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फिल्म रिव्यू- मालिक

घिसे-पीटे आइडिया और स्टोरीलाइन पर बनी होने के बावजूद 'मालिक' इतनी पावरफुल फिल्म है, जो आपको आखिर तक बांधकर रखती है.

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फिल्म 'मालिक' के एक सीन में अपने करीबी दोस्त डेविड के बेटे पर बंदूक ताने सुलेमान का रोल करने वाले फहाद फाज़िल. इस फिल्म को महेश नारायणनन ने डायरेक्ट किया है.
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श्वेतांक
15 जुलाई 2021 (Updated: 15 जुलाई 2021, 02:52 PM IST) कॉमेंट्स
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थिएटर्स बंदी का एक फायदा हो रहा. सिनेमा के नाम पर कुछ क्वॉलिटी कॉन्टेंट देखने मिल रहा है. ये बात हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमने एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर फहाद फाज़िल की नई फिल्म 'मालिक' देख ली है. 'मालिक' क्या है? किस बारे में है? और सबसे ज़रूरी सवाल- कैसी है? आगे हम इसी बारे में विस्तार से बात करेंगे.
फिल्म की कहानी
'मालिक' की कहानी शुरू होती है केरल के रामदापल्ली गांव में. सुलेमान उर्फ इक्का अली नाम के एक चर्चित क्रिमिनल के यहां भोज चल रहा है. गांव के गरीब-दुखियारे लोग खाना खा रहे हैं. फिर अपनी दिक्कतें इक्का को बता रहे हैं. क्योंकि इलाके में इक्का का सिक्का चलता है. मगर अब इक्का सारे गलत काम छोड़ हज को जा रहा है. हालांकि ये फिल्म उसके हज जाने के बारे में नहीं है. ये कहानी है 6 साल की उम्र में मौत के मुंह से लौटकर आए बच्चे और उसके गांव रामदापल्ली के गांव के बारे में. इस गांव में मुसलमान और क्रिश्चन दोनों रहते हैं. हंसी-खुशी से आपस में मिल जुलकर. सुलेमान अपने कुछ दोस्तों डेविड, पीटर और अबू के साथ मिलकर गलत धंधे शुरू करता है. समुद्र किनारे गांव होने की वजह से उसका मेन धंधा स्मग्लिंग का है. पर वो अपने इलाके का रॉबिनहूड है. जो भी गलत-सलत काम करता है, उससे अपने गांव के लोगों की मदद करता है. समय के साथ उसका नाम और काम दोनों बड़ा होता चला जाता है. दोस्त भी उसकी मदद से ऊंचे जगहों पर पहुंच जाते है. यहीं से सारा खेल बदलने लगता है. बाहरी बहकावे की वजह से गांव में धर्म की राजनीति शुरू हो जाती है. बात सामप्रदायिक दंगे से होते हुए इक्का के घर तक पहुंच जाती है. और अल्टीमेटली इन सब झमेलों का शिकार खुद इक्का बन जाता है.
बचपन में छोटे-मोटे क्राइम करते पकड़ा गया सुलेमान, जो आगे चलकर अपने इलाके का सबसे बड़ा क्रिमिनल बनता है.
बचपन में छोटे-मोटे क्राइम करते पकड़ा गया सुलेमान, जो आगे चलकर अपने इलाके का सबसे बड़ा क्रिमिनल बनता है
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एक्टर्स और उनकी परफॉरमेंस
'मालिक' में सुलेमान उर्फ इक्का अली का लीड रोल किया है फहाद फाज़िल ने. उनका किरदार एक साफ दिल वाले इंसान का है, जो अपनी अच्छाई के चक्कर में ही फंसता चला जाता है. उसके दोस्तों को उससे चिढ़ होने लगती है. उसकी मां चाहती है कि काश वो बचपन में ही मर गया होता. मगर गांव के लोग हर सिचुएशन में उसके साथ हैं. 'फॉरेस्ट गंप' फेम डायरेक्टर रॉबर्ट जेमेकिस की फिल्म 'अलाइड' में एक डायलॉग है. फिल्म में स्पाई मरियान का रोल करने वाली मैरियन कोटिलार्ड एक सीन में कहती हैं- I keep the emotions real. Thats why it works. फहाद के किसी फिल्म में होने का सबसे बड़ा फायदा इसी डिपार्टमेंट में मिलता है. क्योंकि एक्टर और कैरेक्टर के बीच की लाइन धुंधली होने लगती है. मगर मिटती नहीं है. एक्सपेरिमेंटल से लेकर मेनस्ट्रीम सिनेमा में फहाद की सफलता की वजह भी काफी हद तक यही है. इस फिल्म में उन्होंने ऐसा रोल किया है, जिसे पहले कई एक्टर ढेरों फिल्मों में निभा चुके हैं. मगर फहाद कैरेक्टर में नयापन नहीं होने के बावजूद उसे देखने और विश्वास करने लायक बनाते हैं.
अपने खास दोस्त डेविड के साथ स्मगलिंग का धंधा करते-करते पुलिस के वॉन्टेड क्रिमिनल्स की लिस्ट में जगह बनाने के बाद अपना गांव छोड़कर जाता सुलेमान उर्फ इक्का अली.
अपने खास दोस्त डेविड के साथ स्मगलिंग का धंधा करते-करते पुलिस के वॉन्टेड क्रिमिनल्स की लिस्ट में जगह बनाने के बाद अपना गांव छोड़कर जाता सुलेमान उर्फ इक्का अली.


'मालिक' में इक्का के दोस्त डेविड का रोल किया है एक्टर विनय फोर्ट ने. डेविड इस कहानी में कैटलिस्ट की भूमिका निभाता है. उसी पॉलिटिक्स का शिकार होकर, जिसमें इक्का फंसा है. इन दोनों किरदारों को अपनी उंगली पर नचाता है इनका दोस्त MLA अबू, जिसका रोल किया है दिलीष पोथन ने. दिलीष मशहूर फिल्ममेकर हैं. अपने करियर की शुरुआत 'महेशिंते प्रतिकारम' डायरेक्ट करके शुरू की थी. जिसमें फहाद ने मुख्य भूमिका निभाई थी. पिछले दिनों रिलीज़ हुई फिल्म 'जोजी' के डायरेक्टर भी दिलीष पोथन ही थे. वो डायरेक्शन के साथ एक्टिंग भी करते हैं. इन सबके अलावा इक्का की पत्नी और डेविड की बहन रोज़लीन के पात्र में दिखी हैं निमिशा सजायन.
सुलेमान का दोस्त अबू, जिसकी सारी प्लैनिंग-प्लॉटिंग और पॉलिटिक्स के चक्कर में सुलेमान बर्बाद होता है. सफेद कपड़े में नज़र आ रहे दिलीष पोथन ने अबू का रोल किया है.
सुलेमान का दोस्त अबू, जिसकी सारी प्लैनिंग-प्लॉटिंग और पॉलिटिक्स के चक्कर में सुलेमान बर्बाद होता है. सफेद कपड़े में नज़र आ रहे दिलीष पोथन ने अबू का रोल किया है.


फिल्म की अच्छी बातें
'मालिक' की कहानी को अगर एक लाइन में समेटनी हो, तो आसानी से इसे एक क्रिमिनल की सेमी-बायोग्रिफकल फिल्म कह सकते हैं. मगर ये फिल्म पूरी तरह से काल्पनिक है. हालांकि फिल्म में दिखाए गए तकरीबन सभी पात्र और उनका चित्रण रियल लगते हैं. ऐसा लगता है गोया किसी फिल्म, मैग्ज़ीन या अखबार की कतरन में आपने वो चीज़ देखी-पढ़ी हो. इस घिसे-पीटे आइडिया और स्टोरीलाइन पर बनी होने के बावजूद 'मालिक' इतनी पावरफुल फिल्म है, जो आपको आखिर तक बांधकर रखती है. ऑलमोस्ट आप पूरी कहानी प्रेडिक्ट कर लेते हैं. मगर आपकी दिलचस्पी इस फिल्म को देखने में कम नहीं होती. ये सारा खेल उस ट्रीटमेंट का, जिस तरह से इस कहानी को परदे पर उतारा गया है.
डेविड की बहन और सुलेमान की पत्नी रोज़लीन का रोल करने वाली एक्ट्रेस निमिशा सजायन.
डेविड की बहन और सुलेमान की पत्नी रोज़लीन का रोल करने वाली एक्ट्रेस निमिशा सजायन.


ये फिल्म इक्का अली की कहानी की मदद से धर्म के नाम पर देश में होने वाली गंदी राजनीति पर प्रकाश डालती है. मगर इस दौरान ये किसी का पक्ष नहीं लेती. किसी को हीरो या विलन बनाने की कोशिश नहीं करती. पूरी तरह जनता के विवेक पर छोड़ती है कि आप इस कहानी में से क्या पिक करना चाहते हैं. और किन चीज़ों को सिनेमा मात्र मानकर छोड़ देना चाहते हैं.
फिल्म की सिनेमैटोग्रफी कहानी के लोकेशन को एस्टैब्लिश करने में मदद करती है. मगर वो फिल्म के नैरेटिव में ऐसा कुछ नहीं जोड़ती, जिसे सिर्फ कैमरा वर्क की वजह से नोटिस किया जा सके. जो भाषा समझ नहीं आती, उसके संवादों पर बात करना बेमानी होगी. क्योंकि हिंदी पट्टी के लोग दूसरी भाषा की फिल्मों को सब-टाइटल्स की मदद से देखते और समझते हैं. अंग्रेजी सब-टाइटल्स की मदद से हमें मोटा-मोटी उस डायलॉग का आइडिया मिल पाता है कि वो किरदार क्या बोल रहे हैं.
फिल्म की बुरी बातें
'मालिक' का बैकग्राउंड स्कोर सामने चल रही गलत चीज़ों को कई बार बड़े एक्साइटिंग और सेलीब्रेट्री टोन में पेश करता है. ये इस फिल्म से मेरी एक छोटी सी शिकायत है. जिसे बड़ी आसानी से नज़रअंदाज़ किया जा सकता है.
सारे गलत काम छोड़कर हज पर जाता सुलेमान अली.
सारे गलत काम छोड़कर हज पर जाता सुलेमान अली.


ओवरऑल एक्सपीरियंस
'मालिक' उस तरह के आइडिया पर बना नया किस्म का सिनेमा नहीं है, जिसकी उम्मीद हमें मलयालम सिनेमा से रहती है. बावजूद इसके वो हिंदी में बनने वाली दिमागखाऊ सिनेमा से कहीं बेहतर चुनाव साबित होता है. तिस पर आप उस मैसेज को इग्नोर नहीं कर सकते, जो ये फिल्म लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती है. जहां तक फिल्म देखने या नहीं देखने की सलाह की बात है, तो आप आप अपनी मर्जी के 'मालिक' हैं.

'मालिक' एमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है.


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