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राम के आदर्शों को दर्शाती वो 5 बेहतरीन फिल्में, जो प्राण प्रतिष्ठा के दिन ज़रूर देखी जानी चाहिए

इस लिस्ट में Shah Rukh, Salman और Prabhas की फिल्में शामिल हैं. पांचवां नाम तो ऐसा है कि आपने गेस तक नहीं किया होगा.

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इन पांच फिल्मों में राम के चरित्र को अनूठे ढंग से पेश किया गया.
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22 जनवरी 2024 (Updated: 22 जनवरी 2024, 13:19 IST)
Updated: 22 जनवरी 2024 13:19 IST
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Ram. दो अक्षर का नाम. ऐसा नाम जिसे कोई एक अर्थ में नहीं बांध सका. वो सौम्य, कमल-नयन, करुणानिधान भी हैं. तो वो धीर, वीर, गंभीर भी हैं. कर्तव्य के लिए अपने वीर कंधों पर धनुष धारण करने वाले भी हैं. राम ने सिनेमा में विभिन्न तरह के चित्रण पाए. कुछ एकदम सीधे तो कहीं जहां इनडायरेक्टली उन पर बात हुई. Ram Mandir Pran Pratishtha समारोह के अवसर पर कुछ ऐसी ही फिल्मों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने राम को उत्तम ढंग से दिखाया. इनमें से जो फिल्म आपने नहीं देखी, उसका नाम नोट कर लीजिए और पहली फुरसत मिलने पर देख डालिए.  

#1. स्वदेस 
डायरेक्टर: आशुतोष गोवारिकर
कास्ट: शाहरुख खान, गायत्री जोशी 

चरणपुर के गांव में रामलीला चल रही है. इस गांव का नाम ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां के लोगों का मानना है कि यहां कभी राम और सीता आए थे. जिस धरती पर उनके पांव की छाप पड़ी, उसका नाम हो गया चरणपुर. रामलीला में सीता (गायत्री जोशी) अपने राम को याद कर रही होती हैं. खुद की रक्षा के लिए उन्हें पुकार रही होती हैं. रावण इस बात का मखौल उड़ाता है. कहता है कि राम का नहीं, अपितु रावण का स्मरण करो. राम अगर यहां होता तो क्या तुम्हें बचाने नहीं आता. इतने में एक आवाज़ गूंजती है:

राम ही तो करुणा में हैं, शांति में राम हैं
राम ही है एकता में, प्रगति में राम हैं
राम बस भक्तों नहीं, शत्रु के भी चिंतन में हैं
देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं

शाहरुख का किरदार मोहन इन चंद पंक्तियो में राम होने का असली भावार्थ बता जाता है.

#2. RRR
डायरेक्टर: एसएस राजामौली 
कास्ट: राम चरण, जूनियर एनटीआर

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RRR के क्लाइमैक्स सीन में राम चरण और जूनियर एनटीआर. 

राजामौली की फिल्म में डायरेक्टली राम का ज़िक्र नहीं किया गया. सिंबोलिज्म के ज़रिए राम चरण के किरदार अल्लूरी सीताराम राजू और राम में पैरेलल ड्रॉ किए गए. फिल्म के क्लाइमैक्स में उनका कैरेक्टर भगवा वेश धरे अपने वीर कंधों पर धनुष सजाकर अंग्रेजों के सामने पहुंचता है. उन्हें मार डालता है. इस सीन से ये पक्का हो गया कि राजामौली ने उनके किरदार के ज़रिए राम की झलक दिखाई है. 
हालांकि फिल्म में एक और सीन है जो दिखाता है कि कैसे अल्लूरी सीताराम राजू के संघर्षों की उत्पत्ति मैं से नहीं बल्कि हम से होती थी. फिल्म में एक जगह कोमाराम भीम को पता चलता है कि उसने राजू को गलत समझा. वो कहता है कि मैं तो अपने लिए अंग्रेजों के बीच आया था, लेकिन वो तो इस मातृभूमि के लिए आया था. राजू ने खुद को सर्वोपरि नहीं रखा. राम की ही तरह खुद के दुख भुलाकर अपना जीवन दूसरों के नाम कर दिया. 

#3. हम साथ साथ हैं 
डायरेक्टर: सूरज बड़जात्या 
कास्ट: मोहनीश बहल, सलमान खान 

फिल्म की कहानी के लिए रामायण को मॉडर्न दुनिया में अडैप्ट किया गया. एक मां है जो बड़े बेटे पर सबसे ज़्यादा मोहित है, इस बात की परवाह नहीं करती कि उस बेटे ने उसकी कोख से जन्म नहीं लिया. फिर उसकी सहेलियां आकर भरमा देती हैं. कि अपने बेटे का भी सोचो. बड़ा बेटा उसका हक खा जाएगा. बहकावे में आकर मां अपने सबसे चहेते बेटे को घर से निकाल देती है. उसका अपना बेटा घर आता है. अपने बड़े भैया को खोजता है. लेकिन उनका कोई निशान नहीं.

 मां से गुस्सा होता है. उनसे जुड़ी हर याद पर खीज खाता है. अपना व्याकुल हृदय लेकर सीधा बड़े भैया के पास पहुंच जाता है. भैया आज्ञा देते हैं कि मेरी खातिर वापस जाकर घर की ज़िम्मेदारियां संभालो. अंत में मां को अपनी गलती का पछतावा होता है और परिवार फिर से एक छत के नीचे आ जाता है. यहां मोहनीश बहल का किरदार राम पर आधारित था और सलमान खान का उनके भाई भरत पर. 

#4. बाहुबली 2 
डायरेक्टर: एसएस राजामौली 
कास्ट: प्रभास, अनुष्का शेट्टी 

एक और कहानी जहां मां के कहने पर बेटे ने अपने राज्य, अपने घर का त्याग कर दिया. मुड़कर भी नहीं देखा कि उसका भविष्य कितना सुनहरा हो सकता था, उसकी पत्नी और नवजात बच्चे को कैसी भव्य ज़िंदगी मिल सकती थी. यहां दोनो में से पूरी तरह कोई गलत नहीं था. बेटे ने अपने आदर्शों का पालन किया. हमेशा मां की आज्ञा को सर्वोपरि रखा. दूसरी ओर मां ने राजहित में अपना फैसला सुनाया. ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?’ इस सवाल ने देश को दो साल तक परेशान किया. राजमौली ने रामायण के धागों में पिरोकर इसका जवाब दिया. ऐसा जवाब जिससे किसी को कोई असंतुष्टि नहीं थी. 

#5. बुलंदी 
डायरेक्टर: टी. रामा राव 
कास्ट: अनिल कपूर, रवीना टंडन

पिता और बेटे के बीच गलतफहमी पैदा कर दी जाती है. नतीजतन पिता बेटे को घर से निकाल देता है. बेटे के लिए पिता की आज्ञा से ज़रूरी कोई वचन नहीं. बिना शिकायत किए वो घर और घरवालों से दूर हो जाता है. ‘बुलंदी’ महान किस्म की फिल्म नहीं. लेकिन फिल्म में रामायण वाला पैरेलल काफी मज़बूत है.            

 

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