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मूवी रिव्यू: डॉक्टर स्ट्रेंज इन द मल्टीवर्स ऑफ मैडनेस

‘डॉक्टर स्ट्रेंज इन द मल्टीवर्स ऑफ मैडनेस’ फिल्म करीब दो घंटे की है. हेवी वीएफएक्स और मार्वल यूनिवर्स के कई कैरेक्टर्स की जुगलबंदी इस फिल्म को हिट कराने के लिए काफी हैं?

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doctor strange movie review
फिल्म चुनाव पर बात करती है, वो चुनाव जो हीरो और विलेन में फ़र्क करता है.
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6 मई 2022 (Updated: 9 मई 2022, 06:18 PM IST) कॉमेंट्स
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स्पॉइलर्स, लीक्स से बचते बचाते हमने ‘डॉक्टर स्ट्रेंज इन द मल्टीवर्स ऑफ मैडनेस’ देख ली है. मार्वल ने फिल्म की इतनी फुटेज रिलीज़ कर दी थी कि लगा पूरी कहानी बता देंगे क्या. लेकिन फिर भी कहानी को छुपाने में कामयाब रहे. ‘स्पाइडरमैन: नो वे होम’ में डॉक्टर स्ट्रेंज ने जो किया, ये फिल्म उसके आगे से शुरू होती है. पीटर की मदद के चक्कर में स्ट्रेंज मल्टीवर्स से छेड़छाड़ कर देता है. मल्टीवर्स का कॉन्सेप्ट ही इस यूनिवर्स के किरदारों के लिए एकदम नया है. वही इनके लिए क्या मुसीबत खड़ी कर सकता है, इसी सवाल का जवाब फिल्म ढूंढने की कोशिश करती है.

पीटर की मदद करने के लिए स्ट्रेंज ने एक चुनाव किया. उसकी मदद करने का चुनाव. बिना इस बात से डरे कि इसका नतीजा क्या होगा. इस फिल्म में आपको किरदार से किरदार का फ़र्क उनकी पावर्स से ज़्यादा उनके चुनाव से महसूस होगा. ऐसा कहा जाता है कि हमारे चुनाव ही हमें बनाते हैं, या हमारे आज के फ़ैसले ही हमारा कल तय करते हैं. यहां इसी चुनाव का फ़र्क एक इंसान को हीरो और एक को विलेन बनाता है. डॉक्टर स्ट्रेंज एक हीरो क्यों और कैसे है. अपनी पावर्स की वजह से नहीं, अपने फ़ैसलों की वजह से.

‘स्पाइडरमैन: नो वे होम’ के बाद वाले इवेंट्स से कहानी शुरू होती है.

डॉक्टर स्ट्रेंज से भी ज़्यादा मुझे एक दूसरी वजह ने फिल्म के लिए एक्साइटेड किया था. फिल्म के डायरेक्टर सैम रैमी ने. टोबी मैग्वायर की ‘स्पाइडरमैन’ ट्रिलजी बनाने वाले सैम लंबे समय बाद मार्वल लौटे हैं. उन पर फिल्म की फ़ील को लेकर कोई दबाव था या नहीं, लेकिन उनके डायरेक्शन की छाप आपको पूरी फिल्म में दिखती है. खासतौर पर अगर आपने उनकी ‘इविल डेड’ वाली फ़िल्में देखी हैं. चाहे वो ट्रैकिंग शॉट हो, या फिर अचानक से धम कर के आने वाला म्यूज़िक, उनके साइन आपको फिल्म में दिखाई देंगे. ये फिल्म एक वीएफएक्स रिच फिल्म है. तकरीबन हर दूसरा सीन ग्रीन स्क्रीन की मदद से शूट किया गया है. फिर भी आपको सैम रैमी के ‘इविल डैड’ वाले मॉन्स्टर वाला मेकअप फिल्म में दिखेगा. ये आज के लिहाज़ से भले ही आउटडेटेड हो चुका है. मगर यहां एक क्रिएटर बस अपने काम को ट्रिब्यूट देना चाह रहा है.

मार्वल की फिल्मों में उनके ह्यूमर को खास तवज्जो दी जाती है. यहां ह्यूमर वाले सीन्स में भी सैम की छाप दिखाई देती है. बाकी फिर डार्क माने जाने वाले सीन्स तो हैं ही. डॉक्टर स्ट्रेंज जैसा असीमित संभावनाओं वाला किरदार, मल्टीवर्स जैसा इंट्रेस्टिंग कॉन्सेप्ट, और सैम रैमी जैसा डायरेक्टर, ये तीनों मिलकर भी फिल्म की सबसे बड़ी प्रॉब्लम फिक्स नहीं कर पाते. न्यू यॉर्क में एक थिएटर है, AMC एम्पायर 25. फिल्म देखने से पहले मैंने कहीं पढ़ा था कि उस थिएटर पर 06 मई के दिन ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ के कुल 70 शोज़ हैं. मतलब एक फिल्म एक ही दिन में उस थिएटर की अलग-अलग स्क्रीन्स पर 70 बार दिखाई जाएगी. ऐसा कैसे संभव है? फिल्म की लेंथ काटकर. फिल्ममेकर के विज़न के साथ छेड़छाड़ कर के.

फिल्म देखने के दौरान ये बातें पूरे समय मेरे दिमाग में आती रही. पहली बात तो मल्टीवर्स का कॉन्सेप्ट फिल्म देखने वाली ऑडियंस के लिए नया है. यहां कॉमिक बुक फैन्स की बात नहीं हो रही है. उसकी उधेड़बुन को टाइम देने की ज़रूरत थी. जब भी आप कोई ऐसा कॉन्सेप्ट लेकर आते हैं, जो लंबे समय तक आपकी फिल्मों का हिस्सा रहेगा, तो उसके बारे में तसल्ली से बताइए. ये नहीं कि एक-एक लाइन के डायलॉग डिलीवर किए, और आगे बढ़ चले. ऐसा फिल्म में एक से ज़्यादा मौकों पर होता दिखता है. बात यहां सिर्फ डायलॉग्स की नहीं हो रही. ऐसा कई सीन्स को देखकर लगेगा कि वो एब्रप्ट तरीके से कट हो रहे हैं. ऐसे में आप खुद उस सीन का महत्व कम कर रहे हैं.

सैम रैमी ने अपने काम को ट्रिब्यूट दिया है.

फिल्म देखने के बाद एक दिन में 70 शो चलाने वाली बात समझ आ जाती है. ये बिल्कुल मुमकिन है कि स्टूडियो ने शोज़ बढ़ाने के चक्कर में एडिटिंग टेबल पर काफी कटाई-छंटाई की हो. ऐसा करने से शो तो बढ़ गए, टिकट भी बिकेंगी, फिल्म के बिज़नेस को फायदा मिलेगा, लेकिन उसकी आत्मा को नुकसान हुआ है. मार्वल की फ़िल्में इमोशन और ह्यूमर का बैलेंस बनाने की कोशिश करती हैं. यहां ह्यूमर बीच-बीच में आता रहता है. पर इमोशन वाले पार्ट पर ये इतनी मज़बूत नहीं कि आपके अंदर कुछ हलचल मचे. आजकल मैं मार्वल का शो ‘मून नाइट’ देख रहा हूं. कुछ दिन पहले सीरीज़ का पांचवा एपिसोड देखा था. वो एपिसोड हर फैंसी एलिमेंट से दूर था. सिर्फ इमोशन पर चलता है. इस कदर कि एपिसोड खत्म होने के बाद आप शांत बैठकर उसके बारे में सोचते हैं.

‘डॉक्टर स्ट्रेंज इन द मल्टीवर्स ऑफ मैडनेस’ ऐसा कुछ इफेक्ट पैदा नहीं कर पाती. फिल्म को दो घंटे में फिट करने की कोशिश कारगर साबित नहीं होती. ऐसे में आप चाहे कितने भी हेवी वीएफएक्स यूज़ करें, उनका असर कुछ देर बाद गायब होने लगता है. ‘डॉक्टर स्ट्रेंज’ के अपने कुछ मोमेंट्स हैं, लेकिन ये मोमेंट्स जुड़कर फिल्म की टोटल लेंथ नहीं बन पाते.

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