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बच्चों जाओ देख के आओ, पांडा को पापा मिल गए

फिल्म रिव्यू कुंगफू पांडा 3: मजेदार घटनाओं और रंगीन दृश्यों से भरी पिक्चर है. लेकिन यह सिर्फ 'कुंगफू पांडा' ब्रांड की बुनियाद पर खड़ी है.

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कुलदीप
1 अप्रैल 2016 (Updated: 1 अप्रैल 2016, 07:39 AM IST) कॉमेंट्स
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फिल्म: कुंगफू पांडा-3 ड्यूरेशन: 1 घंटा 35 मिनट डायरेक्टर: जेनिफर नेल्सन, एलेसांद्रो कार्लोनी टाई लगाकर ऑफिस जाने वाले एक मुंहबोले बड़े भाई हैं, बड़े सीरियस बनते हैं. 'कुंगफू पांडा' के दो सीजन हमने उन्हें लैपटॉप पर दिखाए और वो पेट पकड़कर खूब हंसे. बच्चा सबके अंदर होता है, बस आप उसे समझदारी के नकाब तले दबाए रखते हैं. इसलिए बड़ों को भी कार्टून फिल्में देखनी चाहिए. निश्छल होती हैं. https://www.youtube.com/watch?v=10r9ozshGVE कुंगफू पांडा सीरीज की तीसरी फिल्म आ गई है. डरावनी आंखों वाले खतरनाक मोर (लॉर्ड शेन) को पछाड़ने के बाद अपना प्यारा पांडा (पो) लौट आया है. शीफू संन्यास लेकर पो को नया मास्टर बनाना चाहते हैं. इस बार नया विलेन सामने है, जिसका नाम है- काई. अपने पुराने दोस्त कछुआ मास्टर (ऊग्वे) समेत कई मास्टरों की शक्ति छीनकर वह ड्रैगन वॉरियर की घाटी में लौटा है. पो और फ्यूरियस फाइव की जोड़ी उसे रोकेगी, यही फिल्म है.
कहानी का नया पहलू यह है कि पो को अपने असली पापा मिल गए हैं. साथ ही मिल गया है एक खुफिया गांव, जिसमें सिर्फ गुलगुल पेटों वाले क्यूट पांडा रहते हैं. काई के खिलाफ लड़ाई में पांडा फैमिली का क्या रोल रहता है, पिक्चर में देखिएगा.
पेरेंट्स अपने बच्चों को फिल्म दिखाने जरूर ले जाएं. मजेदार फिल्म है, गुडविल और पुराने पसंदीदा किरदारों से भरी हुई. फिल्म बिना बोर किए सामने से गुजरती रहेगी. बच्चे खिलखिलाते रहेंगे. लेकिन इस बार जो बड़े भाईसाहब लोग देखने जा रहे हैं, वे दो-चार बातें पहले जान लें. https://www.youtube.com/watch?v=fGPPfZIvtCw 8 साल पहले जब कुंगफू पांडा सीरीज की पहली फिल्म आई थी तो बच्चों और बड़ों, दोनों को अपना पंखा बना लिया था. लेकिन तीसरी फिल्म ऑडियंस के दायरे में इजाफा नहीं करती है.
फिल्म अच्छी है, मजेदार घटनाओं और रंगीन दृश्यों से भरी. लेकिन यह सिर्फ 'कुंगफू पांडा' के ब्रांड की बुनियाद पर खड़ी है. किरदारों के नए पक्ष को दिखाने की कोशिश नहीं दिखी. बल्कि कहानी ही कुछ ऐसी है कि पो के कैरेक्टर की कोई नई चीज नुमायां नहीं हो पाती.
कैरेक्टराइजेशन के लेवल पर सब कुछ वैसा है- जैसा पहली दो फिल्मों में दिख चुका है. हालांकि जो हो चुका है, वही इतना मजेदार है कि बहुत सारे लोग उसका विस्तार देखने से भी परहेज नहीं करेंगे. लेकिन कुछ सीन बहुत सही हैं. खास तौर से वो वाला, जब पो और उसके असली पापा का मिलन होता है. दोनों बहुत खुश हो जाते हैं. पो पहली बार अपने जैसे किसी पांडा की तोंद से तोंद टकराकर बल्लियों उछलता है. लेकिन पो को पालने वाले नूडलसेलर डैड मिस्टर पिंग जल-भुन उठते हैं. सबूत मांगते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=yqN7nHM1YTA इसलिए देख सकते हैं. मैंने देखी, बिना बोर हुए. लेकिन यह 'आउटस्टैंडिंग' फिल्म नहीं है. फिल्म के बेसिक एलीमेंट्स वही हैं, पो का सेंस ऑफ ह्यूमर, कुंगफू की एनीमेटेड मार-धाड़, क्यूट मास्टर शीफू और फ्यूरिस फाइव लड़ाकों की सूझबूझ. अगर इनमें से किसी भी चीज के आप बहो-बड़े शौकीन हो, तो आराम से पिक्चर देख आओ. अच्छी लगेगी. थ्रीडी में और अच्छी लगेगी. पर टाई बांधने वाले हमारे सीरियस भाईसाहब को इस बार नहीं जमी. शायद कुंगफू पांडा-3 के लिए हमने बहुत बड़ा जूता सोच रखा था. फिल्म के पांव ज़रा छोटे रह गए.
लेकिन ये सब तो बातें हैं. हम बड़का मूवी क्रिटीक बन रहे हैं तो लिख रहे हैं. इस फिल्म सीरीज की कामयाबी का राज़ 'पो' के लिए हमारा अथाह प्यार है. 'पो' जो निश्छल मूर्खता और बचपने से भरा बुराई रहित पांडा है. जिसके भीतर वक्त पड़ने पर न जाने कहां से एक हुनरमंद कुंगफू योद्धा आ जाता है.
हम सब ऐसे ही होना चाहते हैं. चाहते हैं कि हमें हमारे अधूरेपन और अपराधों के साथ स्वीकार किया जाए, क्योंकि वक्त पड़ने पर हम भी नायक बन सकते हैं.

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