जीतू शास्त्री को अमितोष नागपाल ने इतनी प्यारी विदाई दी है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है
अमितोष ने जीतू शास्त्री को याद करते हुए जो लिखा, वो किसी इंसान और उसके टैलेंट को करीब से जानने के बाद ही लिखा जा सकता है.

15 अक्टूबर को खबर आई कि एक्टर और थिएटर पर्सनैलिटी जीतेंद्र शास्त्री नहीं रहे. जीतू ने अपने करियर में कई फिल्मों में काम किया. मगर उनके हिस्से कभी कोई ऐसा किरदार नहीं आया, जो उनकी पहचान का हिस्सा बन सके. वो उम्र भर छोटे-मोटे कैरेक्टर्स करते रहे. फिल्में बस उनका पेट भरने का काम करती थीं. एक्टिंग के पैशन को जिलाए रखने के लिए वो थिएटर करते थे. उन्होंने अपने करियर में 'दौड़', 'चरस', 'ब्लैक फ्राइडे', 'लज्जा' और 'इंडियाज़ मोस्ट वॉन्टेड' जैसी फिल्मों में काम किया. इन फिल्मों से आपको उनके किरदार बमुश्किल ही याद होंगे. मगर थिएटर की दुनिया में उनका नाम सम्मान के साथ लिया जाता था. यही वजह रही कि उनके गुज़रने पर मनोज बाजपेयी से लेकर संजय मिश्रा, स्वानंद किरकिरे और राजेश तैलंग जैसे कलाकारों उन्हें ने याद किया.
जीतू के गुज़रने पर एक्टर, राइटर और डायरेक्टर अमितोष नागपाल ने उनकी याद में एक इंस्टाग्राम पोस्ट लिखी. अमितोष, ‘दबंग’, ‘बेशरम’, ‘आरक्षण’ और ‘रंगरेज़’ जैसी फिल्मों में बतौर एक्टर काम कर चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने ‘गुलाब गैंग’, ‘हिंदी मीडियम’ और ‘सरदार का ग्रैंडसन’ जैसी फिल्मों के डायलॉग्स और कहानी भी लिखी. फिलहाल वो देशभर में घूम-घूमकर ‘महानगर के जुगनू’ नाम के नाटक का मंचन कर रहे हैं. खैर, अमितोष ने जीतू शास्त्री को याद करते हुए जो लिखा, उसे पढ़कर जनता भावुक हुई जा रही है. क्योंकि इस पोस्ट में ऐसी बातें लिखी हैं, जो किसी इंसान और उसके टैलेंट को करीब से जानने के बाद ही लिखा जा सकता है. वो भी तब, जब आप उस व्यक्ति के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखते हों. अमितोष अपने इस पोस्ट में लिखते हैं-
''महीने में 2 बार अचानक रात को फ़ोन आता था. फिर आवाज़ आती थी
कैसा है अमी? मैं कहता था मज़े में... आप कैसे हो? फिर वो कहते थे 'मैं?' और मैं के बाद ज़रा देर रुककर कहते, 'ठीक हूं यार'. इस 'मैं' और 'ठीक हूं यार' के बीच जो दूरी थी, उसमें उदासी को गले लगाकर मुस्कुराने का सफर वो तय कर लेते थे. जीतू भाई मेरे रतजगों के साथी थे. उनकी और मेरी बात अगर कोई सुने तो उसमें समझ आने जैसा कुछ नहीं था. लेकिन हम जब बात करते थे, ठहाके लगा के हंसते थे. जीवन के बेतुकेपन का मज़ाक उड़ाते थे. और बस हंसते जाते थे.
मेरे एक नाटक में उन्होंने अभिनय किया था, जिसमें उनका एक संवाद याद आ रहा है- 'इज़्जत-बेइज़्जती मन का वहम होता है. बहुत दिन लगते हैं बनाने में, और एक दिन में उतर जाती है. खाना पीना और मौज लेना चाहिए. वो फिर भी साथ रहती है'. उस नाटक में बहुत मौज ली उनके साथ.
इस महानगर में बड़ा अभिनेता कहलाने के लिए बहुत कुछ चाहिए. पर मेरी नज़र में बड़ा अभिनेता वो है, जिसके पास अभिनेता का मिज़ाज हो. जो किरदार से दोस्ती करके उसे कोई किस्सा दे सके. जो बेजान शब्दों में अपनी रूह का कोई हिस्सा दे सके.
जीतू भाई बड़े अभिनेता थे. मैंने अपनी हर कहानी में उनके लिए किरदार लिखा. लेकिन बाजार तक वो किरदार पहुंच नहीं पाए. मैंने इंतज़ार किया की बाज़ार में यह फनकार एकदम छा जाए, तो मेरी कहानी के किरदारों को आज़ाद किया जाए. पर आज वो फनकार ही आज़ाद हो कर चला गया. मैं आपके नखरे उठाना चाहता था जीतू भाई! पर ये ज़िन्दगी बहुत तेजी से गुजरती है यार...
मेरी कहानियों का किरदार, रतजगों का एक साथी चला गया.
आज आखिरी बार उन्हें देखा, तो उनकी आवाज़ सुनाई दी 'कैसा है अमी?
मैं?... ठीक हूं यार!''
जीतू आखिरी बार TVF Tripling में दिखाई दिए थे. इस वेब सीरीज़ में उन्होंने चिल्ला भाई नाम का किरदार निभाया था. जीतेंद्र शास्त्री की मौत की वजह अब तक पता नहीं चल सकी है.
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