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एक नाम से बनी 9 फिल्में, जो बुरी पिटीं, प्रोड्यूसर बर्बाद हो गए!

इस लिस्ट में शाहरुख खान, सनी देओल और रजनीकांत जैसे एक्टर्स की फिल्में शामिल हैं.

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साल 1980 में आई 'कर्ज़' के बाद ऋषि कपूर की तबियत बिगड़ गई थी.
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यमन
17 जुलाई 2025 (Published: 08:44 PM IST) कॉमेंट्स
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साल 2007 में Shah Rukh Khan की फिल्म Om Shaanti Om रिलीज़ हुई. प्योर मसाला फिल्म. सुपरहिट हुई. Farah Khan ने इस फिल्म के ज़रिए अपने बॉलीवुड नॉस्टैल्जिया को ट्रिब्यूट दिया. फिल्म के शुरुआत में एक सीन है जहां शाहरुख का किरदार ओम एक सेट पर है. सामने ऋषि कपूर ‘ओम शांति ओम’ गाने पर थिरक रहे हैं, और ओम समेत ऑडियंस झूम रही है. ओम के बगल में फराह भी खड़ी हैं. दोनों में नोक-झोंक होती है. वो कहती हैं कि अगर मैं डायरेक्टर होती तो सबसे पहले तुझे बाहर निकालती. खैर इसके बावजूद ओम इन्जॉय करता है. ये सीन बीते कुछ दिनों में वायरल भी हुआ.

ओम जिस गाने पर उछल-कूद कर रहा था, वो ‘कर्ज़’ फिल्म का था. शाहरुख की फिल्म का टाइटल इसी के गाने से आया था. यहां तक कि फिल्म का पुनर्जन्म वाला ऐंगल भी ‘कर्ज़’ की ही देन था. साल 1980 में रिलीज़ हुई ‘कर्ज़’ आज भी किसी-न-किसी तरीके से पॉप कल्चर में लौटती रहती है. संदीप रेड्डी वांगा ने ‘कबीर सिंह’ के ज़रिए हिंदी मार्केट में एंट्री की थी. उस फिल्म में शाहिद कपूर की एंट्री पर ‘कर्ज़’ के गाने ‘ओम शांति ओम’ की कुछ लाइनें बैकग्राउंड में बजती हैं. ‘कर्ज़’ को सबसे ज़्यादा पॉपुलैरिटी उसके म्यूज़िक ने ही बख्शी. ये आज भी उतना ही कैची है, जितना रिलीज़ के समय था. हालांकि रिलीज़ के वक्त फिल्म की बॉक्स ऑफिस पर बुरी दुर्दशा हुई थी. डायरेक्टर सुभाष घई को यकीन था कि उन्होंने एक मज़बूत फिल्म बनाई है. यही भरोसा उन्होंने राज कपूर को भी दिलवाया. फिल्म सिनेमाघरों में उतरी, और दर्शकों को तरस गई. साल 2020 में मिड-डे को दिए इंटरव्यू में सुभास घई बताते हैं कि वो फिल्म के फर्स्ट डे फर्स्ट शो का रिएक्शन देखने वो मुंबई के एक थिएटर गए. वहां देखा कि लोग फिल्म बीच में छोड़कर निकल रहे थे. ये देखकर दिल टूट गया.

‘कर्ज़’ से एक हफ्ते पहले ही संजय खान की ‘कुर्बानी’ रिलीज़ हुई थी. ‘कुर्बानी’ के शोज़ हाउसफुल दौड़ रहे थे. लोगों ने ‘कर्ज़’ की तुलना में उसी को चुना. सुभाष घई बताते हैं कि जिस शुक्रवार को फिल्म रिलीज़ हुई थी, उसके दो दिन बाद ऋषि कपूर को हॉस्पिटल में एडमिट होना. फिल्म की खराब परफॉरमेंस की वजह से वो डिप्रेशन में चले गए. उनकी तबियत बिगड़ गई. इसलिए उन्हें हॉस्पिटल ले जाना पड़ा. ‘कर्ज़’ को समय के साथ भले ही बहुत प्यार मिला, मगर रिलीज़ के वक्त फिल्म को जल्दी ही भुला दिया गया. बीते कुछ सालों से इंटरनेट पर आर्टिकल दौड़ने लगे. उनके मुताबिक ‘कर्ज़’ टाइटल फिल्म के लिए काम नहीं कर सका. उन आर्टिकल्स में लिखा गया कि जब भी किसी हिंदी फिल्म के टाइटल में ये शब्द आया, वो चली नहीं. बुरी तरह फ्लॉप हो गई. हमने ऐसी ही कुछ हिंदी फिल्में ढूंढने की कोशिश की, जिन्होंने अपने टाइटल में कर्ज़ शब्द इस्तेमाल किया हो. उनके बारे में पढ़ते जाइए:

#1. प्यार का कर्ज़ (1990)

नाइंटीज़ की ओवर द टॉप फिल्म. कास्ट में धर्मेन्द्र, मिथुन चक्रवर्ती, मीनाक्षी शेषाद्री और नीलम जैसे नाम थे. ये उस दौर की फिल्म थी जब सब कुछ फॉर्मूले पर चल रहा था. दर्शकों को पता होता था कि किस पॉइंट पर मार-धाड़ वाला सीन आएगा. किस पॉइंट पर गाने शुरू हो जाएंगे. कुलमिलाकर ये फिल्में एंटरटेनमेंट का पैकेज ऑफर करने की कोशिश कर रही थीं. मगर ‘प्यार का कर्ज़’ ऐसा करने में भी नाकाम रही. मिथुन का डांस भी फिल्म को नहीं बचा सका और ये बॉक्स ऑफिस पर बड़ी फ्लॉप साबित हुई.

#2. दूध का कर्ज़ (1990)

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फिल्म में जैकी श्रॉफ और नीलम. 

साल 1985 में जैकी श्रॉफ की फिल्म ‘तेरी मेहरबानियां’ रिलीज़ हुई थी. इस पर बहस करने का कोई पॉइंट नहीं कि उस फिल्म का असली हीरो वो कुत्ता था. खैर ‘तेरी मेहरबानियां’ जबरदस्त हिट हुई. अच्छा पैसा बनाया. उस फिल्म की कामयाबी को देखकर किसी ने सोचा होगा कि फिर से जैकी श्रॉफ को लेकर एक फिल्म बनाते हैं. बस इस बार जानवर बदल देंगे. कुत्ते की जगह सांप ले लेगा. यहां सांप, जैकी के किरदार की मदद करेगा. सांप ने तो फिल्म में दूध पिया, बस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर कोई पानी भी पूछने नहीं आया. ये फिल्म सिनेमाघरों में नहीं चली.

#3. कर्ज़ चुकाना है (1991)

ये गोविंदा की उन फिल्मों में से है जिसे वो खुद भूल जाना चाहते होंगे. ये उन शुरुआती फिल्मों में से भी है जहां गोविंदा और कादर खान की जोड़ी नज़र आई. वो बात अलग है कि इसे अच्छे से डेविड धवन ने ही भुनाया. ‘कर्ज़ चुकाना है’ की कहानी दसियों फिल्मों जैसी थी. एक अमीर आदमी जो अपने से कमज़ोर आर्थिक स्थिति वालों को किसी लायक नहीं समझता. अब बस उसे अपनी गलती का एहसास करवाया जाता है, ताकि वो पश्चाताप कर सके. जनता ने इस फिल्म को नहीं अपनाया.

#4. खून का कर्ज़ (1991)

मुकुल आनंद की फिल्म. रजनीकांत, विनोद खन्ना, संजय दत्त, डिम्पल कपाड़िया जैसे बड़े नाम कास्ट का हिस्सा थे. ये फिल्म रिलीज़ के वक्त ज़्यादा कमाई नहीं कर सकी. हालांकि रजनीकांत की पॉपुलैरिटी के चलते इसे 2009 में तमिल में डब कर के रिलीज़ किया गया था.

#5. कर्ज़: द बर्डन ऑफ ट्रुथ (2002)

सनी देओल और सुनील शेट्टी ने एक फिल्म में काम किया था. नाम था ‘लकीर’. उसमें दलेर मेहंदी का एक बड़ा कूल गाना है, ‘नच ले ना ना नच ले’. खैर उससे दो साल पहले दोनों ने ‘कर्ज़: द बर्डन ऑफ ट्रुथ’ नाम की फिल्म में भी काम किया था. ‘लकीर’ की तरह वो भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाई थी. ‘दिलवाले’ और ‘दिलजले’ के डायरेक्टर हैरी बावेजा ने ये फिल्म बनाई थी.

#6. Karzzzz (2008)

ये सुभाष घई वाली ‘कर्ज़’ का नया रीमेक थी. ओरिजनल फिल्म में डायलॉग था, “अरे ऊटी, ऊटी, प्यार की बूटी”. इस फिल्म में उसका नया वर्ज़न था, “केन्या, केन्या, कन्या”. मगर सिर्फ इस फिल्म में यही नहीं बदला. ऋषि कपूर की जगह हिमेश रेशमिया थे, जो उर्मिला के किरदार को याद दिलाते हैं कि कैसे उन्हें सुबह की कॉफी पीने से गैस की दिक्कत होती है. ये सब एक सीरियस सीन में हो रहा था. बहरहाल ये फिल्म उस दौर में आई जब हिमेश का हाथ लगा सोने में तब्दील हो रहा था. बस इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं हो सका. जितने समय में जनता फिल्म के टाइटल से Z गईं पाती, उतनी देर में थिएटर से बाहर निकल गई.

मेनस्ट्रीम हिंदी सिनेमा के अलावा भी कर्ज़ शब्द का इस्तेमाल फिल्मों के टाइटल में हुआ है. जैसे शाहरुख खान की एक टेलीफिल्म थी, ‘महान कर्ज़’. साल 2016 में खेसारी लाल और निरहुआ की भोजपुरी फिल्म ‘दूध का कर्ज़’ भी रिलीज़ हुई थी. कुलमिलाकर जब भी इस शब्द के इर्द-गिर्द फिल्मों के टाइटल रचे गए, वो कारगर साबित नहीं हुए.                   
 

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