मूवी रिव्यू - सलार
'सलार' ने प्रभास के फैन्स के दिल से 'आदिपुरुष' का गम तो कम किया है. लेकिन क्या ये उनका धांसू वाला कमबैक करवा पाई?
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Prashanth Neel और Prabhas दोनोके लिए Salaar बहुत अहम फिल्म है. एक को अपनी गद्दी पर फिर से बादशाहत कायम करनी है. तो दूसरे को खुद को ताज के लायक बनाए रखना था. दोनोअपनी चुनौतियों में किस कदर कामयाब हो पाए हैं, अब उसी पर बात करेंगे.
‘सलार’ की कहानी खानसार में सेट है. खानसार इंडिया के नक्शे पर कहीं नहीं दिखता. साल 1127 में तीन कबीलों ने मिलकर खानसार को बनाया. सिर्फ उस शहर को ही नहीं, बल्कि उसके नियम-कानून सब बाकी की दुनिया से अलग रखे गए. हम देखते हैं कि अंग्रेज़ भी खानसार पर राज नहीं कर पाए थे. इसी खानसार में दो बच्चे बड़े हो रहे थे – वर्धराज और देवा. दोनो के बचपन में कुछ घटता है. उसके चलते दोनो की दोस्ती अटूट हो जाती है और देवा अपने सिर पर वर्धा का एहसान लेकर शहर से विदा लेता है. कहानी कुछ साल आगे बढ़ती है. वर्धा को खानसार का तख्त सौंपा जाना है. लेकिन ये बाकी कबीलों के सरदार को नागवारा है. षडयंत्र रचे जाते हैं. सब अपनी सेना लेकर वर्धा से लड़ने को तैयार हैं. अब वो अपनी सेना खोजने निकलता है. सेना के नाम पर उसके पास सिर्फ एक आदमी है, उसके बचपन का दोस्त देवा. वो इकलौता कई सेनाओं के बराबर है. आगे दोनो दोस्त मिलकर अपने दुश्मनों से कैसे लड़ते हैं और फिल्म किस नोट पर खत्म होती है, ये ‘सलार पार्ट 1: सीज़फायर’ की मोटा-माटी कहानी है.
# प्रभास द जेंटल जाइंट
‘साहो’, ‘आदिपुरुष’ और ‘राधे श्याम’ नहीं चली. प्रभास को एहसास था कि उनका स्टारडम सिर्फ ‘बाहुबली फेम’ तक बना नहीं रह सकता. मेकर्स भी जब स्टार को लेकर फिल्में बनाते हैं तो एक बात से पूरी तरह वाकिफ होते हैं. किसी सुपरस्टार के फैन उसे देखने आ रहे हैं, ना कि उसके किरदार को. इसी वजह के चलते अनुराग कश्यप ने ‘द लल्लनटॉप’ के न्यूजरूम में बताया था कि कोई डायरेक्टर शाहरुख के साथ फिल्म प्लान नहीं कर सकता. बल्कि शाहरुख आपके साथ फिल्म प्लान करते हैं. ऐसे में डायरेक्टर पर दबाव आ जाता है कि वो हीरो को उसी अंदाज़ में दिखाए जिसकी फैन्स को आदत पड़ चुकी है. ज़रा सा एक्सपेरिमेंट भी फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन की जेब में बड़ा छेद कर सकता है.
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प्रशांत नील ने अपना होमवर्क पूरी तरह टाइट रखा. उन्होंने प्रभास को उसी एक्शन स्टार की तरह दिखाया जैसे उनके फैन्स देखना चाहते हैं. प्रभास के बाइसेप्स से लेकर उनके चेहरे, उनकी आंखों के भरपूर क्लोज़-अप शॉट्स हैं. फिल्ममेकर्स स्टार के फैन्स के लिए इधर-उधर कुछ पॉपुलर रेफ्रेंस छिड़कते रहते हैं. जैसे शाहरुख के किरदार का बाहें फैलाने वाला पोज़. उसी तरह ‘सलार’ में भी प्रभास का एक पॉपुलर रेफ्रेंस इस्तेमाल किया है. एक दरबार किस्म का सेटअप है. वहां देवा अपने दोस्त से बात करते हुए दूसरे किरदार का हाथ काट डालता है. उस शख्स का हाथ ज़मीन पर पड़े, उससे पहले आपके दिमाग में ‘बाहुबली 2’ का सीन कौंध उठता है. जहां प्रभास का किरदार देवसेना के सामने किसी की गर्दन काटता है. थिएटर में ऐसे ही सीन ताली बटोरते हैं.
बीते कुछ समय से हमारा सिनेमा रोष दिखाने वाले मर्दों से खचाखच भर गया है. प्रभास का देवा उन जैसा भी है और कुछ मामलों में उनसे जुदा भी. देवा को गुस्सा आता है. जब हाथ उठाने को आता है तो खून-खच्चर मचा देता है. लेकिन उसका एक दूसरा पक्ष भी है. जो खुद से आधी उम्र वाले बच्चों के साथ क्रिकेट खेलता है. सामने वाले की गलती होने पर भी उससे झगड़ता नहीं, बल्कि सॉरी कहकर दो कदम पीछे कर लेता है. देवा किसी जेंटल जाइंट जैसा दिखता है. हाथों में असीम शक्ति है, लेकिन अपने दंभ में हर किसी से लड़ता नहीं फिरता.
प्रशांत नील भले ही प्रभास को एक्शन स्टार की तरह दिखाने में कामयाब हुए हों लेकिन फिर भी ये उनका सबसे मज़बूत काम नहीं. पहली बात तो ये गैर-ज़रूरी रूप से लाउड है. फिल्म का साउंड इतना ज़्यादा था कि आपकी सेंसिबिलिटी पर हमला करता है. साउंड के हिसाब से सबसे बेस्ट पार्ट वो था जब सीन कुछ पल के लिए पूरी तरह शांत हो जाता है. उस पॉइंट पर आपको एहसास होता है कि फिल्म में कितना ज़्यादा शोर-शराबा है. फिल्म का टीज़र और ट्रेलर देखकर KGF वाली फील आ रही थी. लोगों का मानना था कि ये उसी यूनिवर्स की फिल्म है. दूसरा KGF और ‘सलार’ के सिनेमैटोग्राफर भुवन गौड़ा ही हैं. इसलिए मेकर्स ने वैसी फील रखी है. वही काले, मटमैले भूरे रंग के फ्रेम. लेकिन इस फिल्म का KGF से कोई वास्ता नहीं.
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प्रशांत ने एक इंटरव्यू में कहा था कि दोनोफिल्मों का एक जैसा दिखना महज़ इत्तेफाक है. उन्होंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया. फिल्म का KGF जैसा दिखना उसकी कोई मदद नहीं करता. आपके दिमाग में लगातार ये बात चलती है कि ऐसी कहानी तो पहले भी देखी है. फिर यहां नया क्या रह जाता है. अगर आगे भविष्य में जाकर मेकर्स दोनोयूनिवर्स को एक छत के नीचे ले आते हैं, तभी इस चॉइस को जस्टिफाई कर पाएंगे.
# दो सेकंड के शॉट, इमोशन के दुश्मन
‘सलार’ को उज्ज्वल कुलकर्णी ने एडिट किया है. KGF 2 के भी एडिटर वही थे. हुआ ये कि उन्होंने KGF को लेकर एक फैन एडिट किस्म का वीडियो बनाया. इस वीडियो ने प्रशांत नील तक अपना पता ढूंढ लिया. उन्होंने KGF Chapter 2 एडिट करने की ज़िम्मेदारी उज्ज्वल को दे दी. ‘सालार’ पर उज्ज्वल ने ठीक-ठाक काम किया. फिल्म के पहले हाफ में बहुत सारी जानकारी आपकी ओर फेंकी जाती है. ये याद रखना मुश्किल हो जाता है कि किस किरदार का दूसरे से क्या ताल्लुक है. उसमें फिल्म की एडिटिंग ऐसी है कि धड़ाधड़ शॉट्स आते हैं. हर शॉट की एवरेज लंबाई करीब दो से तीन सेकंड है. ये पहली नज़र में किसी को देखने में कूल लग सकता है. लेकिन ये चीज़ किसी सीन का इमोशन बने रहने नहीं देती. अगर आपके पास किसी किरदार को देखने के लिए चंद सेकंड ही हैं तो आप उतने में उसकी आंखों में झांककर सच्चाई कैसे खोज सकते हैं. ये क्विक कट्स फॉर्मूला में तब्दील होते जा रहे हैं.
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फिल्म में उनकी एडिटिंग ने कहां सीन को उठाने का काम किया, अब उस पर बात करते हैं. एक सीन में हम देखते हैं कि कुछ लोगों को ड्रग्स के नशे में रखा जा रहा है. उनकी आंखों के सामने लाल रंग पड़ते ही वो लोग खाने को दौड़ते हैं. विलन उन्हें जंगली कुत्ता कहता है. एक जगह वो लोग एक किरदार पर हमला करते हैं. उसकी ओर चीखते हुए दौड़े चले आ रहे हैं. आपको उनके चिल्लाने का शोर नहीं सुनता. बल्कि लहू के प्यासे कुछ जंगली कुत्तों के भौंकने की आवाज़ सुनाई पड़ती है. ऐसा एक और जगह किया गया है जहां कुछ महिलायें देवा को मां काली के रूप की तरह देखती हैं.
इस सीन पर होने वाली बातचीत भुवन गौड़ा के बिना पूरी नहीं हो सकती. प्रशांत और भुवन की जोड़ी को पता है कि लार्जर दैन लाइफ चीज़ें कैसे बनाई जाती हैं. यहां कुछ शॉट्स ऐसे हैं जो विज़ुअल ट्रीट की तरह हैं. मतलब पॉज़ कर के देखने का मन करता है. देवा इस तरह गुंडों को मारता है कि उसके 10 हाथ प्रकट होते दिखते हैं. ये सीन फिल्म के सबसे मज़बूत पॉइंट्स में से एक है.
# बंदों में कहां दम था
प्रभास पूरी फिल्म में बस खुद ही हैं. उनके एक एक्स्प्रेशन से दूसरे में फर्क कर पाना मुश्किल है. एक्शन सीन्स में वो जच रहे हैं. उसके अलावा एक्टिंग के लिहाज़ से यहां ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी. वर्धराज बने पृथ्वीराज सुकुमारन के हिस्से भी भारी-भरकम एक्टिंग वाले सीन्स नहीं आए. एक्शन सीन्स में वो सही हैं. उनसे जितना काम मांगा गया, उतना वो डिलिवर कर देते हैं. यहां दो एक्टर्स की बात की जानी ज़रूरी है. देवा की मां बनी ईश्वरी राव और वर्धराज की बहन बनी श्रिया रेड्डी. एक सीन है जहां देवा की मां उसके हाथ में प्लास्टिक का चाकू देखकर दहशत में आ जाती है. वहां आपको लगेगा कि इसमें क्या बड़ी बात है. लेकिन ईश्वरी के चेहरे को घेरे डर को देखकर लगता है कि कुछ बहुत बुरा घट चुका है. उसी के ख्याल से वो कांप रही है.
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श्रिया के हिस्से ज़्यादा सीन नहीं आए लेकिन जितने भी सीन थे, वहां उनकी प्रेज़ेंस बेहद मज़बूत थी. आदमियों से भरे दरबार में भी आपका ध्यान उन पर जाएगा. उन्होंने ऐसा काम किया है. इन दो महिलाओं के अलावा फिल्म में एक और महिला किरदार है जसई पर बिल्कुल भी मेहनत नहीं की गई. श्रुति हासन का कैरेक्टर आद्या एक अहम कड़ी की तरह काम करती है. लेकिन फिल्म की कमज़ोर राइटिंग उन्हें ऑडियंस का मेम्बर बनाकर छोड़ देती है. उसके साथ ही श्रुति का काम भी यादगार किस्म का नहीं. ज़्यादातर सीन्स में उनकी डायलॉग डिलीवरी ओवर-द-टॉप ही जा रही थी.
‘डंकी’ और ‘सलार’ आगे-पीछे रिलीज़ हुई हैं. दोनो पूरी तरह से विपरीत टोन वाली फिल्में हैं. समानता के नाम पर सिर्फ एक ही चीज़ मौजूद है - ये दोनो बहुत एवरेज किस्म की फिल्में हैं.
वीडियो: सलार देखकर क्या बोले लोग? प्रभास की एक्टिंग देखकर किसको याद करने लगे?