The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Election
  • The story of Shivpal Yadav in the wake of internal feud in Samajwadi Party

शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी की टूटी टांग हैं या बैसाखी?

पढ़िए, समाजवादी पार्टी में क्या है झंझट और शिवपाल क्यों हैं महत्वपूर्ण.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
ऋषभ
16 अगस्त 2016 (Updated: 16 अगस्त 2016, 01:04 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
समाजवादी पार्टी में कुछ अनोखा हो रहा है. रविवार को मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल सिंह यादव ने इस्तीफ़ा देने के धमकी दी. कहा कि अखिलेश के अधिकारी बात नहीं मान रहे और मंत्री मनमानी कर रहे हैं. सोमवार को मुलायम भी भाई के सपोर्ट में आ गए. बोले कि अगर शिवपाल ने इस्तीफ़ा दे दिया, तो पार्टी की हालत ख़राब हो जाएगी. अखिलेश को भी 'डांट' लगाई. ये सब कुछ हुआ मुलायम के चचेरे भाई रामगोपाल यादव के आदमियों के चलते. उन पर मैनपुरी में गरीब लोगों की जमीनें हड़पने का आरोप लगा था. शिवपाल के पास शिकायत आई. लेकिन शिवपाल के कहने के बावजूद जिला प्रशासन ने कोई एक्शन नहीं लिया. हालांकि अब मुलायम के कहने के बाद शिवपाल थोड़े नरम दिख रहे हैं.

शिवपाल सिंह का इतिहास: भाई मुलायम के विश्वासपात्र

6 अप्रैल 1955 को जन्म हुआ था शिवपाल का. इटावा जिले के सैफई में. 5 भाई और एक बहन थे इनके. मुलायम हैं इनके बड़े भाई. इन्होंने बीए तक पढ़ाई की. मुलायम के राजनीति में आने के बाद इन्होंने भी पूरा हाथ बंटाया.
90 के दशक में ये जिला पंचायत इटावा के अध्यक्ष बने. पर इन्होंने अपनी राजनीति को-ऑपरेटिव से शुरू की. जो काम अमित शाह ने गुजरात में बीजेपी के लिए किया था, वही काम इन्होंने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए किया. को-ऑपरेटिव के जरिये हर जिले में समाजवादी पार्टी की पकड़ बनाई. उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक लिमिटेड, लखनऊ के अध्यक्ष बने. 1996 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचे. 97-98 में विधानसभा की अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़ी समिति के सदस्य बने. फिर एक वक़्त आया कि समाजवादी पार्टी के महासचिव भी रहे. फिर जब मुलायम की सरकार आई तो कैबिनेट मिनिस्टर भी रहे. जब मायावती की सरकार बनी तो ये नेता प्रतिपक्ष रहे.
 
शिवपाल सिंह यादव
शिवपाल यादव

भाई के साथ इन्होंने मेहनत बहुत की है. राजनीति में अपना पूरा वक़्त दिया है. शिवपाल का यूपी के बाहर उतना रौला नहीं है. पर राज्य में बहुत पकड़ है. पर ये सब कुछ आसान नहीं रहा है. पार्टी की राजनीति के अलावा पारिवारिक कलह भी बहुत रहा है. तीन बार तो शिवपाल इस्तीफे की धमकी दे चुके हैं. पर मुलायम ने मना लिया है. क्योंकि समाजवादी पार्टी में मुलायम के बाद शिवपाल ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिनकी यूपी के हर जिले में पकड़ है.
चचेरे भाई रामगोपाल भी हैं, पर वो यूपी में उतनी पकड़ नहीं रखते. दिल्ली का काम देखते थे. राज्यसभा से सांसद हैं. पर शिवपाल जनता के नेता हैं. जसवंतनगर से डेढ़-दो लाख वोट से जीतते हैं. हालांकि यहां से इनके बेटे आदित्य यादव जसवंत नगर से ही जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गए थे. समाजवादी पार्टी के बागी दुष्यंत सिंह यादव से.
Pics_of_Aditya_Yadav
आदित्य यादव

डिंपल यादव के फिरोजाबाद में राज बब्बर से हार के बाद 'यादव परिवार' की ये सबसे चर्चित हार थी.
maxresdefault
डिंपल यादव और अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी थे शिवपाल

मुलायम और शिवपाल की उम्र में 16 साल का अंतर है. ऐसे में बूढ़े होते मुलायम की जगह शिवपाल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार देखा जाने लगा था. पर 2012 विधानसभा चुनावों में मुलायम के बेटे अखिलेश यादव की सक्रियता ने इस पर फुल स्टॉप लगा दिया. उस समय शिवपाल बड़े नाराज हुए थे. मीडिया में ऐसा आया था कि शिवपाल ने कहा: 'जिस बेटे को अपने सामने बड़ा होते देखा, वो अब हम सबसे बड़ा हो जायेगा.' किसी जमाने में समाजवादी पार्टी ने 'वंशवाद' को सिद्धांतत: दुत्कारा था. पर अपने बेटे के मामले में मुलायम भाई को भी भूल गए. पर उस वक़्त भी शिवपाल को मना लिया गया था. और अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया गया.

चाचा-भतीजा की आपसी झंझट

shivpal-l
अखिलेश यादव और शिवपाल यादव: indianexpress से

पर इसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश और शिवपाल में तकरारें होती रहीं. आइये देखते हैं कि नई वाली से पहले कब-कब तकरारें हुई हैं:
1.


अखिलेश के चीफ सेक्रेटरी आलोक रंजन रिटायर हो रहे थे. कहते हैं कि शिवपाल सिंह ने अपना रौला लगाकर दीपक सिंघल को पोस्ट दिलवा दी. हालांकि अखिलेश ने अपने पसंदीदा प्रवीर कुमार को कार्यवाहक चीफ सेक्रेटरी भी बना दिया था.
2.


फिर खबर आई कि शिवपाल सिंह ने बिना अखिलेश की मंजूरी के मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल की समाजवादी पार्टी में विलय की मंजूरी दे दी थी. पर अखिलेश नाराज हो गए. इस मामले के मिडिलमैन बलराम यादव को मंत्रिमंडल से निकाल दिया. पर बाद में शिवपाल के कहने पर वापस ले लिया. कौमी एकता दल का विलय नहीं हुआ. हालांकि आज खबर आ रही है कि ये विलय हो सकता है.
3.


बेनी प्रसाद वर्मा समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस जा चुके थे. इनको वापस लाने में शिवपाल का योगदान था. अखिलेश तैयार नहीं थे इसके लिए. पर मुलायम ने मना लिया.
4.


अमर सिंह की भी वापसी को लेकर घमासान हुआ था. रामगोपाल और आजम खान अमर के विरोध में थे. पर शिवपाल उनके साथ थे. अमर बाद में पार्टी में शामिल हो ही गए.
5.


ये भी खबर थी कि शिवपाल ने अखिलेश के नजदीकी सुनील यादव और आनंद सिंह भदौरिया को पार्टी से बाहर कर दिया था. नाराज अखिलेश 'सैफई महोत्सव' में नहीं गए. जब उन दोनों को पार्टी में वापस लिया गया, तभी अखिलेश माने.
6.


बिहार चुनाव के दौरान नीतीश-लालू के साथ गठबंधन पर अखिलेश को थी नाराजगी. पर शिवपाल का मन था. बाद में मुलायम ही नाराज हो गए. गठबंधन टूट गया.
7.


अतीक अहमद को लेकर भी बवाल हुआ था. कहते हैं कि शिवपाल अतीक के साथ थे. पर अखिलेश नाराज थे. इतने कि कौशाम्बी के एक मंच से अतीक को धकिया दिया.
8.


जवाहर बाग़ के रामवृक्ष यादव काण्ड में भी शिवपाल पर आरोप लगे थे. कहा जा रहा था कि शिवपाल के चलते ही अखिलेश कोई एक्शन नहीं ले पा रहे थे.
9.


2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान ही अखिलेश और शिवपाल में मतभेद की बात आई. पश्चिम यूपी के विवादस्पद नेता डी पी यादव के पार्टी में आने को लेकर. अखिलेश ने आने नहीं दिया कि पार्टी की इमेज खराब हो जाएगी. पर शिवपाल का कुछ और मन था.
जो भी हो, शिवपाल सिंह का कद समाजवादी पार्टी में बहुत ऊंचा है. ये बात मुलायम भी मानते हैं. तभी तो शिवपाल को हमेशा मना लाते हैं.

Advertisement