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पुलिस की नौकरी छोड़ नेता बने अखिलेश कुमार और रवि ज्योति जीते कि हारे?

क्या है नरपतगंज और राजगीर सुरक्षित सीट का हाल.

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रवि ज्योति (बाएं) कांग्रेस के टिकट पर महागठबंधन की ओर से मैदान में थे. अखिलेश कुमार (दाएं) निर्दलीय मैदान में थे. दोनों ने पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री की है.
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डेविड
11 नवंबर 2020 (Updated: 11 नवंबर 2020, 07:26 AM IST) कॉमेंट्स
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खाकी छोड़ खादी पहनने वाले नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त रही है. बिहार के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस यानी DGP गुप्तेश्वर पांडे ने जब वॉलंटरी रिटायरमेंट लिया तो कहा गया कि वो चुनाव लड़ेंगे. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में शामिल भी हुए, लेकिन चुनाव नहीं लड़ पाए. हालांकि इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में दो नेता ऐसे हैं जिन्होंने खाकी छोड़कर खादी अपनाई. ये हैं नरपतगंज सीट से निर्दलीय प्रत्याशी अखिलेश कुमार जो डीएसपी रह चुके हैं. और दूसरे हैं राजगीर सुरक्षित सीट से कांग्रेस कैंडिडेट रवि ज्योति कुमार.
पुलिस की नौकरी छोड़ नेता बने ये दो कैंडिडेट जीते या हारे. जानते हैं.
नाम-अखिलेश कुमार पार्टी-निर्दलीय विधानसभा सीट- नरपतगंज वोट मिले-4891
Akhilesh Kumar सबसे नीचे अखिलेश कुमार का नाम है.

नरपतगंज सीट से भारतीय जनता पार्टी के जयप्रकाश यादव ने जीत हासिल की. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के अनिल कुमार यादव 28610 वोटों के अंतर से हरा दिया. अखिलेश कुमार को मात्र 2.44 प्रतिशत वोट मिले.

कौन हैं अखिलेश कुमार

2013 में BPSC यानी बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा दी. 9वीं रैंक आई. इसके बाद उन्होंने पुलिस सर्विस ज्वाइन की. 2013 से 2019 तक डीएसपी रहे. इलाके में उनकी छवि सिंघम की रही है. 2019 में नौकरी छोड़ने के बाद प्रोफेसर बन गए. पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. समाजसेवा के काम में भी लगे हैं. उन्होंने चमकी बुखार और बाढ़ के वक्त काम करने वाले युवाओं की काफी मदद की थी.
पुलिस की नौकरी छोड़ने के सवाल पर उन्होंने लल्लनटॉप से कहा था,
"मुझे लगा कि क्षेत्र में जाकर लोगों से जुड़ना चाहिए. क्योंकि युवाओं को गांवों में मिसगाइड किया जा रहा है."
वह नहीं चाहते थे कि वो खुद को एक अनुमंडल तक सिमित रखे. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वह छात्रों को गाइड करते हैं. ताकि वो अच्छी शिक्षा हासिल कर सकें. उन्होंने खुद कॉरेस्पोंडेंस से पढ़ाई की है. उनका कहना है कि सुविधाओं के अभाव में पढ़ाई की है इसलिए वो गरीब छात्रों का दर्द जानते हैं.
डीएसपी रहते उन्होंने 'पुलिस आपके द्वार' पर काम किया. ताकि लोगों को पुलिस के पास ना जाना पड़े. पुलिस खुद लोगों के घर जाए. इस विधानसभा चुनाव में निर्दलीय मैदान में थे.अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने खुद के लिए वोट नहीं मांगा. वो कहते रहे कि आप ये देखिए कि आपकी उम्मीदों पर कौन खरा उतर रहा है. उसे वोट दीजिए. उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में कहा था कि बिहार चुनाव का सबसे जरूरी नारा होना चाहिए, 'पढ़ाई, कमाई और दवाई, हर बिहारी के हक की लड़ाई.
अब चलते हैं दूसरे नेताजी की तरफ जिन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ा.
नाम-रवि ज्योति कुमार पार्टी-कांग्रेस विधानसभा सीट- राजगीर वोट मिले-51143
Ravi Jyoti
2015 के विधानसभा चुनाव में सत्यदेव नारायण आर्य को हराने वाले रवि ज्योति इस चुनाव में आर्य के बेटे कौशल किशोर से 16048 वोटों के अंतर से हार गए. बता दें कि सत्यदेव नारायण आर्य फिलहाल हरियाणा के राज्यपाल हैं.

कौन हैं रवि ज्योति कुमार?

2015 में जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ने से पहले रवि ज्योति दारोगा थे. इस्तीफा देने से पहले बिहारशरीफ के नगर थाना प्रभारी. 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू,आरजेडी और कांग्रेस ने साथ चुनाव लड़ा. जेडीयू कोटे से चुनाव लड़े रवि ज्योति ने बीजेपी के सीनियर नेता सत्यदेव नारायण आर्य को हराया था. हालांकि बाद में बीजेपी ने अपने सीनियर नेता को हरियाणा का राज्यपाल बना दिया. इस सुरक्षित सीट से सत्यदेव नारायण आर्य 1977 से कई बार जीते. केवल एक बार 1990 में हारे थे. लेकिन 2015 में उन्हें खाकी छोड़ खाकी पहनने वाले रवि ज्योति ने हरा दिया. रवि को उस समय 62,009 वोट मिले थे. 5390 वोटों से जीत हासिल की थी.
मूल रूप से दरभंगा के लहेरियासराय के रहने वाले हैं. रवि ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और दरभंगा से एलएलबी किया है. रवि ने फेसबुक पर एक बार पोस्ट किया था कि राजनीति से अच्छी सेवा पुलिस सेवा ही थी. उनका वह पोस्ट खूब चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने पार्टी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाया था. हालांकि बाद में इस पोस्ट को उन्होंने तीन साल पुरानी पोस्ट करार दिया था. पांच साल विधायक रहे रवि को इस बार नीतीश की पार्टी ने टिकट नहीं दिया. टिकट काटे जाने के बाद उन्होंने फेसबुक पर लिखा था,
क्या मैंने पांच साल के दौरान ऐसा कोई कार्य किया जिससे मेरी पार्टी और नेता को लज्जित होना पड़ा. जब यह सीट गठबंधन में भाजपा के पास नहीं गई तो एकाएक जीते हुए उम्मीदवार को बदलने की क्या जरूरत थी.
जेडीयू से टिकट नहीं मिला तो रवि ने पाला बदल लिया. इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में थे.

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