3 जून 2016 (Updated: 3 जून 2016, 08:33 AM IST) कॉमेंट्स
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हमने बात की थी आईएएस अफसरों की जो राजनीति में आए (यहां पढ़ें). अब कुछ पॉपुलर IPS, IFS और IRS अफसरों की बात करेंगे जिनको राजनीति ने बुला लिया.
आईपीएस अफसर
1. सत्यपाल सिंह, यूपी
केमिस्ट्री में पीएचडी हैं. साइंटिस्ट बनना चाहते थे. आईपीएस बन गए. मुंबई में कमिश्नर रहे. 2014 में बीजेपी जॉइन कर ली. चौधरी चरण सिंह की सीट से उनके बेटे अजित सिंह को हराकर संसद पहुंचे.
मुंबई में जॉइंट कमिश्नर रहते हुए छोटा राजन, छोटा शकील और अरुण गवली के गिरोहों को समेट दिया था. वहां भाईगिरी ख़तम करने में इनका हाथ था. विवादास्पद एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दयानायक, प्रदीप शर्मा और मोहन सालस्कर इनके समय में ही आगे बढ़े थे.
सनी देओल ने इनका चुनाव प्रचार किया था. बड़े आदमी हैं. पर अभी एक स्कूल में भाषण के दौरान गड़बड़ हो गई. सिंह साहब बोल गए कि कोई भी दिक्कत हो तो बताना. मुंबई में सबसे बड़ा गुंडा मैं रहा हूँ.
2. निखिल कुमार, बिहार
1963 में आईपीएस बने. दिल्ली के कमिश्नर रहे. एनएसजी, आईटीबीपी और बीएसएफ के डायरेक्टर रहे. होम मिनिस्ट्री में विशेष सचिव भी रहे. बाद में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् में सलाहकार भी रहे.
2004 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. 2009 में नागालैंड के और 2013 में केरल के राज्यपाल बने. 2014 में रिजाइन देकर लोकसभा का चुनाव लड़े और हार गए.
अपनी सादी जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं. बिहार के प्रभावी नेता अनुग्रह नारायण सिंह इनके दादाजी थे. वहीं के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा इनके पिताजी थे. इनकी मां किशोरी सिन्हा कई बार सांसद रह चुकी हैं. इनकी पत्नी श्यामा सिंह भी सांसद रह चुकी हैं.
इनके अलावा और पुलिस अफसरों ने भी राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई पर इन्हें वैसी लोकप्रियता नसीब नहीं हुई है-
3. नमो नारायण मीणा, राजस्थान
4. एम लालमंजुला, मिजोरम
5. अजित जॉय, केरल
6. अमिताभ चौधरी, झारखण्ड
7. सुरेश खोपड़े, महाराष्ट्र
8. सुजीत कुमार घोष, पश्चिम बंगाल
9. विष्णु दयाल राम, झारखण्ड
10. अजय कुमार, झारखण्ड
11. हरीश चन्द्र मीणा, राजस्थान
12. आर के हांडा, पश्चिम बंगाल
13. रामेश्वर ओरांव, झारखण्ड
14. आशीष रंजन सिन्हा, बिहार
15. एच टी संग्लियाना, कर्नाटक
आईएफएस अफसर
1. मणिशंकर अय्यर, तमिलनाडु
लक्ष्मी मैन्सन लाहौर में पैदा हुए थे. वही मैन्सन जिसमें बाद में मंटो का परिवार रहने आया था. विभाजन के बाद माइग्रेट कर के इनका परिवार इंडिया आया. दून स्कूल, स्टीफेंस, कैंब्रिज सबमें पढ़े हुए हैं. 1963 में आईएफएस अफसर बने.
राजीव गांधी दून और कैंब्रिज में इनके जूनियर थे. सो 1989 में इन्होंने नौकरी छोड़कर कांग्रेस जॉइन कर ली. 1991 में पहली बार लोकसभा सांसद बने. 1999 और 2004 में भी जीते. 1996, 1998, 2009 और 2014 में हारे. पेट्रोलियम और नेचुरल गैस मंत्री भी रहे कांग्रेस की केंद्र सरकार में.
अपने अजीबो-गरीब बयानों के लिए जाने जाते हैं. अभी पाकिस्तान गए थे. वहां कहा कि भारत पाकिस्तान के रिश्ते सुधारने के लिए मोदी का हटना जरूरी है. आप लोग मदद कीजिए. उसके पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी गए थे. हंसराज कॉलेज, किरोड़ीमल कॉलेज और कांग्रेस के ही नेता अजय माकन की अंग्रेजी का जम के मजाक उड़ाया. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले यही महानुभाव थे जिन्होंने मोदी को चायवाला कहा था. ये भी कहा कि वो प्रधानमंत्री नहीं बन सकते पर कांग्रेस में चाय पिलाने की जॉब मिल जाएगी. 2014 में इनकी जमानत जब्त हो गयी थी.
इनकी अमर सिंह से लड़ाई हो गयी थी जब इन्होंने मुलायम सिंह के बारे में कहा था कि वो मेरे जैसा दिखता है. पता नहीं कब मेरे पापा उत्तर प्रदेश गए थे. इसके अलावा अमर को अम्बानी का कुत्ता भी कहा था. बहुत पहले जब ये कैंब्रिज में पढ़ते थे तब मार्क्स की विचारधारा से प्रभावित थे. 1962 की भारत-चीन लड़ाई में सैनिकों के लिए फण्ड इकठ्ठा कर रहे थे. चीन के सैनिकों के लिए. आइडियोलॉजी जो न करा दे.
"Dear Atal Ji, we miss you" कर के एक ओपन लैटर भी लिखा था अटल बिहारी वाजपेयी के नाम. जिसको लेकर सोशल मीडिया में बहुत मजाक बना था.
2. मीरा कुमार, बिहार
मिरांडा हाउस से पढ़ीं. अच्छी कवयित्री. जबर्दस्त खिलाड़ी हुआ करती थीं. वकालत भी पढ़ी हैं.
1973 में आईएफएस अफसर बनीं. 1985 में बिजनौर सीट से चुनाव लड़ा. मायावती और रामविलास पासवान जैसे लोगों को हराया. फिर करोलबाग और सासाराम से सांसद बनीं. 2014 में इनकी अपनी भतीजी मेधावी कीर्ति ने इनके खिलाफ चुनाव लड़ा था.
ये भारत की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष रही हैं. सोशल जस्टिस और जल संसाधन मंत्रालय भी संभाला है. अपने पाकिस्तान दौरे पर धाराप्रवाह उर्दू बोलकर सबको हैरान कर दिया था.
लोकसभा अध्यक्षा होने के दौरान "बैठ जाइये, बैठ जाइये. शांत हो जाइये." वाला इनका जुमला सबको याद रहेगा. कॉमेडियन्स इस जुमले को खूब यूज़ करते हैं.
आईआरएस अफसर
1. उदित राज, यूपी
कभी ये रामराज हुआ करते थे. बाद में नाम बदल कर उदित राज हो गए. दलित समुदाय से आते हैं. पढ़ने में अच्छे थे. 1988 में आईआरएस अफसर बने. 2003 में नौकरी छोड़ अपनी इंडियन जस्टिस पार्टी बनाई. 2014 में अपनी पार्टी को बीजेपी में मिला दिया.
अम्बेडकर के अनुयायी हैं. उन्हीं की तरह अपने समर्थकों के साथ पहले बौद्ध धर्म अपनाया. लार्ड बुद्धा क्लब बनाया. फिर अपनी पार्टी बनाई. वाजपेयी सरकार के समय दलितों के आरक्षण के लिए इन्होंने बहुत मेहनत की थी.
'महिषासुर शहादत दिवस' मनाने के बवाल में फंसे थे. बोले अम्बेडकर भी महिषासुर को शहीद मानते थे. कहते हैं महिषासुर ने जब ब्राह्मणों को चुनौती दी तो उसकी हत्या करा दी गई. पहले बीजेपी का विरोध किया करते थे. अब कहते हैं कि बीजेपी के अलावा कोई दलितों के हक़ में बात नहीं कर सकता.
जय श्री राम की जगह जय भीम बोल आते हैं. आलोचना होती है पर कहते हैं कि जगह और वक़्त देखकर लड़ाई लड़ी जाए तो बेहतर होगा.
2. अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली
आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल इंजिनियर. 1992 में आईआरएस अफसर बने. 2012 में अपनी पार्टी आम आदमी पार्टी बनाई. 2013 में दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हरा दिया था. 49 दिन में रिजाइन कर दिया. फिर 2015 में 70 में से 67 सीटें जीतकर दोबारा मुख्यमंत्री बने.
अपने अफसरी के दौरान विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर 'परिवर्तन' नाम का एनजीओ बनाया. खूब लड़ाई लड़ी. सूचना के अधिकार के लिए लम्बा संघर्ष किया. 2006 में इनको लोक सेवा के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला. बाद में अन्ना के लोकपाल आन्दोलन से जुड़े. यहीं से राजनीति में आने का मन बना.
अक्सर इंजीनियर स्टाइल में कुछ न कुछ बोल जाते हैं. मोदी को मनोरोगी बोल दिया था. योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण को गाली देने का वीडियो आ गया था. अफसरों को हड़का देते हैं. मीडिया से उलझ जाते हैं. फिल्मों के रिव्यू ट्वीट करते हैं. खांसी इनकी ठीक नहीं हो रही थी. मीडिया में खूब मजाक बना. पद ग्रहण के समय गाना भी गाया. प्रदूषण से लड़ने के लिए ऑड-इवन चलाया.
इनके राजनीति में आने के बाद भारत की राजनीति में जैसे भूचाल आ गया. बहुत कुछ बदला है तब से. ईमानदारी की राजनीति पर खूब जोर दिया जा रहा है.
अफसरों के राजनीति में आने पर बवाल मचता रहा है. पर चुनाव लड़ना किसी भी भारतीय नागरिक का अधिकार है. बस अफसर चुनाव लड़ने के समय किसी सरकारी पद पर नहीं होना चाहिए. देखते हैं ये लोग राजनीति को कितना बदल पाते हैं.यह स्टोरी टीम 'दी लल्लनटॉप' से जुड़े ऋषभ ने लिखी है.