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मोदी सरकार का ऑयल पाइपलाइन मोनेटाइजेशन का प्लान ठंडे बस्ते में, आर्थिक सेहत पर होगा क्या असर ??

इसके जरिये 17 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था

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प्रदीप यादव
2 जून 2022 (Updated: 5 जून 2022, 05:25 PM IST) कॉमेंट्स
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मोदी सरकार का ऑयल पाइपलाइन मोनेटाइजेशन का प्लान खटाई में पड़ता नजर आ रहा है. इकॉनोमिक टाइम्स की खबर ने सूत्रों के हवाले से खबर दी है गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी GAIL, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने पेट्रोलियम मंत्रालय को इस बात के लिए राजी कर लिया है कि ऑयल पाइपलाइन मोनेटाइजेशन के जरिये पैसा जुटाने के लिए सरकार जो तरीका अपनाना चाहती है वह काफी महंगा रास्ता है. सरकार चाहती थी कि तेल और गैस पाइपलाइनों को  इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (इनविट)  को सौंपकर 17 हजार करोड़ रुपये जुटाने में सरकार की मदद करेंगी.

 इनविट क्या हैं ?

पहले समझ लेते हैं कि इनविट क्या हैं. दरअसल, इनविट यानी इंफ्रस्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट म्यूचुअल फंड की तरह काम करते हैं. म्यूचुअल फंड फाइनेंशियल सिक्योरिटीज में पैसे लगाते हैं जबकि InvIT बुनियादी ढांचे से जुड़ी संपत्तियों मसलन सड़क, बिजली संयंत्रों, ट्रांसमिशन लाइनों और ऑयल एंड गैस पाइपलाइनों आदि में निवेश करते हैं. इसमें बाजार में प्रचलित डेट इनवेस्टमेंट के मुकाबले ज्यादा रिटर्न मिलता है. इसी लिए काफी निवेशक रेगुलर इनकम के लिए इनविट में पैसा लगाते हैं.

ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक तेल कंपनियों ने सरकार से कहा है कि उनकी क्रेडिट रेटिंग शानदार है इसलिए उन्हें इनविट के मुकाबले बाजार से पैसे जुटाने में आसानी होगी. पिछले साल के बजट में सरकार ने अगले 4 साल में एसेट मोनेटाइजेशन प्रोग्राम के जरिये 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था.

ऑयल पाइपलाइन मोनेटाइजेशन प्लान के तहत इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन और पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को 3930 किलोमीटर पाइपलाइन को मोनेटाइज करने का लक्ष्य रखा गया था.  इसके तहत गेल की दहेज-उरण-पनवेल-दाभोल पाइपलाइन और दाभोल-बेंगलुरु पाइपलाइन का मोनेटाइजेशन होना था. यह पाइपलाइन की लंबाई करीब 2,000 किलोमीटर है. इस प्लान पर पिछले एक साल से ज्यादा समय से तेल मंत्रालय, तेल कंपनियों और नीति आयोग के बीच चर्चा की जा रही है. हालांकि, अब ऑयल पाइप मोनेटाइजेशन का प्लान ठंडे बस्ते में चला गया है.

उधर, वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में सरकार को जीडीपी के मोर्चे पर झटका लगा है, चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट (GDP Growth Rate) 4.1 फीसदी रही. जानकारों के मुताबिक विकास दर में सुस्ती का मुख्य कारण महंगाई (Inflation) है. महंगाई बढ़ने से निवेश पर भी असर पड़ा है. इसके अलावा कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते देश की अर्थव्यवस्था का पहिया सुस्त रहा है. आंकड़ों के मुताबिक चौथी तिमाही में देश की जीडीपी बढ़कर 40.78 लाख करोड़ रुपये हो चुकी है, जो कि पिछले साल की समान तिमाही (Q4 2020-21) में 39.18 लाख करो.भारत सरकार के सांख्यिकी कार्यालय की ओर से मंगलवार को जारी डेटा के मुताबिक GDP ग्रोथ 8.7 फीसदी दर्ज की गई.

खर्चा-पानी: ऑयल पाइपलाइन मोनेटाइजेशन प्लान होल्ड, आर्थिक सेहत पर होगा क्या असर ?

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