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शिक्षक भर्ती के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों बोले, 'अयोध्या में सामूहिक रूप से जान दे देंगे'

ये अभ्यर्थी लखनऊ में 568 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं.

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लखनऊ में सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थी (फोटो- स्क्रीनशॉट/आजतक)
6 जनवरी 2024 (Updated: 6 जनवरी 2024, 19:48 IST)
Updated: 6 जनवरी 2024 19:48 IST
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उत्तर प्रदेश में शिक्षक भर्ती के खिलाफ करीब दो साल से प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने अब आत्महत्या करने की धमकी दी है. भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण लागू करने में अनियमितताओं के खिलाफ हजारों अभ्यर्थी प्रदर्शन कर रहे हैं. मामला कोर्ट में भी लंबित है. लेकिन अब इन अभ्यर्थियों ने कहा है कि 22 जनवरी तक भर्ती पर कोई फ़ैसला नहीं आता है तो वे लोग सरयू नदी के किनारे सामूहिक रूप से अपनी जान दे देंगे.

पूरा मामला क्या है? 

ये अभ्यर्थी लखनऊ में 568 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. पिछले 11 दिनों से भूख हड़ताल करने वाले अभ्यर्थी विजय कुमार ने आजतक को बताया कि 2019 की 69,000 शिक्षकों की भर्ती की लिस्ट में आरक्षण का घोटाला किया गया. 29 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग की रिपोर्ट आई, इसमें माना गया कि 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण घोटाला किया गया है. उन्होंने बताया,

“69,000 शिक्षकों को नियुक्ति देने के लिए चयन सूचियां बनाई गई, जिन आरक्षित वर्गों के अभ्यर्थियों का चयन अनारक्षित पदों पर होना चाहिए था. उनको जबरन आरक्षित कोटे में डाल दिया गया. जिससे हमारे जैसे अभ्यर्थी जो अपने कोटे में चयन पाते, प्रक्रिया से बाहर हो गए. 69,000 का 27% - 18,598 सीटें आरक्षित वर्ग की बनती थी. लेकिन इसके 6,800 सीटों पर उनकी भर्ती हुई, जिनका चयन अनारक्षित पदों में होना था. जिसको लेकर हम लोगों ने आंदोलन शुरू किया. और 29 अप्रैल 2021 को आई राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग की रिपोर्ट की रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए भी हमने लंबा आंदोलन किया, तब जाकर 23 दिसंबर 2021 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमारी सारी समस्याओं को सुना. 

विजय कुमार ने बताया कि बाद में अधिकारियों ने 5 जनवरी 2022 को लिस्ट निकाली. लेकिन 8 जनवरी 2022 को उनसे कहा गया कि आचार संहिता लग गई, इसलिए आप लोगों की नियुक्ति नहीं होगी.  उन्होंने कहा, 

"2019 से 2024 हो गया है, लेकिन हमारी नियुक्ति नहीं निकली है. क्योंकि कुछ अधिकारी ऐसे हैं जो खुलकर हमें कहते हैं कि तुम्हें जो करना है कर लो हम कुछ नहीं करेंगे. लेकिन हम लोगों ने सोचा है कि 22 जनवरी तक अगर सरकार कुछ नहीं करती है तो हम सभी लोग अयोध्या जाएंगे. और सरयू नदी के तट पर जाकर हम सभी सामूहिक रूप से अपने प्राण त्याग देंगे लेकिन खाली हाथ हम वापस नहीं जाएंगे.”

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रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रर्दशन करने वालों में छोटे बच्चे भी बैनर लेकर बैठे हुए हैं. अभ्यर्थियों के माता-पिता और उनके रिश्तेदार भी वहां बैठकर उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं. आजतक से बात करते हुए अभ्यर्थी अर्चना ने बताया कि 568 दिनों से वे लोग सड़क पर बैठे हुए हैं. रात को सर्दी लगती है. रोड पर सोते हैं, रहते हैं. ना खाना समय पर मिलता है और ना ही कंबल. उन्होंने बताया, 

“हम सब बहुत परेशान हैं. हमे अधिकारियों से बहुत शिकायत है. उनकी वजह से हम दर-दर भटक रहे हैं. हमारे पास कोई ऑप्शन नहीं है. सरकार अयोध्या की बात करती है लेकिन अयोध्या की बेटियां यहां सड़क पर बैठी हैं. सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर रही है.”

कहां से शुरू हुआ था विवाद?

सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2017 को अपने एक फ़ैसले में 1.37 लाख शिक्षामित्रों (सहायक शिक्षक) के पद को अवैध घोषित कर दिया था. बाद में 1.37 लाख पदों पर भर्ती के लिए कोर्ट ने निर्देश दिया. सरकार ने दो चरणों में भर्ती निकालने का फ़ैसला दिया. पहले चरण में 68,500 पदों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित हुई. और दूसरे चरण में 69,000 पदों पर भर्ती के लिए सिर्फ विज्ञापन सामने आए. लेकिन विज्ञापन में दूसरे चरण के कुछ नियम और शर्तों में बदलाव किए गए थे. जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया था.

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