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HAL में अपनी हिस्सेदारी बेच रही है मोदी सरकार, क्या मजबूरी है?

HAL ने अच्छा खासा मुनाफा कमाया है. महज तीन साल में इस कंपनी ने निवेशकों को 525 फीसदी का बंपर रिटर्न दिया है.

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Modi Government Selling Stake In HAL Disinvestment Stock Market
मोदी सरकार HAL में अपनी हिस्सेदारी बेच रही है. (सांकेतिक तस्वीर: PIB)
23 मार्च 2023 (Updated: 23 मार्च 2023, 23:07 IST)
Updated: 23 मार्च 2023 23:07 IST
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हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का OFS 23 मार्च को खुल गया. इसके जरिए मोदी सरकार अपनी 3.5 फीसदी हिस्सेदारी कम करने जा रही है. इस हिस्सेदारी को बेचकर सरकार करीब 2900 करोड़ रुपये जुटाना चाहती है. 

आगे बढ़ने से पहले जानते हैं कि OFS क्या होता है. OFS का फुल फॉर्म होता है- ऑफर फॉर सेल. यह किसी भी लिस्टेड कंपनी के लिए स्टॉक एक्सचेंज्स के जरिए अपने शेयर बेचने का आसान रास्ता है. यह व्यवस्था सबसे पहले साल 2012 में मार्केट रेगुलेटर सेबी ने बनाई थी ताकि लिस्टेड कंपनियों के मालिकों के लिए अपनी हिस्सेदारी घटाने में दिक्कतें न आएं. इस व्यवस्था को बाद में कई लिस्टेड कंपनियों ने अपनाया. बाद में सरकार ने इस रास्ते को सरकारी कंपनियों में अपनी शेयरहोल्डिंग को कम करने के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. 

सरकार बेचेगी हिस्सेदारी

इस रास्ते से अब सरकार HAL में अपनी 3.5 फीसदी हिस्सेदारी 2,450 रुपये प्रति शेयर के न्यूनतम मूल्य पर बेचेगी. यह कीमत 22 मार्च के बंद भाव के मुकाबले 6.6 फीसदी डिस्काउंट पर है.दरअसल, 22 मार्च को सरकार की तरफ से रेगुलेटरी फाइलिंग में बताया गया वो HAL में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए दो दिन के लिए OFS लेकर आएगी. HAL के OFS के तहत बुनियादी तौर पर 1.75 फीसदी हिस्सेदारी यानी 58.51 लाख शेयर की पेशकश की जाएगी और ज्यादा सब्सक्रिप्शन मिलने की स्थिति में इतने ही और शेयरों की बिक्री की जाएगी. 

OFS में निवेश करने के लिए डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत होगी. HAL में सरकार के पास फिलहाल 75.15 प्रतिशत हिस्सा है. यह बिक्री सरकार की विनिवेश रणनीति का हिस्सा है. सरकार ने चालू वित्त वर्ष में अब तक केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश और शेयर पुनर्खरीद के जरिए करीब 31 हजार करोड़ रुपये जुटाए हैं. हालांकि, वित्त वर्ष 2022-23 के लिए विनिवेश लक्ष्य 65 हजार करोड़ रुपये का रखा गया था लेकिन पिछले महीने इसे संशोधित कर 50 हजार करोड़ रुपये कर दिया गया था.

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के विनिवेश की शुरुआत साल 2018 में हुई थी. इस साल HAL ने अपना IPO जारी किया था. इसके बाद HAL में सरकार की हिस्सेदारी 100 फीसदी से घटकर 89.97 फीसदी रह गई थी. इससे भारत सरकार को करीब 4,229 करोड़ रुपए मिले थे. वहीं, यह नवरत्न कंपनी सिर्फ सरकार के लिए ही कमाई का अच्छा साधन ही नहीं रही है बल्कि डिफेंस सेक्टर की यह दिग्गज कंपनी अपने आप में मल्टीबैगर है. महज तीन साल में इस कंपनी ने निवेशकों को 525 फीसदी का बंपर रिटर्न दिया है. अगर तीन साल पहले इसके स्टॉक में किसी निवेशक ने एक लाख रुपए का निवेश किया होता तो आज उसकी वैल्यू 5.25 लाख रुपये होती. वहीं, आज कंपनी के शेयरों में भारी गिरावट देखी जा रही है. 23 मार्च को  HAL का शेयर करीब 5 फीसदी गिरकर 2498 रुपये पर बंद हुआ. 

80 साल पुराना इतिहास

हालांकि, अमेरिकी निवेश बैंक मार्गन स्टैनली का मानना है कि ऑफर फॉर सेल से फ्री फ्लोट शेयरों में इजाफा होंगे. मार्गन स्टैनली ने सरकारी कंपनी के शेयरों को ओवरवेट रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस 3216 रुपये तय किया है. आपको बता दें कि HAL देश की सबसे बड़ी डिफेंस उपकरण बनाने वाली कंपनी है. यह कंपनी एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर्स, प्लेन के इंजन बनाती है और इनकी सर्विसिंग का काम भी करती है. कंपनी को करीब 84 हजार करोड़ रुपये के आर्डर मिले हुए हैं. 

करीब 80 बरस पहले मैसूर रियासत के सहयोग से बैंगलोर में एक कंपनी शुरू की गई थी. इसका नाम रखा गया हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड. इस कंपनी के चेयरमैन बने वालचंद हीराचंद. बैंगलोर के डोमलूर रोड पर एक बंगले में कंपनी का दफ्तर खोला गया. कारखाने में काम करने वाले लोग और साजो-सामान आया अमेरिका से. लेकिन भारत सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किसी भी तरह के खतरे का मुकाबला करने के लिए हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट में बड़ा निवेश किया. 

1941 तक भारत सरकार ने 25 लाख रुपये का निवेश कर एक तिहाई हिस्सेदारी अपने कब्जे में कर ली. इस फैक्ट्री में पहला विमान हारलो पीसी-5 बनाया गया. 2 अप्रैल 1942 को, सरकार ने घोषणा करते हुए कहा कि हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है और भारत सरकार ने कंपनी के मालिक सेठ वालचंद हीराचंद और अन्य मालिकों की पूरी हिस्सेदारी खरीद ली. 

इधर मैसूर साम्राज्य ने अपनी हिस्सेदारी भारत सरकार को बेचने से इनकार कर दिया. 1947 में भारत को आजादी मिली तो यह कंपनी भारत सरकार के हाथ आ गई. शुरुआत में यह कंपनी अमेरिकी विमानों की मरम्मत करती थी. बाद में कुछ समय तक रेल के कोच भी बनाने लगी. लेकिन एक अक्टूबर 1964 को इसका रजिस्ट्रेशन करा दिया गया और इसका नाम रखा गया हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड. 

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