीडिया पर इस स्मारक से जुड़ा एक बड़ा कैप्शन शेयर किया जा रहा है, जिसमें कई दावे है. सबसे पहले आप वायरल तस्वीर के साथ किया जा रहा दावा पढ़ लीजिए.
स्मारक की तस्वीर के साथ किया जा रहा दावा.
फेसबुक यूज़र जयबीर रावत
ने वायरल तस्वीर के साथ यही दावा हिन्दू साम्राज्य नाम के फेसबुक ग्रुप में शेयर किया है.

जयबीर रावत का फेसबुक पोस्ट.
(आर्काइव लिंक
)
ट्विटर यूज़र कल्याणी पुष्पा
ने भी इसे दावे को ट्वीट किया है.
(आर्काइव लिंकमुस्लिम देश अजरबेजान में और ईरान सीमा पर हम हिन्दुओं का एक #माँभवानी
— 🇮🇳कल्याणी_पुष्पा🇮🇳 (@P_Katyayan) October 30, 2020
की #शक्तिपीठ
है।यह शक्तिपीठ और ये अखंड ज्वाला आज से 3 हजार साल से यू हीं जल रही है। ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, ऐसा विज्ञान कहता है। उस देश का विज्ञान और वैज्ञानिक कह रहे हैं जिसकी 90% आबादी मुस्लिम(अजरबेजान) है👇 pic.twitter.com/vODQPg0WpE
)
इसी तरह के बाकी दावे आप यहां
और यहां
देख सकते हैं. (आर्काइव लिंक
) (आर्काइव लिंक
)
इस तस्वीर के साथ वायरल मेसेज में कई दावे एक साथ किए जा रहे हैं. हम एक-एक कर इन दावों की पड़ताल करेंगे.
पहला दावा
ये अजरबैजान का एक हिंदू मंदिर है. 1860 तक इस मंदिर में हिंदू और फ़ारसी पूजा करते थे. आज ये मंदिर खंडहर हो चुका है.पड़ताल
कीवर्ड्स की मदद से सर्च करने पर हमें अजरबैजान के इस धरोहर के बारे में 'द हिंदू' अख़बार
की एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट के मुताबिक़, वायरल तस्वीर अजरबैजान की राजधानी बाकू के 'आतेशगाह' धरोहर की है. इसे 'फायर टेम्पल' भी कहते हैं. ये सही है कि इस मंदिर में हिंदू पूजा करते थे, लेकिन सिख और पारसी भी यहां अलग-अलग दौर में पूजा करते थे. इस मंदिर का ज़िक्र 7 वीं शताब्दी से होता आ रहा है. इतिहासकारों का मानना है कि पारसियों ने ये मंदिर 7 वीं शताब्दी के आसपास बनाया था और पूजा भी करते थे. भारतीय सैलानी यहां काफ़ी बाद 16 वीं शताब्दी के अंत में और 17 वीं शताब्दी की शुरुआत में पहुंचे थे. इसमें हिंदू, सिख और पारसी भी थे. उसके बाद से ही हिंदू और सिख धर्मों के लोगों ने यहां पूजा शुरू की. ये धरोहर खंडहर नहीं है. इसे एक म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया गया है.

द हिंदू अख़बार की रिपोर्ट
दूसरा दावा
मां भवानी की इस शक्तिपीठ में 3 हज़ार सालों से अखंड ज्वाला जल रही है.पड़ताल
आतेशगाह परिसर में जल रही ज्वाला आज भी जल रही है. 'द हिंदू' की इसी रिपोर्ट के मुताबिक़, 1969 तक ये ज्वाला अपने आप जल रही था. इसका कारण अजरबैजान में ज़मीन के भीतर मिलने वाला नेचुरल गैस का खज़ाना था. पथरीली सतहों में छेद के कारण ज़मीन गैस लीक हो जाती थी और हवा के तेज झोंको के कारण ज्वाला जलती रहती थी. इस इलाके में हमेशा तेज हवाएं बहती हैं. 1969 के आसपास इस इलाके में नेचुरल गैसों का तेजी से खनन शुरू हुआ. इसके कारण ये ज्वाला जलनी बंद हो गई. अब यहां इस ज्योति के हमेशा जलते रहने के लिए बाकू से गैस पाइपलाइन लगाई गई है.

द हिंदू की रिपोर्ट में जलती ज्वाला की जिक्र
(आर्काइव लिंक
)
तीसरा दावा
मंदिर के खंडहरों पर आज भी हिंदू देवी देवताओं के चित्र हैं और संस्कृत में श्लोक लिखे हुए हैं.पड़ताल
यहां हमें किसी भी रिपोर्ट में हिंदू देवी देवताओं के चित्र होने की कोई जानकारी नहीं मिली. 'दी स्टेट्समैन'
की रिपोर्ट के मुताबिक यहां शिलालेखों पर संस्कृत में लिखे श्लोकों में हिंदू देवता गणेश जी, शिवजी और देवी ज्वाला का जिक्र है. इसके साथ ही यहां पंजाबी और पारसी में लिखे शिलालेख भी हैं.

दी स्टेट्समैन की रिपोर्ट में शिलालेखों का ज़िक्र
चौथा दावा
1998 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर और 2007 में अजरबैजान ने इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था.पड़ताल
अज़रबैजान सरकार के आधिकारिक वेबसाइट
के मुताबिक़ 19 दिसंबर, 2007 को अजरबैजान के राष्ट्रपति ने बाकू के इस मंदिर को ऐतिहासिक-वास्तुशिल्प आरक्षित घोषित किया था. इस वेबसाइट
के मुताबिक़ 30 सितंबर 1998 को यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हेरिटेज़ के टेंटेटिव लिस्ट में रखा था लेकिन यूनेस्को के आधिकारिक वेबसाइट पर ऐसी कोई जानकारी नहीं है. यूनेस्को के वेबसाइट
पर बाकू पहाड़ियों को टेंटेटिव लिस्ट की कटेगरी में रखा गया है.
2018 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अजरबैजान के तीन दिन के दौरे पर गई थीं. इस दौरे में वो बाकू के इस फ़ायर टेम्पल भी गई थीं. इसकी जानकारी देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने अंग्रेजी में ट्वीट किया था. हम आपको उसका हिंदी अनुवाद बता रहे हैं-
'आग्नेय नमः! विदेश मंत्री सुषमा स्वराज बाकू के 'टेम्पल ऑफ फायर' आतेशगाह में प्रार्थना करती हुईं. ये मंदिर हिंदू, सिख और पारसी सभी के लिए पूजा स्थल था. 1745-56 में लिखे गए शिलालेखों पर यहां गणेशजी और पवित्र अग्नि की पूजा का ज़िक्र है.'
Aagneya namah! EAM @SushmaSwaraj
— Anurag Srivastava (@MEAIndia) April 6, 2018
paying homage at the 'Temple of Fire' Ateshgah in Baku which was used as a Hindu, Sikh, and Zoroastrian place of worship. First line of the inscription at Ateshgah dating to 1745-46 venerates Lord Ganesha and second the holy fire. pic.twitter.com/pI92QctubY