"मुझमें अनुराग कश्यप से आधा टैलेंट भी नहीं है" - अनुभव सिन्हा
अनुभव सिन्हा ने कहा कि उनका करियर अब तक तीन बार मर चुका है.

24 मई को नेटफ्लिक्स पर Anubhav Sinha की फिल्म Bheed रिलीज़ हुई. बता दें कि ये सिनेमाघरों में बीती 24 मार्च को रिलीज़ हुई थी. ओटीटी रिलीज़ के बाद अनुभव सिन्हा मीडिया से बातचीत कर रहे हैं. एक हालिया इंटरव्यू में उन्होंने अपने सिनेमा, अनुराग कश्यप और विशाल भारद्वाज जैसे फिल्ममेकर्स और क्रिटिक्स पर खुलकर बात की. उन्होंने कहा कि वो खुद को अनुराग कश्यप और विशाल भारद्वाज से आधा भी टैलेंटेड नहीं मानते. खासतौर पर उनकी फिल्म ‘कैनेडी’ देखने के बाद.
अनुभव से ETimes के इंटरव्यू में पूछा गया कि क्या वो अभी भी विशाल भारद्वाज, हंसल मेहता और अनुराग कश्यप जैसे फिल्ममेकर्स से प्रेरणा लेते हैं. इस पर उन्होंने कहा,
हां बिल्कुल. उनसे प्रेरित हूं, उनसे जलन भी होती है. काश मुझमें विशाल भारद्वाज और अनुराग कश्यप का आधा टैलेंट भी होता. मुझे विशाल से बहुत जलन होती है. अनुराग से भी, जब से मैंने उनकी फिल्म ‘कैनेडी’ देखी है.
‘भीड़’ की रिलीज़ से पहले फिल्म को लेकर बहुत हो-हल्ला मचा था. सोशल मीडिया पर एक तबका उसके खिलाफ बॉयकॉट के ट्रेंड चला रहा था. अनुभव से पूछा गया कि लोगों की आलोचना पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है. उन्होंने बताया,
मुझे नहीं लगता कि मेरी आलोचना हुई है. यहां तक कि मुझे लोगों और मीडिया से जमकर प्यार मिला है. बहुत लोग नहीं जानते होंगे लेकिन अब तक तीन बार मेरा करियर मर चुका है. ‘तुम बिन’ के बाद ‘आपको पहले भी कहीं देखा है’ आई और मुझे वन हिट वंडर कह दिया गया. मेरा करियर मर गया. फिर मैंने ‘दस’ बनाई जो हिट हुई. उसके बाद आई ‘कैश’. मुझे टू हिट वंडर कहा गया और मेरा करियर मर गया. फिर मैंने ‘रा वन’ बनाई जो किसी को समझ नहीं आई.
अनुभव ने आगे जोड़ा,
‘तुम बिन’ 22 साल तक ज़िंदा रही. ‘दस’ 18 साल तक. और ‘रा वन’ 11 साल तक. अब ‘रा वन’ की तकदीर बदल गई है और लोग उसे हिट बुलाने लगे हैं. इन लोगों ने मुझे 2011 में तबाह कर दिया था. ‘रा वन’ की इतनी आलोचना हुई कि अगर मैं कमज़ोर इंसान होता तो खुद को खत्म कर चुका होता. मुझसे भी ज़्यादा लोग शाहरुख खान के पीछे पड़े थे. वो उन्हें नीचे खींचना चाहते थे और ऐसा करने में कामयाब भी हुए.
अनुभव सिन्हा ने आगे कहा कि ‘तुम बिन’, ‘दस’, ‘रा वन’ से लेकर ‘मुल्क’, आर्टिकल 15’ और ‘भीड़’ तक उनके पास अच्छी फिल्में हैं. और ये फिल्में लंबा जिएंगी. बता दें कि साल 2018 में आई ‘मुल्क’ से अनुभव सिन्हा की सिनेमाई आवाज़ पूरी तरह बदल गई. ये भी कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी आवाज़ खोज ली. उसके बाद आई उनकी फिल्में समाज या पॉलिटिकल सिस्टम पर कमेंट करती हैं. कुछ अपना काम कर पाईं तो कुछ नहीं.
वीडियो: अनुभव सिन्हा ने सौरभ द्विवेदी को बताया 'भीड़' की स्क्रिप्ट लिखे जाने का प्रॉसेस