फिल्म रिव्यू- टिकू वेड्स शेरू
हिंदी फिल्मों के लिए अभी बहुत बुरा वक्त चल रहा है. और 'टिकू वेड्स शेरू' जैसी फिल्मों का योगदान उसमें भयंकर लेवल का है.
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Amazon Prime Video पर Tiku Weds Sheru नाम की फिल्म रिलीज़ हुई है. मैंने इस फिल्म को देखने में दो घंटे खर्च किए. मैं इसका रिव्यू लिखने में दो और घंटे वेस्ट नहीं करना चाहता. ये फिल्म का फर्स्ट रिव्यू है. अब आगे बात करते हैं. क्योंकि करनी पड़ेगी.
इस फिल्म की कहानी वो है, जो हज़ारों फिल्मों में दिखाई जा चुकी है. हज़ारों मैंने इसलिए कहा क्योंकि इसमें से सैकड़ों तो मैं खुद देख चुका हूं. एक लड़की है. वो बंबई जाकर हीरोइन बनना चाहती है. मगर मुंबई में जाकर उसे 'कॉम्प्रोमाइज़' करना पड़ता है. सपने टूट जाते हैं. रिएलिटी चेक मिलता है. उसके आगे का क्या होता है, ये किसी फिल्म में नहीं दिखाया जाता. और 'टिकू वेड्स शेरू' तो किसी मामले में अलग फिल्म नहीं है. इस मामले में कैसे अलग हो जाती?
इस फिल्म को साई कबीर ने लिखा और डायरेक्ट किया है. फिल्म देखने के बाद उनके बारे में लगता है कि कोई आदमी रचनात्मक रूप से इतना दिवालिया कैसे हो सकता है? इस फिल्म में न एक सीन नया है, न एक डायलॉग, न एक फ्रेम. इस फिल्म को कंगना रनौत ने प्रोड्यूस किया है. फिल्म इंडस्ट्री के काम करने के तरीके को लेकर कंगना के पास फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस है. वो स्क्रिप्ट सुनने के बावजूद वो इस फिल्म पर पैसा लगाने को कैसे तैयार हो गईं, ये अपने आप में शोध का विषय है.
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म में शेरू नाम के जूनियर आर्टिस्ट का रोल किया है. जो जूनियर आर्टिस्ट और लड़कियां सप्लाई करने का काम करता है. कहता है कि जो काम करता है शिद्दत से करता है. इस किरदार से वो सिर्फ एक ही चीज़ सीख सकते हैं. फिल्मों के चुनाव में ही वही शिद्दत ले आएं. फिल्म सेलेक्शन के मामले में इतना बड़ा डाउनग्रेड तो प्रभास का भी नहीं हुआ. रोमैंटिक रोल्स करने का लालच उनकी फिल्मोग्राफी को रसातल में ले जाने का काम कर रहा है. अगर वो एकाध और ऐसी फिल्म में काम कर लें, तो लोग उनकी फिल्में देखने से डरने लगेंगे. और ये मैं बिल्कुल मज़ाक में नहीं कह रहा. हालांकि वो आगे भी 'नूरानी चेहरा' और 'बोले चूड़ियां' जैसी 'रोमैंटिक' फिल्मों में काम कर रहे हैं.
अवनीत कौर ने इस फिल्म से अपना फिल्मी करियर शुरू किया. उनके किरदार के बारे में तो क्या ही बात करें. मगर वो इतना खराब डेब्यू डिज़र्व नहीं करती थीं. अगर आपको लगता है कि मैं फ्रस्ट्रेटेड साउंड कर रहा हूं, तो आपको सही लग रहा है. अगर आप मेरी व्यथा समझना चाहते हैं, तो प्लीज़ 'टिकू वेड्स शेरू' देखकर आइए. ये बी-ग्रेड से भी बदतर किस्म की स्टोरीटेलिंग है. हिंदी फिल्मों के लिए अभी बहुत बुरा वक्त चल रहा है. और 'टिकू वेड्स शेरू' जैसी फिल्मों का योगदान उसमें भयंकर लेवल का है.
हम फिल्म के एक-एक पक्ष पर अलग से बात करने लगे, तो बहुत समय चला जाएगा. वो समय मैं नकारात्मकता में खर्च करना नहीं चाहता. शॉर्ट में बस इतना समझिए कि 'टिकू वेड्स शेरू' आला दर्जे की बकवास फिल्म है. एंड इट्स अ फैक्ट.
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