कैश के लिए लगी लाइनों में मौत से लेकर नई जिंदगी अर्थात बच्चे की डिलिवरी तक हो रही है. आपको क्या लगता है, इसकी रिपोर्ट सरकार तक नहीं पहुंची. सरकार की नजर आपकी समस्या पर है. और इन समस्याओं को खतम करने की भरसक कोशिश कर रही है सरकार. लाइनों का कहर कम हो. इसके लिए RBI तेजी से नोट छपवा रहा है. और इसके चक्कर में मेक इन इंडिया प्लान चौपट हुआ जा रहा है. क्योंकि ये नए नोट 100 परसेंट भारत में बन नहीं रहे हैं.
अभी कैसे इन नोटों की छपाई चल रही है. जरूरी पॉइंट्स में पढ़ो.
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इस समय चार करेंसी प्रिंटिंग प्रेस धकापेल चल रहे हैं. तीन शिफ्ट में काम हो रहा है. काम करने वालों के लिए लंच ब्रेक जैसी कोई चीज नहीं है.
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मध्य प्रदेश के देवास और महाराष्ट्र के नासिक में दो प्रिंटिंग प्रेस डायरेक्ट रिजर्व बैंक के अंडर में काम कर रहे हैं.
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नासिक में रोज 90 लाख नोट प्रिंट किए जा रहे हैं. दो लाइनों में. फोकस 500 रुपए के नोटों पर है. देवास में भी 90 लाख का ही लमसम रेट है.
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इनके अलावा एक प्रिंटिंग प्रेस मैसूर में और दूसरा सलबोनी, वेस्ट बंगाल में हैं. ये रिजर्व बैंक की सहयोगी संस्था भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड के अंडर में हैं. रोज 2000 रुपए के 4 करोड़ नोट निकाल रही हैं.
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अब सुनो असली बात. RBI के अफसरों से पता चला है कि वो नोटों में लगने वाली सिक्योरिटी वाली चीजें, माने वो चमकीला तार इटली, यूक्रेन और यूनाइटेड किंगडम से इम्पोर्ट कर रहे हैं.
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पेपर सबसे बेसिक चीज है नोट्स की. लेकिन वो भी इंडिया का पूरा नहीं पड़ रहा है. आधा होशंगाबाद, एमपी से आ रहा है. आधा आ रहा है यूके से.
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जो स्याही है, वो आ रही है एमपी, सिक्किम और राजस्थान से. लेकिन ये बनती यहां नहीं है. परदेसी पिया है ये स्याहिया. विदेश से इम्पोर्ट होती है. फिर लोकल लेवल पर आ जाती है.
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नोट का एक बैच छपने में आठ दिन लगते हैं. इत्ता टाइम नहीं है कि उसके सोर्स पर माथामारी की जाए. विपिन मलिक RBI सेंट्रल बोर्ड के पूर्व निदेशक हैं. कहते हैं कि हम सारी ताकत लगाकर प्रिंटिंग करें और बिना डैमेज और मिसप्रिंट वाले नोट निकालें. फिर भी स्थिति को नॉर्मल करने में पांच महीने लगेंगे.