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FD या डेट म्यूचुअल फंड, निवेश से पहले टैक्स का झमेला समझना है बेहद जरूरी

कौन सा विकल्प ज्यादा फायदेमंद रहेगा. ये जानने से पहले जरा फिक्स्ड डिपॉजिट और डेट म्यूचुअल फंड्स को अच्छे से समझ लेते हैं.

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Bank credits interest amount into account after deducting TDS, while MFs don't deduct anything from amount earned from investment.
बैंक ग्राहक को एफडी पर ब्याज की रकम टैक्स काटने के बाद खाते में भेजते हैं, जबकि म्यूचुअल फंड पूरी की पूरी रकम ट्रांसफर कर देते हैं.
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उपासना
13 जून 2023 (Updated: 13 जून 2023, 07:43 PM IST) कॉमेंट्स
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आरबीआई ने हाल फिलहाल रेपो रेट में बदलाव पर ब्रेक लगा दिया है. इसलिए बहुत हद तक मुमकिन है कि अब बैंक भी फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी पर इंटरेस्ट रेट ना बढ़ाएं. ऐसे में अगर आपके पास एकमुश्त पैसा है तो जिस बैंक में ज्यादा इंटरेस्ट मिल रहा हो वहां एफडी कराना बेहतर फैसला है. अगर एफडी के अलावा दूसरा ऑप्शन भी आजमाना चाहते हैं तो डेट म्यूचुअल फंड पर विचार कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वालों लोगों की राय है कि इस समय निवेशकों को मध्यम अवधि वाले डेट फंड्स  में निवेश करना चाहिए. कौन सा विकल्प ज्यादा फायदेमंद रहेगा. ये जानने से पहले जरा फिक्स्ड डिपॉजिट और डेट म्यूचुअल फंड्स को अच्छे से समझ लेते हैं.

फिक्स्ड डिपॉजिट में आपका निवेश सुरक्षित 

फिक्स्ड डिपॉजिट्स ऐसा इंस्ट्रूमेंट है जहां आपका पैसा तय समय के लिए ब्लॉक हो जाता है. बदले में बैंक उस रकम पर एक तय ब्याज देते हैं. यहां पैसे डूबने की गुंजाइश लगभग न के बराबर रहती है. जो पैसा आप एफडी में जमा करते हैं उस पैसे को बैंक आमतौर पर अपने पास ही रखते हैं. बैंक इस पैसे को किसी अन्य मार्केट इंस्ट्रूमेंट जैसे शेयर मार्केट या बॉन्ड या किसी और निवेश साधनों में नहीं लगाते हैं. इसलिए जमा पर मिलने वाली रकम घटती बढ़ती नहीं है, बल्कि पहले से तय रहती है. अमूमन एफडी पर औसतन 5 से 8 फीसदी का रिटर्न मिल जाता है.

डेट म्यूचुअल फंड

डेट म्यूचुअल फंड निवेशकों का पैसा अपने पास रखने की बजाय फिक्स रिटर्न देने वाले इंस्ट्रूमेंट में लगाते हैं. ये इंस्ट्रमेंट बॉन्ड, डिबेंचर में से कुछ भी हो सकते हैं. डेट म्यूचुअल फंड के रिटर्न बैंक एफडी से ज्यादा होते हैं, लेकिन रिस्क भी ज्यादा होता है. एफडी की तरह इनका रिटर्न फिक्स नहीं होता. इसका रिटर्न शेयरों की तरह घटता बढ़ता रहता है. आमतौर पर डेट फंड्स 7 से 9 फीसदी का रिटर्न देते हैं.

कौन सा विकल्प बेहतर है?

एफडी में पैसा लगाना बेहतर फैसला है कि डेट म्यूचुअल फंड्स में इसे एक्सपर्ट से समझते हैं. वेल्थ प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर समीर रस्तोगी ने लल्लनटॉप को बताया कि अगर आपको लगता है कि कभी भी पैसों को निकालने की जरूरत पड़ सकती है तो डेट फंड बेहतर रहेंगे. यहां एफडी से बेहतर रिटर्न मिलेगा. एफडी में समय से पहले पैसे निकालने पर पेनल्टी देनी पड़ती है. इसके अलावा डेट फंड में तब टैक्स लगता है जब आप पैसे निकालते हैं. जबकि एफडी में ब्याज आपके खाते में ट्रांसफर होगा उस पर भी टैक्स लगता है. आप जब उसे निकालते हैं तब भी टैक्स लगता है. 

डेट फंड में पैसे बढ़ने की संभावना ज्यादा क्योंकि डेट फंड सरकारी बॉन्ड में भी पैसे लगाते हैं. जबकि एफडी में रिस्क बैंक की माली हालत पर निर्भर करता है. आमतौर पर छोटे बैंकों के मुकाबले बड़े बैंकों में पैसा सुरक्षित माना जाता है. ऐसे में अगर ज्यादा रिटर्न का लालच नहीं है तो एफडी में निवेश डेट फंड के मुकाबले बढ़िया साबित हो सकता है. आपको बता दें कि डेट फंड में कितना रिटर्न मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं होती.  आइए जानते हैं कि निवेश से पहले किन बातों को जानना भी आपके लिए जरूरी है.

जहां कम टैक्स, वहां लगाएं पैसा 

टैक्स के मामले में पहले डेट म्यूचुअल फंड का पलड़ा भारी था. 5 साल से ज्यादा डेट म्यूचुअल फंड रखने पर कम टैक्स लगता था. लेकिन 1 अप्रैल 2023 से नियम बदल चुके हैं. ऐसे डेट म्यूचुअल फंड जिनके कुल फंड का शेयरों में 35 फीसदी से कम लगा हो उसके निवेशकों को एफडी की तरह ही टैक्स देना होगा. मिसाल के तौर पर अगर किसी ने डेट फंड में एक लाख लगाकर 10,000 रुपये कमाए. म्यूचुअल फंड कंपनी बिना टैक्स काटे पूरे रकम यानी 10,000 रुपये आपके बैंक खाते में ट्रांसफर कर देता है. बाद में टैक्स फाइल करते समय निवेशक को अपनी आय के हिसाब से उस पर टैक्स देना होगा. लेकिन निवेशक ने एफडी से 10,000 रुपये का ब्याज कमाया तो पूरे पैसे नहीं मिलेंगे. बैंक इस राशि पर टीडीएस काटने के बाद बची हुई रकम निवेशक के खाते में भेजेगा. आमतौर पर एक्सपर्ट्स की सलाह ये रहती है कि जिस ऑप्शन में टैक्स देने के बाद ज्यादा बचत हो उसमें पैसे लगाएं. 

बीच में अगर पैसों की जरूरत पड़ी तो?

मान लीजिये आपको किसी काम के लिए मैच्योरिटी से पहले एफडी तोड़नी पडे तो ऐसी स्थिति में बैंक अक्सर पेनल्टी लगाते हैं. एफडी में बीच-बीच में थोड़े-थोड़े पैसे निकालने का भी ऑप्शन नहीं है. लेकिन ज्यादातर डेट फंड्स से कभी भी और कितनी भी रकम निकाल सकते हैं. यहां कोई पेनल्टी नहीं लगती. डेट म्यूचुअल फंड की एक खास बात और कि अगर आपके पास मोटा पैसा नहीं है तो भी डेट एमएफ फंड आपके लिए बेहतर विकल्प हैं. डेट म्यूचुअल फंड में आप सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान यानी SIP का विकल्प भी मिलता है. 

एफडी में अतिरिक्त चार्ज नहीं 

फिक्स्ड डिपॉजिट में किसी तरह का अतिरिक्त चार्ज नहीं देना होता है. डेट एमएफ फंड में डीमैट अकाउंट खुलवाने का अतिरिक्त खर्चा आ सकता है. डेट एमएफ में एक्सपेंडिचर रेश्यो का खर्चा भी लग सकता है. जो 100 रुपये पर 20 पैसे से लेकर 2.25 रुपये तक हो सकता है. एक्सपेंडिचर रेश्यो डेट फंड को मैनेज करने के बदले लिए जाने वाली फीस होती है.

जितनी वेराइटी उतना बढ़िया

डेट फंड निवेश के पैसों को अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट में लगाते हैं. जबकि एफडी में पैसा सिर्फ एक ही जगह जमा होता है. इस तरह डेट फंड एक ही जगह पर अलग-अलग तरह के रिटर्न का फायदा दे देते हैं.

महंगाई के हिसाब से कौन दे रहा है रिटर्न

पैसे लगाने से पहले ये भी देख लेना चाहिए कि कौन सा विकल्प महंगाई से ज्यादा तेजी से रिटर्न दे रहा है. मान लेते हैं एफडी 5 फीसदी का ब्याज दे रहा है. जबकि डेट फंड में औसतन  9 फीसदी का रिटर्न. अब मान लेते हैं देश में महंगाई भी 5 फीसदी की दर से बढ़ गई. ऐसे में एफडी में आपका पैसा रिटर्न मिलने के बाद भी उतना ही रहेगा. वहीं डेट फंड में आपका पैसा 5 फीसदी महंगाई की दर एडजस्ट करने के बाद 4 फीसदी बढ़ा हुआ नजर आएगा.

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