मैं पंजाब से हूं और मुझे उड़ता पंजाब अच्छी नहीं लगी
टॉमी, पिंकी, सरताज और प्रीत के किरदार असल पंजाबियों से प्रेरित बताए गए, लेकिन मैं नहीं मान सकता. असलियत और कल्पना का ये कॉकटेल मुझे पसंद नहीं आया.

Spoilers Ahead! आदर्श स्थिति यही है कि इसे आप फिल्म देखने के बाद पढ़ें.
बुधवार शाम दफ्तर से घर पहुंचा तो पता चला कि उड़ता पंजाब लीक हो गई है. टोरेंट पर अवेलेबल है. सोचने लगा कि डाउनलोड करूं या नहीं? गुस्सा था कि इतनी जद्दोजहद के बाद फिल्म एक कट के साथ रिलीज़ होनी थी और किसी ने पहले ही लीक कर दी. मैंने फैसला लिया कि मैं टोरेंट वाली उड़ता पंजाब आज रात देखूंगा और सुबह जाकर आर्टिकल लिखूंगा कि मैंने टोरेंट पर मूवी देखी ली है फिर भी रिलीज़ होने के बाद हॉल में देखने ज़रूर जाऊंगा. मोटिव एक ही था कि जो भी इस आर्टिकल को पढ़े समझ पाए कि ये फिल्म पंजाब की पॉलिटिक्स से कहीं ऊपर है. और काफी हद तक आज के पंजाब की असलियत बयां करती है.
मैं पंजाब से हूं. कुछ वक्त से पंजाब में नशे के मुद्दे पर लिखकर हाइलाइट भी कर रहा हूं. चाहता वहीं हूं जो शायद इस फिल्म से जुड़े लोग चाहते होंगे. अवेयरनेस फैलाना. और जो बात हम दबी ज़ुबान से कहते हैं उसी आवाज़ को इतना बुलंद कर दें कि प्रशासन/सरकार जाग जाए और समाज बदलाव की और बढ़ पाए. लेकिन फिल्म देखने से पहले जिस आर्टिकल का आइडिया दिमाग में आया था वो अब नहीं लिख रहा हूं. क्योंकि मुझे मूवी इम्प्रेस नहीं कर पाई. लगा नहीं कि जितना आप दिखा रहे हो, सब असलियत है. मानता हूं कि एक्सपेक्टेशंस ज़्यादा थीं. पता था कि फिल्म में ड्रामा भी शामिल होगा. ड्रामा से मेरा मतलब असलियत से हटकर आप स्टोरी बांधने के लिए हाइपोथेटिकल सिचुएशन्स पैदा करेंगे. फिर भी फिल्म देखने बैठा, ये सोचकर कि जितना और जैसा कंटेंट होगा, एक्सपेक्टेशन का 70-80% भी होगा तो मुझे अच्छा लगेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
फिल्म में चार मुख्य किरदार हैं. टॉमी सिंह (शाहिद कपूर), कुमारी पिंकी (आलिया भट्ट), सरताज सिंह (दिलजीत दोसांझ) और डॉ. प्रीत साहनी (करीना कपूर). एक भी करेक्टर ऐसा नहीं था जिस पर मैं विश्वास कर पाता. और मान पाता कि इन जैसे लोग जो पंजाब में है वो ऐसा सब करते होंगे. मान मैं इसलिए नहीं सकता क्योंकि मैं ऐसे कई किरदारों को जानता हूं, लेकिन वो इन जैसे नहीं हैं.
एक-एक करके बताता हूं. सबसे पहले टॉमी सिंह. ये किरदार शुरुआत में अपना सा लगता है. टॉमी फुकरा है, रैपर है. हां, होते हैं पंजाब में कई. जो टॉमी की तरह अपनी चौड़ में रहते हैं. रेंज रोवर जैसी गाड़ियों में घूमते हैं और प्रिटेंड करते हैं कि किसी से नहीं डरते. फिर एक सीन आता है जहां टॉमी का हाथ स्क्रीन पर आता है. बैकग्रांउड से आवाज़ आती है यो यो टॉमी सिंह!! मुझे हनी सिंह की याद आ जाती है. क्या पता राइटर सुदीप शर्मा ने उन्हीं से प्रभावित होकर ये किरदार लिखा हो? हनी सिंह भी तो काफी समय नशा करने के बाद ड्रग रिहैबिलिटेशन सेंटर रहे थे. दूसरी बार टॉमी की तुलना मैं हनी से तब करता हूं जब एक जगह स्टेज पर परफॉर्म करने आए टॉमी सिंह को लड़के (ऑडियंस) खूब पीटते हैं. हनी सिंह के साथ भी पंजाब में यही हुआ था. मैं अगर ये भी मान लूं कि आपका करेक्टर हनी सिंह से ही इंस्पायर्ड था, तब भी मुझे वो किरदार सच्चाई से कोसों दूर दिखा. आपको पब्लिक गाने को कह रही है और आप ऑडियंस पर मूत रहे हैं! अपना प्रवचन सुना रहे हैं! भाई साहब ऐसा विदेश में होता होगा. हमारे देश में तो नहीं होता. कम से कम पंजाब में तो बिल्कुल नहीं. मैं ऐसे कई आर्टिस्ट को जानता हूं जो नशा करके ही परफॉर्म करते हैं. उन्होंने तो कभी ऐसा नहीं किया. दरअसल आपने टॉमी के करेक्टर को ज़्यादा ही एग्ज़ेजरेट कर दिया है. कितना नकली लगता है जब एक मज़दूर बिहारन एक स्टार रैपर के होठों को चूम लेती है. वो भी तब जब आप मार खाकर गांव में छिपे बैठे हैं. और तभी आपके मन में वो धुनें और शब्द आने लगते हैं जो अरसे से स्लीप मोड पर थे. फिर आप उसी बिहारन को गुंडों से छुड़वाने के लिए साइकल चलाकर जाते हैं, कंधे पर हॉकी टांग कर. वो स्टार जिसे बच्चा-बच्चा जानता है, पुलिस उसे ढूंढ रही है और वो फेयरीलैंड में साइकल पर सवारी कर रहा है. कम ऑन!!! ड्रग्स के नाम पर आप कुछ भी दिखा रहे हैं!
मज़दूर लड़की का किरदार निभा रही हैं आलिया भट्ट. शुरुआत में वो भी अच्छा है. दिखाते हैं कि वो कैसे नशे के फेर में फंस गई. सही था, रियेल्टी के बिल्कुल पास. घर में उसके साथ जो ज़्यादतियां होती हैं वो दिल को भी लगती हैं. लेकिन उसे बार-बार एक गोवा के होर्डिंग के बारे में सोचते हुए दिखाया है. उस होर्डिंग की ज़रूरत क्या थी स्टोरी में? कैसे रिलेट करें हम उसे ड्रग्स की कहानी से? रिलेशन बस इतना था कि उसकी दिली इच्छा है गोवा जाने की. लेकिन क्या ज़रूरत है फिल्म में एक ऐसे एलिमेंट को जोड़ने की जिसका रेलेवेंस ही नहीं है? लगा था कि ये करेक्टर क्यूरियोसिटी पैदा करेगा लकिन अंत तक अधूरा-अधूरा सा रह जाता है.
दिलजीत दोसांझ यानि सरताज. पंजाब पुलिस में ASI. हां वही एक स्टार वाला. हमारे उधर पुलिस वालों को मामे कहते हैं. नाकों पर खड़ा दिलजीत दोसांझ तो मुझे टिपिकल मामा लगता है. और ये भी लगता है कि ‘पंजाब 1984’ मूवी जैसा ही सीरियस किरदार दिलजीत यहां भी निभाएंगे. लेकिन मुझे समझ नहीं आता बॉलीवुड फिल्मों में ये प्यार-व्यार दिखाना इतना ज़रूरी क्यों होता है? दिलजीत का करेक्टर भी चढ़ गया प्यार की बलि. एक इन्वेस्टीगेशन के दौरान दिलजीत की गर्दन पर चौकीदार नशे वाला इंजेक्शन ठोक देता है. उसके बाद शुरू होता है वहीं टिपिकल बॉलीवुड सीन. दिलजीत नशे में है और करीना बाइक चला रही है. दिलजीत धीमी आवाज़ में उस से अपने प्यार का इज़हार कर रहा है. पुलिस वाला डॉक्टर से प्यार कब और क्यों कर बैठा मुझे नहीं समझ आया.
करीना कपूर. डॉक्टर का किरदार निभा रही हैं. नाम है प्रीत साहनी. हाल ही में हमने इंटरव्यू लिया तो उड़ता पंजाब के राइटर सुदीप ने कहा था कि करीना का किरदार रियल लाइफ से इंस्पायर्ड है. उन्होंने बताया था कि तरन तारन में एक ऐसी ही लेडी डॉक्टर बड़ा अच्छा काम कर रही हैं. फिल्म में दिखाया भी गया है. जुझारू काम करते हुए. बड़े-बड़े अफसरों के भेद खोलते हुए. लेकिन करीना की एक्टिंग बड़ी फेक लगती है. रात-रात को गुंडों के गोदामों में जाकर कैमिकल का पता लगाना भी थोड़ा ड्रामेटिक लगता है. दिलजीत के चले जाने पर बार-बार स्कूटर पर आके प्यार से कुछ कहना इस किरदार को बड़ा हल्का करता है. तीन जगह करीना की डबिंग किसी और ने की है, बड़ी आसानी से पता चलता है (हो सकता है सिर्फ टोरेंट वाली फिल्म में ऐसा हो). तो असल डॉक्टर की मेहनत, हिम्मत और बहादुरी करीना कपूर में नहीं झलकती.
फिल्म की एक बड़ी कमी ये है कि पहले तो ये आपको स्टोरी पर विश्वास करने को कहती है और जब विश्वास होने भी लगता है तभी कोई न कोई ऐसी हरकत हो जाती है जिससे मैं असलियत से रिलेट नहीं कर पाता. मूवी की एंडिंग भी बड़ी एबरप्ट है. दिलजीत के भाई का भी ठीक-ठाक सा रोल है इसमें. लेकिन उसकी एक्टिंग अपने किरदार को जस्टीफाई नहीं करती. शुरुआत और आखिर में एक नेता का रोल निभा रहे हें कमल तिवारी. उनका रोल भी फालतू का लगता है. नहीं होता तो भी चल जाता है. मोटा-माटी फिल्म ऊपर-ऊपर तैरती रही. खैर एक बार देखी जा सकती है मूवी. वो भी हॉल में.