प्रियंका चोपड़ा की कांख काली क्यों नहीं हो सकती?
गोरा होना हमारे लिए बहुत जरूरी है. डर है कि किसी दिन हम डिटर्जेंट में न नहाने लगें.
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फोटो - thelallantop
ऊपर वाली तस्वीर मैक्सिम मैगजीन के जून के अंक का कवर है. ये कवर चर्चा का विषय बना हुआ है. वजह, इनके अंडरआर्म्स, जिनपर ध्यान देने के लिए ज्यादा गौर भी नहीं करना पड़ेगा. इनकी बांईं कांख को इतना फोटोशॉप कर दिया गया है कि स्किन का असली रंग तो छोड़ो, उनकी खाल के मोड़ भी नहीं दिख रहे. जिसका न दिखना नैचुरल नहीं है.अब आप कहेंगे कि एक फोटोग्राफर ने तस्वीर खींची. वो उसे किसी भी तरह यूज करे, हम कुछ कहने वाले कौन होते हैं. ये सही बात है कि किस फोटो को कैसे यूज करना है, इसपर फोटोग्राफर का अधिकार होता है. लेकिन जिस तरह इस तस्वीर को फोटोशॉप किया गया है, ये हमारी मॉडलिंग, एक्टिंग इंडस्ट्री और समाज के बारे में कई बातें बयां करती है.
तकलीफ फोटोशॉप से नहीं
तकलीफ फोटोेशॉप के पीछे की मानसिकता और उसके नतीजे से है. अपनी वैक्सिंग कराना, या मेकअप का इस्तेमाल करना किसी का भी निजी फैसला होता है. लेकिन अपनी स्किन को सफ़ेद करके दिखाना वही 'कोलोनियल हैंगओवर' है, जिससे हम बीते 65 सालों में बाहर नहीं निकल पाए हैं. हमारे मार्केट में चेहरा गोरा करने की क्रीम जाने कबसे मिल रही है. लेकिन बीते सालों में, जब हमसे ये उम्मीद की जा सकती है कि एक समाज के तौर पर हम ज्यादा प्रोग्रेसिव हो जाएं, असल में हम 'सुंदरता' के उस जाल में और ज्यादा फंस गए हैं, जिसकी बुनियाद ब्रिटिश राज में रखी गई. जिसके माने ये होते हैं कि जो गोरा है, वही सुंदर है. जब औरतों के चेहरे गोरे करने का कॉन्सेप्ट पुराना होने लगा, पुरुषों को गोरा करने की क्रीम आ गई. फिर अंडरआर्म्स 'वाइटनिंग' डियो आए. और फिर वेजाइना का रंग हल्का करने की क्रीम भी आ गई.अगर बॉलीवुड पर नजर डालें, हम पाएंगे कि 'गोरी' हिरोइनों की संख्या 'सांवली' हिरोइनों के मुकाबले बहुत ज्यादा है. जबकि इंडिया के मौसम और मैप पर लोकेशन के हिसाब से सांवला ही हमारा नैचुरल रंग होता है. गोरा होना हमारे लिए इतना जरूरी है कि काजोल और प्रियंका चोपड़ा जैसी एक्टर, जिनका नैचुरल कॉम्प्लेक्शन सांवला है, का स्किन टोन हल्का कर दिखाया जाता है. जबकि एक एक्टर की पहचान एक एक्टर के तौर पर होनी चाहिए.फेयर एंड लवली के विज्ञापन तो आपके सामने ये तक साबित कर देंगे कि चेहरे पर गोरापन आते ही लड़की की नौकरी लग जाती है. और 3 हफ़्तों में वो इंडिपेंडेंट हो जाती है. जिसके बाद उससे शादी करने के लिए उसके पीछे लड़कों की लाइन लग जाती है. ये उसी समाज का आईना है, जिसके अखबारों में छपने वाला हर शादी का इश्तेहार इस बात से शुरू होता है कि लड़की गोरी है.
बॉडी भी 'टोंड' होनी चाहिए
कभी टीवी पर 70s की फिल्में देखिए, हीरो और हिरोइन- दोनों की तोंद निकली होती है. लेकिन आज ज़रीन खान जैसी एक्ट्रेस को मोटी होने के लिए लोग ट्विटर पर ट्रॉल कर देते हैं.



ये सच है कि हम सब किसी न किसी तरह दिखना चाहते हैं. हम सब चाहते हैं कि हम सुंदर दिखें. लेकिन समस्या सुंदर की परिभाषा से है, जिसे लगातार क्रीम-पाउडर बेचने वाली कंपनियां हमारे लिए तय करती रहती हैं. कल को कोई क्रीम 'डार्क इस ब्यूटीफुल' का नारा चला देगी, और हम उसपर भरोसा करने लगेंगे.