8 जून 2016 (Updated: 8 जून 2016, 04:34 PM IST) कॉमेंट्स
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12 अगस्त को आने वाली फ़िल्म मोहनजोदड़ो का पहला पोस्टर जब हम देखे तो उसमे हड़प्पा का एक सील बना था, जिसमे कुछ अजीबो-गरीब सा लिखा भी हुआ था. पोस्टर देख कर एकदम से हेरोइक-ऐतिहासिक टाइप फीलिंग आने लगी. फिर हमें याद आ गया कि कैसे स्कूल में मोहनजोदड़ो के बारे में पढ़ के हमारे रोंगटे खड़े हो गए थे. हमने तुरंत डिसाइड कर लिया था कि बड़े होकर पुरातत्त्ववेत्ता बनेंगे और हड़प्पा सभ्यता की स्क्रिप्ट की व्याख्या कर के ही दम लेंगे. स्क्रिप्ट माने लिपि. इसे फिल्म की स्क्रिप्ट न समझा जावे. अब जब आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म मोहनजोदड़ो की बात हर जगह होने लगी तो हमारे सोए हुए अरमान फिर से जाग उठे. अब पुरातत्त्ववेत्ता हम क्या ही बन पाएंगे, इसलिए सोच रहे हैं यहीं पर अपना ज्ञान झाड़ दें.
हड़प्पा-मोहनजोदड़ो वाले लोग भी कमाल के थे. ऐसी स्क्रिप्ट लिख के गए कि हज़ारों साल बाद भी लोग माथापच्ची कर कर के थक गए. फिर भी समझ नहीं पाएं कि आखिर उन मछली, नाव और ऊलजलूल जानवरों जैसी दिखने वाली चीज़ों का मतलब क्या है.
वैसे ये भूल कर भी मत सोचिएगा कि हमारे एपिग्राफिस्ट्स अभी तक कुछ खोज ही नहीं पाए हैं. एपिग्राफिस्ट्स माने वो बहादुर लोग जो पुरानी स्क्रिप्ट्स से दो- दो हाथ करते हैं, और उनके मतलब खोजने की कोशिश करते हैं.
हड़प्पा-मोहनजोदड़ो में स्क्रिप्ट अधिकतर सील पर खोद कर लिखे गए होते थे. इसके अलावा बर्तनों, गहनों, और नावों पर भी. इस स्क्रिप्ट को 'भाषा' की कैटेगरी से बाहर रखा गया है. क्योंकि 400 से ऊपर साइन मिले हैं इसलिए इसे 'पिक्टोग्राफिकल' स्क्रिप्ट ही माना जाता है. हालांकि एक बार में एक साथ बहुत कम साइन ही इस्तेमाल किए जाते थे. सबसे बड़ी स्क्रिप्ट एक सील पर है, जिसमे सिर्फ 26 साइन हैं. जानकार लोग मानते हैं कि इसे दाएं से बाएं लिखा जाता था. जबकि कुछ दूसरे जानकार मानते हैं कि हड़प्पा सभ्यता की ये स्क्रिप्ट एक लाइन में दाएं से बाएं लिखी जाती थी, और दूसरी लाइन में बाएं से दाएं. अब जिधर से भी रही हो अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है.
अब ये आप ज़रूर सोचने लगे होंगे कि जब ब्राह्मी और खरोष्ठी जैसी पुरानी भाषाएं पढ़-पुढा ली गईं तो आखिर हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की स्क्रिप्ट ही हमें क्यों छका रही है. इसकी पहली वजह तो ये हैं कि ये स्क्रिप्ट बहुत ज़्यादा पुरानी है, इसीलिए ये हमारी आज की स्क्रिप्ट्स से बहुत दूर है. दूसरी बात ये है कि ब्राह्मी और खरोष्ठी या दूसरी पुरानी भाषाओं को पढने में उस समय की दूसरी भाषाओं की मदद मिल जाती है. ऐसा तब होता है जब दोनों स्क्रिप्ट्स का इस्तेमाल किसी जगह एक साथ होता है. ऐसा हड़प्पा की स्क्रिप्ट के साथ संभव ही नहीं था.
हालांकि मेसोपोटामिया, मतलब आज के ईरान, में उसी समय के लगभग में मिट्टी के टैबलेट्स पर खोद कर लिखा जाता था. जिससे हड़प्पा-मोहनजोदड़ो से उनके ट्रेड का पता चलता है. और भी कुछ चीज़ें पता चलती हैं लेकिन स्क्रिप्ट पढ़ने में कोई मदद नहीं मिलती.
अब थोड़ा बताते हैं आपको कि कितने तरीके से हड़प्पा की स्क्रिप्ट को जानने-पढने-समझने की कोशिश की गई है. कुछ सोची-समझी दलीलें दी गईं हैं, तो कुछ तुक्के भी भिड़ाए गए हैं. तुक्कों की बात करेंगे तो आप हम पर ही हंसेंगे, इसीलिए तर्कों के बारे में बताते हैं.
मेन दो तर्क सामने आते हैं. कुछ एपिग्राफिस्ट्स मानते हैं कि हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की स्क्रिप्ट आगे संस्कृत से जुड़ गई. ब्राह्मी को भी ये इसी स्क्रिप्ट से निकला हुआ मानते हैं. एपिग्राफिस्ट्स का दूसरा ग्रुप मानता है कि द्रविड़ भाषाएं इसी स्क्रिप्ट से जुड़ी हुई हैं. वे कुछ द्रविड़ भाषा के शब्दों को हड़प्पा की स्क्रिप्ट के साइन से जोड़ते हैं. जैसे मछली के साइन को द्रविड़ियन शब्द 'मीन' से जोड़ा जा सकता है.
दक्षिण भारत के घरों में बनने वाली 'कोलम' यानी रंगोली की एक डिजाइन को हड़प्पा-मोहनजोदड़ो में बनाए जाने वाले 'अनएंडिंग नॉट' का एक रूप माना जाता है. और तो और आज के स्वास्तिक का एक रूप हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के बर्तनों पर देखा जा सकता है. 1900 BC के आसपास जब हड़प्पा की सभ्यता के दिन ढलने लगे तो इस स्क्रिप्ट का इस्तेमाल भी कम हो गया.
हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की स्क्रिप्ट और कहीं दिखे न दिखे, सील पर हमेशा देखी गई है. अब ये सील क्या बला है! सील ख़ास पत्थरों से बने होते थे, जिनपर स्क्रिप्ट में कुछ लिखा होता था और कुछ जानवरों की फोटो खुदी होती थी. अक्सर एक बाबाजी की फोटो खुदी रहती थी, जो साधक की तरह बैठे रहते थे और आसपास कुछ जानवर घुमा-फिरा करते थे उनके. कुछ दूसरे सील होते थे जिनपर शायद व्यापारियों के नाम-पते खुदे रहते हों. और दूर- दराज के इलाकों में सामान वगैरह भेजे जाते हों.
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रही पारुल ने की है.