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कौनसे मोहनजोदड़ो शहर लेकर जा रहे हैं ऋतिक अौर गोवारिकर, जान लो

2600 BC पहले, यहां के शहर 'ग्रिड' पैटर्न पर बनाये गए थे. मतलब सभी सड़कें 90 डिग्री पर एक दूसरे को काटती थीं. आज के चंडीगढ़ में इसका ही अक्स है

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First poster of the movie Mohenjo daro‬
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7 जून 2016 (Updated: 9 जून 2016, 09:50 AM IST) कॉमेंट्स
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आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म आने वाली है, नाम है 'मोहनजोदड़ो'. अक्सर पीरियड फ़िल्में बनाने वाले गोवारिकर इस बार आपको 2600 BC में ले जाने वाले हैं. इसके लिए उन्होंने आर्किअोलॉजिस्ट्स की भी मदद ली है. फ़िल्म की शूटिंग ज़्यादातर मुंबई और भुज में की गयी है. फिल्म में हीरो ऋतिक रौशन अपने दुश्मन की बिटिया के प्यार के चक्कर में पड़ जाते हैं, ये बिटिया वाला रोल निभा रही हैं पूजा हेगड़े. अच्छा ये है कि अब इस चक्कर में आपको मोहनजोदड़ो की सभ्यता देखने को मिल जाएगी. फ़िल्म आ रही है 12 अगस्त को. लेकिन सबकी ज़ुबान पर इस फ़िल्म की चर्चा बहुत दिनों से चल रही है. आज फिल्म का पहला 'मोशन पोस्टर' रिलीज़ हुआ है. ए आर रहमान का संगीत फिल्म के प्रति रहस्यमय आकर्षण जगा रहा है.

https://www.youtube.com/watch?v=BzXxrtSZmkE

अब आपको स्कूल की NCERT किताबों में तो मोहनजोदड़ो के बारे में पढ़ाया ही गया होगा, वो बात अलग है कि आपने मन से पढ़ा नहीं होगा. जो पढ़ा होगा वो किसको याद रहता है, इसीलिए सोचा आपका थोड़ा रिवीजन करा दें...

1.

मोहनजोदड़ो यानी 'मुअन जोदड़ो', जिसका मतलब है 'मुर्दों का टीला'. 2600 BC में फली-फूली इस सभ्यता को बीसवीं सदी में खुदाई में खोज निकाला गया. आज के भारत, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में फैली इस सभ्यता को इसके दो सबसे बड़े शहरों, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के नाम से जाना जाता है. खुदाई के बाद सामने आये टूटे-फूटे घर, कुएं, सड़कें और ढेरों छोटे- मोटे सामान आज भी उन पुराने बाशिंदों की रोजमर्रा की ज़िन्दगी को जैसे जिंदा कर देते हैं.

2.

मोहनजोदड़ो सभ्यता की सबसे बड़ी उपलब्धियां थीं योजनाबद्ध तरीके से बसाये गए शहर. ढकी हुई अौर व्यवस्थित नालियाँ. एक जैसी, बराबर नाप की ईंटें और पानी के लिए ढेर सारे कुएं. इस सभ्यता के सभी बड़े शहर 'ग्रिड' पैटर्न पर बनाये गए थे. मतलब सभी सड़कें 90 डिग्री पर एक दूसरे को काटती थीं. पहले इसी तरीके से पूरे शहर को प्लान कर लिया जाता था, तब घर बसाये जाते थे. आज के चंडीगढ़ को इसी 'ग्रिड' पैटर्न पर बसाया गया है. बड़े और लगभग सभी छोटे शहरों में नालियों का अच्छा-ख़ासा नेटवर्क था, जिन्हें ढंकने की व्यवस्था भी थी.

3.

हड़प्पा अौर मोहनजोदड़ो में शहर दो हिस्सों में बनाया गया था. एक था citadel यानी गढ़, जिसे मिट्टी के स्लैब्स और ईंटों से बने ऊँचे चबूतरे पर बसाया गया था. दूसरा lower town, यानी नीचा नगर. citadel में अधिकतर पॉलिटिकल या सार्वजानिक इमारतें होती थीं. और lower town में ज़्यादातर घर हुआ करते थे. घरों में कम से कम एक कुआं होता था, अधिकतर बाहर के कमरों में. ऐसा शायद राहगीरों और मेहमानों को ध्यान में रख कर किया गया था. कुछ घरों में ऊपर जाने की सीढ़ियां भी थीं, जो शायद दूसरे मंजिले पर जाती हों. कुछ घर थोड़े बड़े थे, जिनके बीचोंबीच काफ़ी बड़ा आंगन होता था. अंदाजा लगाया जाता था कि इन बड़े घरों में कुछ उद्योग चलते होंगे. हालांकि बाकी घरों में भी छोटे आंगन थे, जिनके इर्द-गिर्द कमरे थे.

4.

हालांकि राजा-रानी या किसी गवर्निंग संस्था के होने के कोई सबूत नहीं मिलते हैं, लेकिन शहरों के आर्किटेक्चर और व्यापार की व्यवस्था को देखकर अंदाज़ा लगाया जाता है कि या तो कोई संस्था या लोगों का समूह था जो ये सब संभालता था. राजा कहे जा सकने के सबसे करीब एक मूर्ति पाई गयी थी, जिसे 'प्रीस्ट किंग' का नाम दिया गया है. दुशाला ओढ़े, इस छोटे से राजा के सर पर एक छोटा सा मुकुट कहे जा सकने वाला सिरपेंच है. इस सभ्यता के अवषेशों की यात्रा पर यादगार संस्मरण लिखने वाले ओम थानवी का मानना है कि मोहनजोदड़ो दिखावे की संस्कृति नहीं थी, इसमें ग्रैंडनेस और अथॉरिटी दिखाने की कोई चाहत नहीं थी. यहां मूर्तियां और औज़ार, दोनों ही छोटे हैं. दूसरी सभ्यताओं की तरह यहां ग्रैंडनेस या ताकत दिखाने वाले बड़े-बड़े महल या मंदिर भी नहीं देखे जा सकते हैं. सिर्फ आर्किटेक्चर और सड़क नहीं, मूर्तियां, बर्तन और खिलौने भी छोटे हैं. ये किसी अथॉरिटी नहीं, बल्कि कला का रिप्रजेंटेशन करते हैं.

5.

मोहनजोदड़ो में धार्मिक चीज़ों के नाम पर कोई मंदिर या देवी-देवताओं की मूर्तियां नहीं मिलती हैं. हां, 'प्रोटो शिवा' और 'मदर गॉडेस' की दो मूर्तियाँ हैं, जिन्हें धार्मिक रिचुअल्स से जोड़ा जाता है. लेकिन सबसे ख़ास है मोहनजोदड़ो का स्नानकुंड. ये citadel में एक बड़ा सा कुंड है. जिसकी बनावट, सीढ़ियां, नालियां और पास में बने तीन सामान्य बाथरूम को देख कर अंदाज़ा लगाया जाता है कि ये किसी ख़ास धार्मिक रिचुअल पर इस्तेमाल किये जाते होंगे.


यह स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के साथ इंटर्नशिप कर रहीं पारुल तिवारी ने लिखी है.

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