भारत में वैक्सीन के लिए अप्रूवल कैसे मिलता है?
SII और भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन के इमरजेंसी यूज़ के लिए DCGI में अप्लाई किया है.
Advertisement

किसी वैक्सीन के लिए अंतिम अप्रूवल मिलना और आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अप्रूवल मिलना, दोनों में अंतर है. सांकेतिक तस्वीर: India Today
भारत में कौन सी दवा इस्तेमाल होगी और कौन सी नहीं, इसका फैसला करता है ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI). तीन कंपनियों ने अपनी वैक्सीन के इस्तेमाल के इमरजेंसी अप्रूवल के लिए DCGI में अप्लाई किया है. पहली कंपनी है सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) जो ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और AstraZeneca के साथ मिलकर वैक्सीन बना रही है. Covishield नाम से. दूसरी कंपनी है भारत बायोटेक जो ICMR यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर Covaxin बना रही है. तीसरी कंपनी फाइज़र है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, SII एप्लीकेशन का हवाला देते हुए आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि चार क्लिनिकल अध्ययन, जिनमें दो इंग्लैंड और एक-एक ब्राज़ील और भारत में हुए हैं, दिखाते हैं कि कोविड-19 के गंभीर संक्रमण में Covishield काफी प्रभावी है.
SII के CEO अदार पूनावाला ने ट्वीट किया,
जैसा कि वादा था, 2020 के पहले SII ने पहली मेड इन इंडिया वैक्सीन COVISHIELD के इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन के लिए अप्लाई कर दिया है. इससे अनगिनत लोगों की जान बचेगी. समर्थन देने के लिए मैं भारत सरकार और नरेंद्र मोदी जी को धन्यवाद देता हूं.

अदार पूनावाला का ट्वीट.
उधर, DCGI ने Pfizer के EUA एप्लीकेशन को एक्सपर्ट कमिटी के पास भेजा है. ये कमिटी वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल डेटा का अध्ययन करेगी.
सवाल ये है कि वैक्सीन के अप्रूवल की प्रक्रिया क्या होती है?
ऊपर ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) का ज़िक्र आया. ये भारत सरकार के सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) का विभाग है. अमेरिका में जो काम फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (US FDA) का है, वही भारत में CDSCO का है. इसका ही हिस्सा है DCGI, जिसका काम खास कैटेगरी की दवाओं, वैक्सीन, ब्लड और ब्लड प्रोडक्ट्स को अप्रूव करना और लाइसेंस देना होता है. DCGI भारत में दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग, सेल, आयात और डिस्ट्रीब्यूशन को लेकर पैमाना भी तय करता है. 14 अप्रैल, 2019 को वीजी सोमानी को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया नियुक्त किया गया था.

SII की वैक्सीन Covishield. फाइल फोटो. India Today
वैक्सीन का अप्रूवल और EUA
वैक्सीन का तीन चरणों में ट्रायल होता है. दुनियाभर में कई वैक्सीन अलग-अलग चरणों में हैं. कुछ तीसरे यानी आखिरी चरण में हैं. वैसे तो हर चरण में वैक्सीन के अप्रूवल की ज़रूरत होती है. ये लंबी प्रक्रिया है क्योंकि हर चरण में अलग-अलग आयु वर्ग के हिसाब से हज़ारों लोगों पर ट्रायल होते हैं. अंतिम अप्रूवल से पहले सुनिश्चित किया जाता है कि वैक्सीन सुरक्षित है. चूंकि ये प्रक्रिया लंबी है, इसलिए किसी वैक्सीन में अगर उम्मीद दिखती है और तुलनात्मक नतीजे सकारात्मक होते हैं, तो इसे इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन (EUA) दिया जाता है.
तो ये EUA क्या है?
अमेरिका में फूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन (US FDA) EUA देता है. ये पता किया जाता है कि वैक्सीन के क्या लाभ हैं और क्या संभावित नुकसान हैं. आपातकालीन इस्तेमाल के लिए इजाज़त तभी दी जा सकती है, जब तीसरे चरण का पर्याप्त डेटा मौजूद हो. इजाज़त सिर्फ पहले और दूसरे चरण के डेटा के आधार पर नहीं दी सकती. हालांकि शुरुआती दो चरणों में भी प्रोडक्ट का सुरक्षित होना ज़रूरी है.
FDA ने स्पष्ट किया है कि EUA तभी मिलेगा, जब तीसरे चरण के डेटा से पता चले कि वैक्सीन बीमारी रोकने में कम से कम 50 फीसदी प्रभावी है. इसके अलावा ये वैक्सीन ट्रायल में कम से कम तीन हज़ार लोगों से गुजारी गई हो. ट्रायल में भाग लेने वालों को वैक्सीन देने के बाद कम से कम एक महीने तक ऑब्ज़र्व करना होता है कि कोई साइड इफेक्ट तो नहीं है.

किसी भी तरह की वैक्सीन के अप्रूवल के लिए हज़ारों लोगों पर क्लिनिकल ट्रायल के बाद ही पता चलता है कि वैक्सीन कितनी असरकारक है. सांकेतिक तस्वीर: India Today
भारत में अप्रूवल की क्या प्रक्रिया है?
एक्सपर्ट और एक्टिविस्ट कहते हैं कि भारत के ड्रग रेगुलेशन में EUA के स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं और इसकी प्रक्रिया साफ तौर पर परिभाषित नहीं है. इसके बावजूद CDSCO पहले कई दवाओं को EUA दे चुका है. जैसे- जुलाई महीने में Remdesivir और Favipiravir दवाओं को आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दी गई. Remdesivir और Favipiravir जैसी दवाएं पहले से दूसरी बीमारियों के लिए अधिकृत थीं, लेकिन इन्होंने कोविड-19 को लेकर सीमित टेस्टिंग में कुछ उम्मीद जगाई, तो इन्हें EUA के तहत अप्रूव कर दिया गया.
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
इंडियन एक्सप्रेस
के मुताबिक, Cipla और ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स के पूर्व ग्लोबल जनरल काउंसल और वकील मुरली नीलकांतन कहते हैं,
''हमें अभी भी अप्रूवल के पीछे की कहानी पता नहीं है. हमने क्लिनिकल ट्रायल का डेटा कहीं प्रकाशित होते हुए नहीं देखा और ना ही हर दवा के लिए प्रोटोकॉल देखे.''उन्होंने कहा,
''US FDA के रेगुलेशन में EUA हासिल करने के नियम स्पष्ट हैं. भारत में मैं पूरे कानूनों से गुजरा हूं ताकि कोई खंड ऐसा मिले, जिसकी मदद से दवाओं के इमरजेंसी या सीमित इस्तेमाल को मंज़ूरी दी गई हो, लेकिन मुझे ऐसा कोई प्रावधान नहीं मिला.''फिर भारत में किस तरह EUA मिलता है?
इसे पूरी तरह तय किया जाना अभी भी बाकी है. हालांकि EUA के लिए अप्लाई करने वाली कंपनी को ये साबित करना होगा कि ये दवा सुरक्षित है.

SII के अलावा अमेरिका की Pfizer ने भारत में EUA के लिए अप्लाई किया है. सांकेतिक फोटो: India Today
EUA आम तौर पर कब-कब दिया गया है?
EUA बहुत पुरानी बात नहीं है. जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के जोशुआ शर्फस्टीन का कहना है कि अमेरिका में FDA ने साल 2009 में आम लोगों के लिए EUA दिया था. नवजात बच्चों में H1N1 संक्रमण के लिए ये टीका दिया गया था.
2009 से किसी वायरस की वैक्सीन के लिए EUA नहीं दिया गया है. बल्कि कुछ दवाओं, डायग्नोसिस और वेंटिलेटर या पीपीई किट्स के संदर्भ में EUA मिला. Covid-19 से पहले इबोला वायरस, ज़ीका वायरस और MERS Coronavirus (कोरोना परिवार से जुड़ा एक और वायरस) की वैक्सीन के लिए EUA दिया गया था.
क्या EUA का मतलब वैक्सीन को पूरी तरह अप्रूवल देना होता है?
जवाब है नहीं. नाम से ही स्पष्ट है कि ये आपातकालीन इस्तेमाल के लिए है. US FDA के मुताबिक, आम लोगों को इस बात की जानकारी देनी ज़रूरी है कि इन्हें सिर्फ आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंज़ूरी दी गई है. इसका मतलब पूरी तरह अप्रूवल नहीं है. लोगों को इसके ज्ञात लाभ और हानियों की भी जानकारी देना ज़रूरी है और ये भी किस हद तक ये लाभ और हानि अज्ञात हैं. लोगों को EUA वाली वैक्सीन लेने से मना करने का भी अधिकार है. अंतिम अप्रूवल के लिए ट्रायल के तीनों चरणों में अपेक्षित परिणाम मिलने ज़रूरी हैं.