तिथि: नए तरीके से बनाई फिल्म, समझनी भी नए तरीके से पड़ेगी
रेड्डी की इस अनुपम कन्नड़ फिल्म पर गर्व किया जा सकता है. उनके भविष्य के काम को लेकर भी बहुत उत्साह जाग गया है.
Advertisement

फोटो - thelallantop
फिल्म: तिथि । निर्देशक: राम रेड्डी । भाषा: कन्नड़ (अंग्रेजी सबटाइटल)
1. मनोरंजक और एंगेजिंग. फिल्मों को सिर्फ और सिर्फ इन दो पैमानों पर हम आंकते हैं. तिथि इन दोनों से भी परे जाती है. आंकने वालों को सोचना पड़ेगा कि जो देख रहे हैं उसे कैसे परिभाषित करें.2 . फिल्मों का ऐसा विकेंद्रीकरण नहीं दिखा है. तिथि के सारे कलाकार कर्नाटक के मंड्या और एक-दो गांवों के हैं. सामान्य रोजगार करने वाले और किसान लोग. जिंदगी में फीचर फिल्म कैमरा के सामने जो कभी खड़े नहीं हुए. फिल्म का कास्टिंग डायरेक्टर एरे गवडा उसी गांव का. पात्र और कहानी उन्हीं गांवों से उपजे. पूरी तरह गैर-फिल्म उद्योगी फिल्म है.3. मौलिक प्रस्तुति है. कहीं कोई मिलावट नहीं. न मुख्यधारा के कमर्शियल फॉर्मूलों की, न क्षेत्रीय फिल्मों की प्रकृति की, न ही विश्व सिनेमा के ऑटरों जैसी महत्वाकांक्षी छाप की. ये अपने गांव के प्रति प्रेम से उपजी अनुभूति लगती है.4. निर्देशक राम रेड्डी ने ग्रामीण जीवन के इतने सारे पहलुओं को बहुत ही समझदारी और सरलता के साथ दिखाया. उन्होंने ये भी दिखाया कि प्रगतिशील सोच होने का महानगरों में रहने और अंग्रेजी बोलने से कोई लेना देना नहीं है. वरना घोर ग्रामीण परिवेश के फक्कड़ वयोवृद्ध गडप्पा को अपने पिता और पत्नी के संबंधों का पता चलने पर बड़ी कठोर राय बना लेने में एक पल भी नहीं लगता था. लेकिन वह अद्भुत रूप से दार्शनिक और आधुनिक है. वह जिस रूप से इस पूरे घटनाक्रम और जीवन को लेता है, वह प्रेरणा और समझदारी देता है. वरना आम तौर पर तो इस परिवेश वालों को जंगली और असभ्य बताने पर ही जोर रखा जाता है.5. ये चार पीढ़ियों की कहानी है. सेंचुरी गवडा जो 101 साल का है. सनकी, बड़बड़ाने वाला, नेगेटिव और रसिया. गडप्पा जो उसका बेटा है और लंबी दाढ़ी होने के कारण उसका ये नाम पड़ा, वह भी बहुत बूढ़ा है. उसका मन संसार में नहीं लगता. वो नंगे पैर दिन भर घूमता रहता है. टाइगर ब्रांड का पव्वा पीता है. बीड़ी सुलगाता रहता है. गडप्पा का पात्र मन मोह लेता है.वह भारतीय फिल्मों के सबसे महत्वपूर्ण दर्शन और आदतों वाले आदमियों में से एक है. ये और है कि हम अपने गांवों-कस्बों में ऐसे पात्रों से हमेशा मिलते हैं लेकिन उनके कपड़े और महत्वहीनता को देख आगे बढ़ जाते हैं और ऐसे लोग ढूंढ़ते हैं जो चमकीले और महत्वपूर्ण हों. महत्वहीन होना उनका आवरण होता है, वे एकाकी होना ही पसंद करते हैं. उन्हें किसी से कुछ नहीं चाहिए, उल्टे कभी कुछ भी दे सकें तो दे देते हैं.6. गडप्पा की कहानी को राम रेड्डी विशेष रूप से कहें तो बहुत अनुपम फिल्म बन सकती है. सिर्फ उन्हीं को लेकर पूरी कहानी कही जा सकती है. ऐसा ही सेंचुरी गवडा के साथ है जो फिल्म के पहले दृश्य में एक-दो मिनट के लिए आते हैं और फिर हम उन्हें भूल नहीं पाते. उन पर भी एक फिल्म अलग से बने तो बेहद पसंद की जाएगी.7. गडप्पा का बेटा है थमन्ना जो सांसारिक होने को अभिशप्त है. ऐसा नहीं है कि वह विलासी है या अपने सुख के लिए कुछ चाहता है. लेकिन घर चलाने का तनाव उसी ने लिया हुआ है. उसे देखकर दुख होता है. हम भी वो नहीं होना चाहते लेकिन होना पड़ता है. उसका बेटा अभि मासूम नौजवान है. उसका शराब पीना, पत्ती खेलना, भेड़ चराने वाली युवती कावेरी के प्रति आकर्षित होना बहुत सामान्य लगता है. तिथि के पात्र और उनकी वैयक्तिक पहचानों का बने रहना इसकी बड़ी उपलब्धि है. इतने किरदार हैं और सब याद रहते हैं. भले ही वो सेंचुरी गवडा की अंतिम सवारी में बजते बैंड के आगे नाचते शराबी ग्रामीण का पात्र ही क्यों न हो.8. तिथि ऐसी फिल्म है जिस पर गौरव किया जा सकता है. ये जिस तरह का कथ्य है वो श्रेष्ठतम श्रेणी का है. यही भविष्य के सिनेमा का प्रारूप है. तिथि देखकर आपके भीतर कुछ घटेगा नहीं, बढ़ेगा ही.इंटरव्यू: राम रेड्डी जिनकी 'तिथि' ने आमिर-अनुराग सबको लोट-पोट कर दिया