इस फिल्ममेकर की लगभग सभी फिल्मों को मिल चुका है नेशनल अवॉर्ड
अजय देवगन इनके काम से इतने प्रभावित हुए कि फिल्म करने की रिक्वेस्ट की.

भारत में दो तरह का सिनेमा बनता है. पहला है कमर्शियल जो ज्यादातर जनता के लिए बनता है. दूसरा है समानांतर जो गंभीर विषयों वाला और कलात्मक होता है. दोनों का अपना महत्व है. दूसरी तरह के, यानी समानांतर सिनेमा में श्याम बेनेगल के बड़ा नाम रहे हैं. बाद में गोविंद निहलानी ने भी ऐसी जबरदस्त फिल्में बनाईं. वही निहलानी जिन्हें पहली ही फिल्म 'आक्रोश' (1982) के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था. पहले वे सिनेमेटोग्राफर थे, बाद में डायरेक्शन में आए. वो एक अलग दर्जे के फिल्मकार हैं और ये बात उनकी 'अर्धसत्य', 'द्रोहकाल', 'दृष्टि', 'संशोधन' और 'तमस' जैसी फिल्में देखकर पता चलता है. इनके अलावा उन्होंने 'तक्षक' (1999) और देव (2004) जैसी बॉलीवुड मूवीज़ भी बनाईं जो सराही गईं. उनका फिल्मों को देखने का तरीका अलग है, सोच अलग है, मेकिंग अलग है. इसी को समझेंगे उनकी लाइफ के कुछ किस्सों से, आज उनके बर्थडे के मौके पर.
गोविंद के पापा पाकिस्तान में संस्कृत स्कूल चलाते थे
उनका जन्म 19 दिसंबर, 1940 को कराची में हुआ था. गोविंद सिन्धी परिवार से हैं. उनके परिवार में सबने बेसिक हिंदी और संस्कृत की ही पढ़ाई की. परिवार के पहले पूरे पढ़े-लिखे सदस्य गोविंद ही हैं. उनके परिवार का पाकिस्तान में ही बिज़नेस था. लेकिन आज़ादी के बाद उन्हें सब कुछ वहीं छोड़कर हिंदुस्तान आना पड़ा. हिंदुस्तान आने के बाद गोविंद का परिवार राजस्थान के उदयपुर में बस गया. गोविंद की प्राइमरी एजुकेशन भी वहीं हुई. बाद में गोविंद ने सिनेमैटोग्राफी की पढ़ाई बैंगलोर से की.

गोविंद निहलानी
ऐसे रुझान हुआ सिनेमैटोग्राफी की तरफ
आमतौर पर कॉलेजों में हम जिस कोर्स को चुनते हैं सिर्फ उसी की पढ़ाई होती है. गोविंद इस मामले में लकी रहे कि उन्हें सिनेमैटोग्राफी के साथ-साथ फिल्ममेकिंग के कई विभागों की पढ़ाई विशेष तौर पर हासिल हुई. सेकेंड्री एजुकेशन पूरी करने बाद गोविंद फोटोग्राफी का कोई कोर्स करना चाहते थे क्योंकि उन्हें इसका शौक था. उनके एक कज़िन भी फोटोग्राफी करते थे तो उन्हें बेसिक नॉलेज उनसे मिल गई थी. लेकिन थोड़ा बाद में उन्हें पता चला कि सिनेमैटोग्राफी नाम की भी कोई चीज़ होती है, जो ड्राइंग और फोटोग्राफी जैसी कलाओं का मिश्रण होती है. गोविंद ने मौका ताड़ा और बैंगलोर के श्री जाया चम्राजेंद्र पॉलिटेक्निक कॉलेज में एडमिशन ले लिया. यहां उन्होंने सिनेमैटोग्राफी का कोर्स चुना. लेकिन सिनेमैटोग्राफी के दौरान उन्हें साउंड डिज़ाइन और एडिटिंग भी सिखाई जाती थी. गोविंद जब कॉलेज से निकले तब तक उन्हें फिल्ममेकिंग की बढ़िया जानकारी हो गई थी.

शूटिंग के दौरान गोविंद निहलानी
गुरु दत्त के ख़ास रहे वीके मूर्ति को असिस्ट किया
कॉलेज से निकलने के बाद वे अपने ही कॉलेज के पूर्व छात्र और मशहूर सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति से मिले. वीके को उनका काम पसंद आया और उन्होंने गोविंद को इंटर्न रख लिया. मूर्ति के जरिए ही गोविंद मशहूर थिएटर-डायरेक्टर सत्यदेव दुबे से मिले. सत्यदेव उन दिनों एक कोर्ट रूम ड्रामा प्लान कर रहे थे, जो नामी नाटककार विजय तेंदुलकर ने लिखा था. गोविंद ने उनके नाटक 'खामोश! अदालत ज़ारी है' में न सिर्फ सिनेमैटोग्राफी की बल्कि उधार पैसे लेकर को-प्रोड्यूस भी की. ये प्ले एक ब्लैक एंड वाइट कोर्टरूम ड्रामा था जो बाद में काफी मशहूर हुआ.

मशहूर थिएटर डायरेक्टर सत्यदेव दुबे
वीके मूर्ति को याद करते हुए गोविंद बताते हैं कि उन्होंने कैसे अपना लाइट मीटर और व्यू फाइंडर उन्हें उधार दिया था. ये वही इक्विपमेंट थे जिस पर उन्होंने गुरु दत्त की 'कागज के फूल' और 'साहब बीबी और गुलाम' जैसी फ़िल्में शूट की थीं. वीके मूर्ति के ऐसा करने के बाद गोविंद बहुत इमोशनल हो गए. ये उनके करियर की सबसे शुरुआती यादों में से है.

गुरु दत्त के खास और मशहूर सिनेमेटोग्राफर वीके मूर्ति
हॉलीवुड फिल्मों में भी सिनेमैटोग्राफी की
हॉलीवुड के मशहूर डायरेक्टर रिचर्ड एटनबरो महात्मा गांधी पर एक फिल्म बनाना चाहते थे. उस फिल्म में सिनेमैटोग्राफी के लिए उन्होंने गोविंद निहलानी को चुना. साल 1982 में आई फिल्म 'गांधी' ने गोविंद को कई तरीकों से इंस्पायर किया. पहले तो उन्हें उनके टीवी शो 'तमस' के लिए प्रेरित किया, सिनेमैटोग्राफी क्या होती है ये बताया और हॉलीवुड का एक्सपोजर भी दिया. ये फिल्म सही मायनों में उनके लिए बड़ी सीख रही थी.

फिल्म 'गांधी' का पोस्टर
फिल्म के दौरान उनके डायरेक्टर ने उन्हें बहुत आज़ादी दी थी. गोविंद जब भी रिचर्ड से पूछते कि वो कैसा सीन चाहते हैं तो रिचर्ड उनसे ही पूछ लेते कि "तुम क्या चाहते हो? तुम्हें जो सही लगता है वो करो. सिर्फ एक चीज़ का ख्याल रखना कि भारत को हम बड़ी आबादी वाले देश के रूप में देखते हैं, तो तुम्हें अपने फ्रेम में भीड़ दिखानी है." गोविंद ने उनकी बात गांठ बांध ली और सिर्फ फिल्म के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी के लिए. उसके बाद गोविंद ने जब 'तमस' डायरेक्ट की तब भी इस चीज़ का खास ख़्याल रखा था. गोविंद इसे एक बहुत बड़ी सीख मानते हैं.

'गांधी' फिल्म की शूटिंग के दौरान रिचर्ड.
अजय देवगन ने खुद उनके साथ फिल्म करने के लिए पूछा
अजय देवगन का फ़िल्मी करियर सही चल रहा था. 90s में उनकी कई हिट फ़िल्में आ चुकी थी. उस दौर में उन्होंने तक़रीबन सभी बड़े डायरेक्टरों के साथ काम कर लिया था. लेकिन वो गोविंद के काम से भी खासे प्रभावित थे और उनके साथ काम करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अपने सभी स्टार वाले नखरे छोड़कर खुद गोविंद निहलानी के साथ काम करने के लिए उनसे मुलाकात की. गोविंद को जब ये बात पता चली कि अजय सच में उनके साथ काम करने को लेकर सीरियस हैं, तो उन्होंने एक मीनिंगफुल फिल्म प्लान की. ये फिल्म थी 'तक्षक'. ये मुंबई के बैकग्राउंड में बुनी गई एक रोमांटिक फिल्म थी. फिल्म में अजय का किरदार एक बिज़नसमैन का था. इस फिल्म में अजय के साथ तबु, राहुल बोस और अमरीश पुरी भी थे.

फिल्म 'तक्षक' का पोस्टर
नोट: गोविंद निहलानी का पूर्व सेंसर बोर्ड चीफ पहलाज निहलानी से कोई लेना-देना नहीं है.