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कर्नल संतोष बाबू: चीनी सेना को खदेड़ने वाले ऑफिसर, जिनका रोल सलमान करेंगे!

गलवान घाटी में हुई झड़प में कर्नल बी. संतोष बाबू अपनी आखिरी सांस तक सामने वाली फौज से लड़ते रहे. अब अपने करियर की पहली बायोपिक में सलमान खान उनका रोल करने जा रहे हैं.

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सलमान की इस फिल्म को अपूर्व लाखिया डायरेक्ट करेंगे.
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यमन
29 मई 2025 (Updated: 29 मई 2025, 08:03 PM IST) कॉमेंट्स
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Salman Khan की Sikandar बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिटी. फैन्स भी उन्हें बीच मझधार में छोड़कर उतर गए. खबरें आने लगी कि सलमान मंथन कर रहे हैं, कि आगे क्या करना है. ऐसे कौन से प्रोजेक्ट चुनने हैं जो उनके स्टारडम के साथ न्याय कर सकें? इस क्रम में Kabir Khan और Ali Abbas Zafar जैसे फिल्ममेकर्स के नाम आए. लेकिन फिर सारे अनुमानों को हवा करते हुए उनके अगले प्रोजेक्ट पर बाद अपडेट आता है. बताया जाता है कि सलमान साल 2020 की गलवान घाटी में हुई झड़प पर फिल्म बनाने जा रहे हैं. इस फिल्म को Apoorva Lakhia डायरेक्ट करेंगे.

चूंकि फिल्म लद्दाख में शूट होगी, इसके लिए सलमान ने कड़ी ट्रेनिंग भी शुरू कर दी है. वहां हवा पतली है, उसमें ऑक्सीजन की कमी है. इसलिए सलमान उस माहौल के अनुरूप ही खुद को ट्रेन कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो फिल्म में सलमान, शहीद कर्नल बिकुमल्ला संतोष बाबू (MVC) के रोल में नज़र आएंगे. ये सलमान के करियर की पहली बायोपिक होने वाली है. दरअसल अपूर्व और सलमान की फिल्म राहुल सिंह और शिव अरूर की किताब India’s Most Fearless: 3 के एक चैप्टर पर आधारित होगी. इस चैप्टर का टाइटल है, I had never seen such fierce fighting. यानी ‘मैंने आज तक इतनी भीषण झड़प नहीं देखी’. ये बात किसने कही? जून 2020 की उस रात को आखिर हुआ क्या था? 16 बिहार रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी. संतोष बाबू कौन थे? पूरी कहानी बताएंगे.

15 जून 2020. शाम 7:30 का समय. अंधेरा हो चुका था. गलवान नदी की उफान भरी चिंघाड़ हवा से टकरा रही थी. तभी पेट्रोल पॉइंट-14 पर तैनात हवलदार धरमवीर कुमार सिंह को कुछ सुनाई पड़ता है. ये नदी की आवाज़ नहीं. कदमों की आवाज़ उनकी ओर बढ़ रही है. एक-दो नहीं, हज़ार कदम एक साथ ज़मीन को रौंदते हुए आगे बढ़ रहे हैं. हवलदार धरमवीर को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था. आंखें मींचकर दूर देखने की कोशिश निरर्थक थी, अंधेरे के पार कुछ भी देख पाना मुमकिन नहीं था. किताब में हवलदार धरमवीर ने कहा,

हम 400 से भी कम थे. हमें जल्द ही पता लगने वाला था कि हमारी तरफ दौड़ते हुए चीनी सैनिकों की संख्या तीन गुना थी. हम पिछले दो घंटों से कम चीनी सैनिकों से लड़ रहे थे. लेकिन ये उनकी मुख्य फोर्स थी. चीनी पक्ष ने हम पर पूरी तरह से हमला कर दिया था.

आगे बढ़ने से पहले थोड़ा गलवान घाटी को समझ लेते हैं. ये लद्दाख का क्षेत्र है. ये इलाका लद्दाख के पूर्व में है और भारत-चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पास पड़ता है. गलवान नदी का बहाव अक्साई चिन से लद्दाख की ओर है. अक्साई चिन पर अभी चीन का कब्जा है. गलवान नदी लद्दाख में आकर श्योक नदी में मिल जाती है. एलएसी और श्योक नदी के बीच गलवान नदी के आसपास का इलाका गलवान घाटी कहलाता है.

भले ही भारतीय और चीनी आर्मी की भयानक झड़प 15 जून को हुई. लेकिन चीन पहले से इसकी तैयारी कर रहा था. 04 मई की सुबह लेह में तैनात मेडिक नायक दीपक बैरक में मरीजों की जांच कर रहे थे. तभी 16 बिहार रेजिमेंट् के सूबेदार एस.आर. साहू का ऑर्डर आता है, ‘सभी को फौरन KM-120 पहुंचना है’. नायक दीपक ने पूछा कि वो आ गए हैं? यहां वो चीनी सैनिकों की बात कर रहे थे. KM-120, श्योक नदी के पास स्थित भारतीय आर्मी की एक पोस्ट है. ये लेह से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर है.

सूबेदार साहू जानते थे कि चीनी आर्मी आगे बढ़ती जा रही है. इसलिए उनकी रेजिमेंट को बुलाया गया है. 16 बिहार रेजिमेंट के जवान 05 मई को रात 01 बजे पोस्ट पर पहुंच चुके थे. अगली सुबह उस पोस्ट पर शांति थी. लेकिन खबर पहुंचती है कि लद्दाख के पैंगोंग सो में भारतीय और चीनी सैनिकों की झड़प हुई है. 05 मई को 17 कुमाऊं बटालियन और चीनी सेना के बीच जो झड़प हुई, उसे गलवान घाटी विवाद का ट्रिगर पॉइंट माना जाता है. सूबेदार साहू ने बताया कि 06 मई की सुबह 75 जवान KM-120 से रवाना हुए. उन्हें पेट्रोल पॉइंट-14 से पहले पड़ने वाले पेट्रोल बेस तक पहुंचना था.

07 मई की दोपहर. 16 बिहार रेजिमेंट के सेकंड इन कमांड लेफ्टिनेंट कर्नल रविकांत ने देखा कि कुछ चीनी सैनिक पेट्रोल पॉइंट-14 के करीब आ रहे हैं. चीनी सिपाही अपने क्षेत्राधिकार से बाहर थे. लेफ्टिनेंट कर्नल रविकांत उन्हें आगाह करने के लिए पहुंचे. यहां बातों-बातों में दोनों दलों के बीच झड़प हो गई. सूबेदार साहू बताते हैं कि वो बहुत छोटी झड़प थी. दोनों तरफ के जवान चोटिल हुए लेकिन किसी भी ओर ज़्यादा क्षति नहीं हुई. इस घटना से भले ही भारतीय आर्मी का नुकसान नहीं हुआ. लेकिन जवानों के मन में एक किस्म का गुस्सा था. वो इस बात से खफा थे कि चीनी सैनिक उनके सेकंड इन कमांड ऑफिसर के साथ ऐसी बदतमीज़ी कैसे कर सकते हैं. हालांकि लेफ्टिनेंट कर्नल रविकांत ने उन्हें शांति से काम करने की ही सलाह दी.

इस घटना के बाद भी भारतीय और चीनी सैनिक कई मौकों पर एक-दूसरे से आमने-सामने होते. भले ही हाथापाई नहीं होती थी, लेकिन कहा-सुनी की खबरें सुनने को ज़रूर मिलती. गलवान घाटी और पैंगोंग के कुछ इलाकों में हुए तनाव को सुलझाने के लिए दोनों तरफ के ऑफिसर्स की मीटिंग हुई. लेकिन कोई हल नहीं निकला. ऐसी नौबत बन पड़ी कि सीनियर मिलिट्री अधिकारी ही इसे संभाल सकते हैं. नतीजतन 06 जून को भारतीय आर्मी के लेह में स्थित यूनिट के कोर (Corps) कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीनी मेजर जनरल लिन लियू की मीटिंग हुई. इस मीटिंग के बाद विदेश मंत्रालय ने एक स्टेटमेंट जारी किया. बताया कि दोनों पक्ष मिलिट्री और डिप्लोमैटिक समझौतों का सम्मान करेंगे, और शांतिपूर्वक इस मसले का हल खोजेंगे.

इस प्रेस रिलीज़ की खबर अभी देश के हर कोने में भी नहीं पहुंची थी कि चीनी सेना अपनी बात से पलट गई. 07 जून को उनकी एक टुकड़ी पेट्रोल पॉइंट-14 (PP-14) से आगे बढ़ गई. उन्होंने भारत की ओर पड़ने वाली लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल वाले हिस्से में कुछ टेंट लगा दिए. इस पर भारतीय सेना से बहस हुई. वो वहां से पीछे भी हटे लेकिन पेट्रोल पॉइंट-14 से आगे जाने को राज़ी नहीं हुए. अगले एक हफ्ते कुछ और मीटिंग हुईं. लेकिन सब निष्फल साबित हुई. चीनी सैनिक अभी भी PP-14 पर ही थे. हवलदार धरमवीर ने बताया कि उनके कमांडिंग ऑफिसर कर्नल बी. संतोष बाबू PP-14 तक गए. चीनी ऑफिसर से वापस लौटने को कहा. बताया कि वो लोग भारत की सीमा में हैं. इस पर दूसरी ओर से जवाब आया कि आप लोग वापस चले जाइए, आप चीन की सीमा में हैं. हर मुमकिन तरीके से चीनी आर्मी के ऑफिसर को समझाने की कोशिश की गई. मगर वो लोग पीछे नहीं हटे. उस पूरे हफ्ते में कई मौकों पर ऐसा ही हुआ. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था.

15 जून की सुबह चीनी आर्मी अपने प्लान में आगे बढ़ा. उन्होंने PP-14 के पास एक आब्ज़र्वेशन पोस्ट (PO) बना लिया. यानी यहां से वो भारतीय आर्मी की हर गतिविधि पर नज़र रख सकते थे. कर्नल बाबू इस पर भड़क पड़े. वो नहीं चाहते थे कि चीनी आर्मी आब्ज़र्वेशन पोस्ट के ज़रिए उनकी सेना की हर खबर आगे पहुंचाती रहे. साथ ही उन्हें इस बात का आभास भी हो गया था कि चीनी सेना के मंसूबे सही नहीं थे. उसी दोपहर तीन बजे कर्नल बाबू ने KM-120 के लिए एक संदेश भेजा. वहां से 75 जवानों को PP-14 बुलाया गया. उस पोस्ट पर 81 जवान मौजूद थे. करीब आधे घंटे बाद सात गाड़ियों में बैठकर 75 जवान PP-14 के लिए रवाना हो चुके थे.

दूसरी ओर कर्नल बाबू ने आदेश दिया कि वो अपने साथ एक ग्रुप लेकर जाएंगे. उनका काम होगा कि वो चीन के आब्ज़र्वेशन पोस्ट को ध्वस्त कर दें. बिना वक्त गवाएं कर्नल बाबू अपने साथियों के साथ PP-14 की ओर बढ़े. अपनी गाड़ियों से उतरकर वो सीधा वहां पहुंचे जहां टेंट और आब्ज़र्वेशन पोस्ट लगे थे. कर्नल बाबू ने चीनी यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर चेन हॉन्गजून से सीधा कहा कि आप और आपके जवान वापस लौट जाइए. चीनी ऑफिसर ने कुछ कहा नहीं. बल्कि उसने ज़ोर से कर्नल बाबू को धक्का दिया. उनके साथ बदतमीज़ी करने लगे. भारतीय जवान बात करने की कोशिश करें, और दूसरा पक्ष सिर्फ धक्क-मुक्की पर ही उतारू था.

जब कर्नल बाबू को धक्का लगा, तब उनकी टुकड़ी के सीने में एक आग धधक उठी. हर यूनिट अपने कमांडिंग ऑफिसर को बहुत मानती है. उनके साथ ऐसा होते हुए नहीं देख सकती थी. वहां मौजूद एक फौजी ने इस पर कहा था,

ये ऐसा था जैसे आप अपने पेरेंट्स पर हमला होते हुए देख रहे हो. क्या आप चुपचाप खड़े होकर ऐसा देख पाओगे. बिल्कुल भी नहीं. कोई भी नहीं सह सकेगा.

भारतीय और चीनी सैनिक एक-दूसरे पर टूट पड़े. हाथों से हमले होने लगे. आसपास पड़े पत्थरों का इस्तेमाल किया गया. कुछ चीनी सैनिक दौड़कर थोड़ी ऊंचाई पर पहुंच गए. ताकि वहां से भारतीय सेना पर पत्थर फेंक सकें. दोनों पक्ष इस तरह से लड़ते रहे. कुछ देर बाद पत्थरबाज़ी रुक गई. चीनी सैनिक वापस लौटने लगे. हालांकि इस दौरान छह चीनी अधिकारी चोटिल हो गए. उनमें से एक कमांडिंग ऑफिसर था और दूसरा उनका इंटरप्रेटर था. भारतीय सेना उन्हें अपने साथ ही ले आई. उनका इलाज शुरू हुआ. लेकिन यहां आर्मी के सामने एक बड़ी समस्या पैदा हो गई. इंटरप्रेटर को होश नहीं आ रहा था. कर्नल बाबू चाहते थे कि वो इंटरप्रेटर के ज़रिए इस तनाव को रोकने का संदेश भेजें. लेकिन अब वो उम्मीद भी क्षीण पड़ चुकी थी.

कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष बाबू ये जानते थे कि चीनी सैनिक इतने पर नहीं रुकने वाले. वो हमला करने के लिए ज़रूर लौटेंगे. ऐसे में उन्होंने KM-120 से मदद मांगी. 3 पंजाब इंफेंट्री बटालियन, 81 फील्ड रेजिमेंट और 3 मीडियम रेजिमेंट के जवान पहुंच गए. फौज को सेटल होने का भी समय नहीं मिला, क्योंकि अंधेरा होते ही चीनी सेना ने हमला शुरू कर दिया. भारतीय सेना के 400 जवान अपने जज़्बे के साथ तैयार थे. लेकिन उनके सामने 1200 चीनी सैनिक अंधाधुन दौड़ते हुए आ रहे थे. भीषण झड़प हुई. ऐसी चीख-पुकार मची कि घाटी में कोई और शोर नहीं सुनाई दे रहा था. इससे पहले की झड़प में हाथापाई हो रही थी, या फिर एक-दूसरे पर पत्थर से हमला किया जा रहा था. लेकिन इस बार चीनी सेना के हाथों में सिर्फ पत्थर नहीं थे. वो कांटों से लिपटे हुए डंडे लेकर लड़ रहे थे. उनके पास रायट गियर था, जिसका इस्तेमाल दंगे जैसी स्थिति में होता है.

इंडियन आर्मी को समझ आ गया था कि ये पेट्रोलिंग वाली यूनिट नहीं है. ये कोई स्पेशल फोर्स है जो पहले से इस हमले के लिए तैयार थी. उस रात के बारे में सूबेदार साहू ने बताया,

रात में बहुत ज़बरदस्त फाइट हुई. बहुत लोग मारे गए. किसी का सिर कुचल गया. किसी की छाती पर चोट आई थी. उनका भी वही हाल और हमारा भी वही हाल.

दोनों सेनाओं के सैनिक हर तरफ लड़ रहे थे. कुछ लड़ते हुए गलवान नदी में जा रहे थे. उस पानी में चंद पल ठहरना भी रूह कंपकंपाने वाला एहसास था. ऊपर से हवा बहुत पतली थी. वहां का ऑक्सीजन लेवल ऐसा था कि 200 मीटर चलने पर सांस फूलने लगे. ऐसी परिस्थिति के बावजूद भारतीय जवान पूरी हिम्मत से चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे. तभी उन्हें एक बड़ा झटका मिला.
घंटेभर लड़ने के बाद फौज को एहसास हुआ कि कमांडिंग ऑफिसर वहां नहीं हैं. ये संदेश KM-120 भेजा गया, कि CO साहब नहीं मिल रहे हैं. उनके रेडियो से संपर्क किया गया. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. उनके BSNL नंबर पर फोन घुमाया गया लेकिन वो नेटवर्क से बाहर था. एक तरफ खून-खच्चर मचा देने वाली जंग चल रही थी. तो दूसरी तरफ कमांडिंग ऑफिसर की खोज शुरू हो गई. साढ़े नौ बजे तक ये झड़प चलती रही. हवलदार धरमवीर ने उस मंज़र को याद कर कहा कि मैंने आज तक इतनी भीषण झड़प नहीं देखी. भारतीय सेना संख्या में भले ही कम थी. लेकिन उनकी रगों में कूट-कूटकर जोश बह रहा था. सब के मुंह पर एक ही बात थी, कि किसी भी तरह चीनी सैनिकों को खदेड़ना है. ऐसा ही हुआ भी.

रात के करीब 10:30 बजे घाटी में फिर से सन्नाटा पसरने लगा. चीनी सैनिक अपने घायलों को पीछे छोड़कर लौट गए. भारतीय सेना के लिए अभी भी रात खत्म नहीं हुई थी. सब कुछ शांत होने के बाद जवान नदी के किनारे बैठे. गिनती शुरू हुई. लेकिन कमांडिंग ऑफिसर अभी भी लापता ही थे. तेज़ी से उन्हें खोजा जाने लगा. आधी रात को उनकी बॉडी मिली. डॉक्टर्स अपनी पुरजोर कोशिश में लग गए कि उन्हें किसी भी तरह से सांस आ जाए. लेकिन कोई भी प्रयास कारगर साबित नहीं हुआ. कर्नल बाबू को उठाने की कोशिश की. तभी उनकी नाक से खून के धक्के बहने लगे. डॉक्टर्स को आशंका होने लगी कि अब बहुत देर हो चुकी है. उन्हें दुरबुक के आर्मी हॉस्पिटल भेजा गया. लेकिन कर्नल संतोष बाबू को बचाया नहीं जा सका. उस रात हुई झड़प में कर्नल बाबू समेत 20 जवान शहीद हुए.

चीनी सैनिकों के झड़प के दौरान कर्नल संतोष बाबू गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उसके बाद भी वो अपनी आखिरी सांस तक सामने वाली आर्मी से लड़ते रहे, और उन्हें कामयाब नहीं होने दिया. उनके इसी अद्वितीय साहस के लिए उन्हें महावीर चक्र अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया.

तेलंगाना के सूर्यपेठ में जन्मे संतोष बाबू साल 2004 में लेफ्टिनेंट बने. उन्हें 16 बिहार रेजिमेंट में कमिशन किया गया. अपने पहले असाइनमेंट के लिए कश्मीर भेजा गया. साल 2019 में उन्हें 16 बिहार रेजिमेंट की लद्दाख में तैनात यूनिट का कमांडिंग ऑफिसर बनाया गया था. पिता ने आगे चलकर एक इंटरव्यू में कहा था कि आर्मी का सपना उनका था, लेकिन वो उनके बेटे ने पूरा किया.

अब गलवान घाटी की झड़प और कर्नल बी. संतोष बाबू की कहानी को बड़े परदे पर दर्शाया जाएगा. सलमान इस रोल के लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं. बताया जा रहा है कि जुलाई 2025 से फिल्म की शूटिंग भी शुरू होने वाली है. इसे 70 दिनों में शूट किया जाएगा. मेकर्स का प्लान है कि इस फिल्म को 2026 में रिलीज़ किया जाए. बाकी अभी तक आधिकारिक तौर पर कोई रिलीज़ डेट अनाउंस नहीं हुई है.

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