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'खलनायक' के किस्से, जिसके गाने 'चोली के पीछे' को बैन करने के लिए देशभर से चिट्ठियां लिखी गईं

'खलनायक' सिनेमा बदलने वाली फिल्म नहीं थी. फिर भी उसने कल्ट स्टेटस हासिल किया. ऐसा किन घटनाओं की वजह से मुमकिन हुआ, उसके लिए पढिए फिल्म के किस्से.

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फिल्म 'खलनायक' के एक सीन में फिल्म के नायक संजय दत्त. दूसरी तस्वीर फिल्म के विवादित गाने 'चोली के पीछे' के एक सीन में माधुरी दीक्षित.
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13 जुलाई 2022 (Updated: 14 जुलाई 2022, 19:01 IST)
Updated: 14 जुलाई 2022 19:01 IST
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तारीख 03 मई, 1993. दोपहर का समय. मुंबई शहर. पुलिस अभिनेता संजय दत्त को कोर्ट में पेश करने के लिए ले जा रही थी. उन्हें उसी साल 19 अप्रैल को 1993 मुंबई धमाकों में उनके रोल पर आर्म्स एक्ट और TADA (Terrorist and Disruptive Activities Prevenction Act) के तहत अरेस्ट किया गया था. हाथों में हथकड़ी पहने संजय दत्त कोर्ट पहुंचे. लेकिन ये पहली बार नहीं था जब पब्लिक उन्हें हथकड़ियों में देख रही थी. दरअसल, उन्हीं दिनों कुछ पोस्टर्स जगह-जगह दिखलाई पड़ रहे थे. जिन पर लंबे बालों में संजय दत्त हथकड़ियों में थे और उस पर बड़े अक्षरों में लिखा था,

हां, हां, मैं हूं खलनायक. 

ये संजय दत्त की आने वाली फिल्म ‘खलनायक’ के पोस्टर थे. सुभाष घई फिल्म के डायरेक्टर थे. और संजय को पोस्टर पर इस तरह से दिखाना उनका विजन था. संजय दत्त पर यासिर उस्मान की लिखी किताब ‘Sanjay Dutt: The Crazy Untold Story of Bollywood’s Bad Boy’ में इस बात का ज़िक्र मिलता है. सुभाष घई की इस हरकत पर फिल्म इंडस्ट्री के काफी लोग नाराज़ हुए थे. खासतौर पर दत्त परिवार और उनके करीबी. उनका मानना था कि घई बस संजय दत्त के पुलिस केस को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. अरेस्ट के बाद संजय दत्त पर डेली कुछ-न-कुछ छपता था. लोग उनके बारे में जानना चाहते थे. ऐसे में सुभाष घई के फिल्म प्रमोट करने के तरीके पर सवाल भी उठे, कि वो किसी की ट्रैजडी का फायदा उठा रहे हैं.  

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घई पर आरोप लगे कि उन्होंने संजय दत्त की नेगेटिव इमेज का फायदा उठाने की कोशिश की.  

हालांकि, सुभाष घई ने ऐसी तमाम आलोचनाओं को बेबुनियाद बताया. उन्होंने अपने बचाव में इतना ही कहा कि फिल्म के प्रमोशन की प्लैनिंग बहुत एडवांस में हो जाती है. उसे संजय दत्त के केस से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. आगे बढ़ने से पहले ‘रॉकस्टार’ फिल्म का एक सीन याद कीजिए, जहां रणबीर का किरदार जॉर्डन जेल में है. दूसरी ओर जिस म्यूज़िक कंपनी के लिए जॉर्डन ने गाने रिकॉर्ड किए थे, उसका मालिक मदन ढींगरा अपनी टीम से कहता है,

मार्केट में एल्बम खुलता है और आर्टिस्ट जेल के अंदर. दिस इज़ माय विज़न. 

इस सीन को सुभाष घई की प्रमोशन स्ट्रैटेजी से भी जोड़कर देखा जाता है. जॉर्डन और संजय दत्त, दोनों की नेगेटिव इमेज का फायदा उठाया जा रहा था. खैर, फिर से लौटते हैं ‘खलनायक’ पर. नाइंटीज़ में मुंबई धमाकों की वजह से संजय दत्त की ऑन स्क्रीन इमेज को धक्का पहुंचा था. ‘खलनायक’ साइन करने के वक्त वो एक बैंकेबल स्टार बन चुके थे. यानी जो अपने दम पर पिच्चर चला सकता है. यही वजह है कि ‘खलनायक’ के लिए उन्होंने एक करोड़ रुपए की फीस ली थी. जो कि उस दौर में किसी भी स्टार के लिए बहुत बड़ी रकम थी. उनकी गिरफ़्तारी के बाद प्रोड्यूसर उनसे कतराने लगे. खुले में उन पर कमेंट करने से बचने लगे. 

यासिर अपनी किताब में बताते हैं कि संजय दत्त की गिरफ़्तारी के कुछ दिन बाद उनकी फिल्म ‘क्षत्रिय’ मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमा हॉल में चल रही थी. तभी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कुछ लोग गुस्से में वहां पहुंच गए और शो बंद करवा दिया. इस घटना की देखा-देखी बाकी सिनेमाघरों ने भी फिल्म हटाना शुरू कर दिया. संजय दत्त को लेकर पब्लिक में रोष था. फिर आई 06 अगस्त, 1993 की तारीख. जिसने मुश्किल हालात में संजय दत्त को बड़ी राहत दी. उनकी फिल्म ‘खलनायक’ रिलीज़ हुई. एक टिपिकल सुभाष घई फिल्म – लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर्स. हाई ऑन ड्रामा और हिट म्यूज़िक. लिखाई के लिहाज़ से फिल्म औसत थी. बावजूद इसके ‘खलनायक’ बॉक्स ऑफिस रेज साबित हुई. 

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‘खलनायक’ के सेट पर सुभाष घई और संजय दत्त.

सिनेमाघरों के बाहर लंबी कतारें देखने को मिलती. ‘खलनायक’ 1993 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली दूसरी हिंदी फिल्म साबित हुई. पहला पायदान गोविंदा की फिल्म ‘आंखें’ के नाम था. संजय दत्त और सुभाष घई की फिल्म का इम्पैक्ट सिर्फ उसी साल तक सीमित नहीं रहा. ‘खलनायक’ 90 के दशक की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली चौथी हिंदी फिल्म थी. आज अपनी रिलीज़ के 28 साल बाद ‘खलनायक’ को एक कल्ट स्टेटस हासिल है. कहा जाता है कि फिल्म को इस मुकाम तक पहुंचाने में कई फैक्टर्स का हाथ है. जिनमें से एक था संजय दत्त का केस. और दूसरा था वो गाना जो फिल्म की हाइलाइट बन गया. इसे परिवार के सामने सुनने में लोगों को शर्म आती. उस पर बहस होती. झगड़े होते. और फिर भी वो गाना सुना और देखा जाता. लोग इसे डिफेंड करते. ऐसा क्रेज़ था.  

उस गाने के बनने और उसके बवाल बनने की कहानी बताएंगे. साथ ही बताएंगे ‘खलनायक’ से जुड़े कुछ ऐसे किस्से, जिनके बारे में अमूमन बात नहीं होती.  

# “इसकी चोली भरो”

सुभाष घई ‘खलनायक’ के लिए अपनी कास्ट फाइनल कर रहे थे. लीड एक्टर्स फाइनलाइज़ करने के बाद उन्होंने नीना गुप्ता को अपने ऑफिस बुलाया. उन्हें एक रोल ऑफर किया. इस किरदार की अपनी कोई पहचान नहीं थी. मतलब ऐसा रोल जो कोई भी एक्टर कर सकता है. इसी वजह से नीना ये रोल करने को उत्सुक नहीं थी. फिर सुभाष घई ने उन्हें एक गाना सुनाया, जो उनके किरदार पर फिल्माया जाना था. इस बारे में नीना गुप्ता अपनी ऑटोबायोग्रफी ‘सच कहूं तो’ में लिखती हैं. वो बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार वो गाना सुना तब लगा कि मामला काफी कैची है. ऊपर से वो गाना उनकी दोस्त ईला अरुण ने गाया था. अल्का याज्ञ्निक का भी बराबर साथ था. ‘चोली के पीछे’ के बोल लिखे थे लेजेंड्री आनंद बख्शी ने. फिर भी सारी बात नीना के कमजोर किरदार पर ही आकर अटक रही थी. जिस वजह से वो ये फिल्म साइन नहीं करना चाहती थीं. 

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नीना गुप्ता फिल्म साइन नहीं करना चाहती थीं. 

किसी तरह सुभाष घई ने उन्हें मना लिया. गाने की शूटिंग का दिन आया. नीना सेट पर पहुंची. फिल्म पर काम कर रहा कॉस्ट्यूम डिपार्टमेंट उन्हें अपने साथ ले गया, और एक ट्राइबल गुजराती ड्रेस थमा दी. ड्रेस पहनने के बाद उन्हें सुभाष घई के सामने ले जाया गया. उनकी अप्रूवल के लिए. नीना को गेटअप में देखकर सुभाष घई बिफर पड़े. चिल्लाने लगे,

नहीं, नहीं, नहीं. कुछ भरो.

नीना लिखती हैं कि उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई. लगा कि सुभाष उनके किरदार की चोली भरने की बात कह रहे हैं. खैर, उस दिन गाना शूट नहीं हो सका. अगले दिन फिर उन्हें दूसरे गेटअप में सुभाष घई के सामने ले जाया गया. इस बार कॉस्ट्यूम डिपार्टमेंट ने उनकी ड्रेस में पैडेड ब्रा जोड़ दी थी. इस बार सुभाष घई संतुष्ट थे. गाना शूट हुआ और ‘चोली के पीछे क्या है’ नाम से रिलीज़ भी हुआ. ये गाना वो दूसरा फैक्टर था जिसने ‘खलनायक’ को बेइंतेहा पॉपुलैरिटी दिलाई. लेकिन इसे पब्लिक तक पहुंचाना कोई जंग लड़ने से कम नहीं था. मगर सुभाष घई ने ‘चोली के पीछे क्या है’ टाइटल से बने गाने को रिलीज़ कैसे किया? 

# जब एक गाने पर बंट गया पूरा देश  

HMV. पुराने दौर का बड़ा म्यूज़िक लेबल. सुभाष घई की कई हिट फिल्मों का म्यूज़िक लोगों तक पहुंचाने का ज़िम्मा इसी कंपनी ने लिया था. ‘सौदागर’ और ‘राम लखन’ का म्यूज़िक भी HMV ने ही डिस्ट्रीब्यूट किया था. बहरहाल, अंग्रेज़ी में कहते हैं कि ऑल गुड थिंग्स मस्ट कम टू एन एंड. यानी हर अच्छी चीज़ एक दिन खत्म होती ही है. सुभाष घई और HMV की पार्टनरशिप भी खत्म हुई. HMV इक्वेशन से बाहर हुआ, और एंट्री हुई रमेश तौरानी के लेबल TIPS की. TIPS घई की नई फिल्म ‘खलनायक’ के म्यूज़िक की ज़िम्मेदारी लेना चाहता था. बताया जाता है कि कंपनी ने ‘खलनायक’ के म्यूज़िक राइट्स के लिए सुभाष घई को एक करोड़ रुपए दिए. 

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक TIPS ने ‘खलनायक’ के साउंडट्रैक पर करीब 1.25 करोड़ रुपए बहा दिए. इसमें प्रचार आदि का खर्चा शामिल था. कंपनी की सारी मेहनत सफल साबित हुई. जब ‘खलनायक’ की देशभर में 50 लाख से ज़्यादा कैसेट्स बिकीं. इस अल्बम से कंपनी को तकरीबन 3 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ बताया जाता है. रेडियो पर फिल्म के गाने बज रहे थे. दूरदर्शन पर लोग उन्हें देख रहे थे. खासतौर पर सबसे ज़्यादा ‘चोली के पीछे’ को. देश के बहुत सारे लोगों की तरह दिल्ली में रहने वाले वकील आर.पी. चुग ने भी ये गाना सुना. जिसके बाद वो सीधा पहुंच गए कोर्ट. 

चुग ने याचिका दायर करते हुए लिखा कि ये गाना भद्दा, अश्लील और महिला विरोधी है. कैसेट की बदौलत लोग इसे बेरोकटोक सुन रहे हैं. कुल मिलाकर जनता तक गलत मैसेज पहुंच रहा है. साथ ही चुग़ ने अपनी याचिका में चार मांगें की,

#1. उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर सुभाष घई, फिल्म के प्रोड्यूसर्स और सेंसर बोर्ड से गाने को डिलीट करने को कहा. 

#2. अगली मांग ये थी कि TIPS ‘खलनायक’ के गानों की कैसेट मार्केट से वापस खींच ले. 

#3. तीसरी रिक्वेस्ट थी सेंसर बोर्ड से. कि फिल्म को तब तक रिलीज़ न किया जाए, जब तक फिल्म से गाना हट न जाए.  

#4. सूचना और प्रसारण मंत्रालय को लिखा कि गाने का टीवी ब्रॉडकास्ट रोक दिया जाए. यानी ये गाना टीवी पर न दिखाया जाए.

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शिकायत करने वालों ने गाने को महिला विरोधी बताया.

सुभाष घई उनकी मांगें मानने के मूड में नहीं थे. इसलिए जवाबी फायरिंग करते हुए वो भी कोर्ट पहुंच गए. लेकिन अपना केस बचाने के लिए घई को मेहनत नहीं करनी पड़ी. जिस दिन केस की तारीख थी, उस दिन चुग कोर्ट ही नहीं पहुंचे. नतीजतन, केस खारिज हो गया. सुभाष घई को भले ही लीगल पचड़े से मुक्ति मिल गई थी. लेकिन असली पिक्चर अभी बाकी थी. पब्लिक तक इस केस की खबर पहुंच चुकी थी. जिसके बाद बहुत सारे लोगों ने घर में साफ, कोरे कागज़ और इंक से भरे पेन तलाशे. चिट्ठियां लिखी गईं. 

तत्कालीन सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के चेयरपर्सन शक्ति सामंत को 200 से ज़्यादा चिट्ठियां मिली. सभी का फोकस ‘चोली के पीछे’ गाने पर था. बीजेपी महिला विंग की प्रेसीडेंट ने चुग की याचिका का हवाला लेते हुए लिखा कि ये एक बेहूदा गाना है. जिसकी मदद लेकर लड़के लड़कियों से बदतमीज़ी कर रहे हैं. छेड़छाड़ की घटनाओं में इज़ाफा हुआ है. फरीदाबाद के रहने वाले विनीत कुमार ने भी अपनी शिकायत में कुछ ऐसा ही लिखा. उनके मुताबिक उनके इलाके में रहने वाला एक जवान लड़का ये गाना गाकर लड़कियों को छेड़ता है. 
गाने के खिलाफ लिखी गई तमाम चिट्ठियों में इसे डिलीट करने की मांग की गई. लेकिन पूरा जनादेश ये नहीं था. कुछ इसके बचाव में भी थे. राजस्थान के पारस सिनेमा से जुड़े एक एग्ज़िबिटर ने लिखा कि ‘चोली के पीछे’ एक राजस्थानी लोकगीत पर आधारित था, जिसे अक्सर महिलायें गाया करती थीं. अगर ये भद्दा होता, तो वो इसे क्यों गातीं. एक और सिनेमा हॉल था, राजेश टॉकीज़ के नाम से. जिसके एग्ज़िबिटर को भी गाने से कोई आपत्ति नहीं थी. उन्होंने लिखा कि मैंने टीवी पर ये गाना देखा और मुझे कुछ भी गंदा नहीं लगा. बल्कि आप इसे परिवार के साथ देख सकते हैं. 

‘खलनायक’ पर देशभर में बवाल चल रहा था. वो भी तब जब फिल्म पूरी नहीं हुई थी. आखिरी कुछ स्टेज जैसे डबिंग आदि पर काम चल रहा था. इस बीच सुभाष घई ने फिल्म का रफ वर्ज़न सर्टिफिकेशन बोर्ड के पास भेजा. बोर्ड को फिल्म देखकर उसे सर्टिफाई करना था कि इसे किस उम्र वर्ग के लोग सिनेमाघरों में देखने जा सकते हैं. बोर्ड ने फिल्म देखी और उसमें सात कट सुझाए. कहा कि ये बदलाव होने के बाद इसे U/A सर्टीफिकेट दिया जाएगा. U/A सर्टीफिकेट के अंतर्गत फिल्म को पब्लिकली देखा जा सकता है. बस 12 साल से छोटे बच्चे इसे अपने पेरेंट्स की देखरेख में ही देख सकते हैं. बोर्ड ने जो सात कट बताए थे, उनमें से तीन ‘चोली के पीछे’ गाने में थे. 

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‘चोली के पीछे’ गाने से स्टिल. 

जहां बोर्ड ने कहा कि ‘चोली के पीछे क्या है, चुनरी के नीचे क्या है’ लाइन को हटाया जाए. गाने के वीडियो से वो हिस्सा हटाया जाए जहां माधुरी अपनी छाती की तरफ इशारा कर के गाती हैं कि ‘जोगन बना न जाए क्या करूं’. गाने से वो विज़ुअल हटाए जाएं, जहां शुरुआत में बैकग्राउंड डांसर्स की कमर हिलती हुई दिख रही हैं. घई ने ज्यादातर सुझाव मान लिए. बस गाने के दो कट्स के खिलाफ अपील की. बोर्ड ने उनकी शिकायत पर ध्यान दिया. गाने की लाइन हटाने वाले सुझाव को गायब किया. लेकिन कमर हिलाने वाले विज़ुअल पर उन्हें अब भी ऐतराज़ था. अब की बार घई को कॉम्प्रोमाइज़ करना पड़ा. उन्होंने वो हिस्सा हटा दिया. आखिरकार, U/A सर्टीफिकेट के साथ ‘खलनायक’ रिलीज़ हुई. 

‘चोली के पीछे’ गाने को उसके बोल ने लोगों के बीच पॉपुलर कर दिया था. फिर भी अगर किसी ने नहीं सुना था, तो इस पूरी कंट्रोवर्सी के बाद ज़रूर सुन लिया. जनता और फिल्म इंडस्ट्री के बीच ‘चोली’ एक बर्निंग कीवर्ड बन गया था. जिसका फायदा हर कोई उठाना चाहता था. खासतौर पर इस शब्द को लेकर गाने बनाये गए. जिन्हें ‘खलनायिका’, ‘पथरीला रास्ता’ और और ‘दोस्ती की सौगंध’ जैसी फिल्मों में जगह मिली. 

ऊपर जिस ‘खलनायिका’ के बारे में आपने सुना, उसका भी इस ‘खलनायक’ से एक कनेक्शन था. अगले किस्से में उसी पर बात करेंगे. 

# जब फिल्म का राम और श्याम हो गया 

जिस दौरान सुभाष घई ‘खलनायक’ बना रहे थे, उस वक्त मुंबई में एक और फिल्म पर काम चल रहा था. ‘सौतन’ और ‘सनम बेवफा’ जैसी फिल्में बना चुके सावन कुमार हॉलीवुड फिल्म ‘The Hand That Rocks The Cradle’ को हिंदी में बना रहे थे. उनकी फिल्म का टाइटल था ‘खलनायिका’. बस यहीं सुभाष घई के लिए पेच फंस गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों डायरेक्टर एक पार्टी में मिले. जहां सावन कुमार ने ‘खलनायिका’ के बारे में घई को बताया. घई को कोई दिक्कत नहीं थी. दोनों पार्टी खुश. सावन ने इसी खुशी में घई को न्योता तक भेज दिया, कि फिल्म के मुहूरत पर आइए. सुभाष घई तो नहीं गए. पर एक लीगल कम्प्लेंट ज़रूर सावन कुमार तक पहुंच गया. 

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‘खलनायक’ 1993 की चौथी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म थी.

जहां सुभाष घई ने लिखा कि सावन अपनी फिल्म का नाम बदलें. अगर ऐसा नहीं करते, तो दोनों फिल्मों को नुकसान होगा. सावन कुमार को लगा कि पहले तो घई को कोई आपत्ति नहीं थी. फिर अचानक से वक्त, हालात, जज़्बात कैसे बदल गए. खैर, इसका तो जवाब उन्हें नहीं मिला. रही बात लीगल केस की, तो उसका फैसला सुभाष घई के पक्ष में नहीं आया. ‘खलनायक’ और ‘खलनायिका’ दोनों फिल्में रिलीज़ हुईं. 

अगर आपको ‘खलनायक’ का पॉप कल्चर इम्पैक्ट समझना है तो किसी छोटे शहर या गांव का रुख कीजिए. जहां आज भी फिल्म के गाने किसी खस्ताहाल बस या रिक्शा में सुनाई पड़ जाएंगे. सुभाष घई इसे नई ऑडियंस के लिए फिर लाना चाहते थे, सीक्वल के रूप में. जिसकी खबर समय-समय पर आती रहती है. कि फिर से संजय दत्त, माधुरी दीक्षित और जैकी श्रॉफ वाली ओरिजिनल कास्ट लौटेगी. कि टाइगर श्रॉफ फिल्म में अहम किरदार निभाएंगे. हालांकि, पिछले कुछ समय से इस पर कोई ऑफिशियल अपडेट नहीं आया है.      


                                       

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