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Zoho और उसके Arattai में गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, वॉट्सऐप को पछाड़ने का दम है?

आखिर क्यों Zoho आजकल (Zoho founder Sridhar Vembu) इतना ट्रेंड हो रही है. क्यों इसके बनाए Arattai ऐप को 'WhatsApp की काट' तक कहा जाने लगा है. क्या वाकई में ये गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गजों को भारत में टक्कर दे पाएगा?

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Zoho के फाउंडर की कुल संपत्ति 50 हजार करोड़ है

टेक जगत से लेकर सोशल मीडिया तक पर एक नाम पिछले कुछ दिनों से खूब छाया हुआ है. देसी कंपनी Zoho और उसके प्रोडक्ट की खूब चर्चा है. एक तरफ उसके बनाए मैसेजिंग ऐप Arattai की चर्चा हो रही तो दूसरी तरफ उसके दूसरे प्रोडक्ट जैसे Zoho CRM, Zoho Mail, Zoho Books, Zoho Projects भी अचानक से ट्रेंड कर रहे हैं. केन्द्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव तो बाकायदा अपने एक्स पोस्ट पर इस कंपनी के प्रोडक्ट इस्तेमाल करने के बारे में बता चुके हैं. शिक्षा मंत्रालय ने भी अपने अधिकारियों को Zoho इस्तेमाल करने को कहा है.

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ऐसे में एक सवाल दिमाग में आना ही था. क्या वाकई Arattai ऐप को WhatsApp की काट कहा जा सकता है? क्या Zoho में इतना दम है कि वो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे दिग्गजों को भारत में टक्कर दे पाए?

Zoho है क्या?

आप आसान भाषा में कह सकते हैं कि ये गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों का इंडियन वर्जन है. जैसे Gmail होता है, वैसे ही Zoho Mail होता है. माइक्रोसॉफ्ट PPT के जैसे Zoho Projects और कंपनियों का कामकाज संभालने के लिए Zoho CRM (Customer relationship management) है. इन क्लाउड-बेस्ड सॉफ्टवेयर और बिजनेस टूल्स की मदद से डॉक्यूमेंट्स, स्प्रेडशीट्स और प्रेजेंटेशन बनाए जा सकते हैं. इनके टूल्स का इस्तेमाल कंपनियां सेल्स, अकाउंटिंग, मार्केटिंग और टीम मैनेजमेंट और ईमेल मैनेज करने के लिए करती हैं.

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IIT मद्रास से पढ़े Sridhar Vembu ने जोहो को स्टार्ट किया था. इसका हेड क्वार्टर चेन्नई में है. अमेरिका सहित दुनियाभर में इसके 80 से ज्यादा ऑफिस हैं और 18 से ज्यादा डेटा सेंटर हैं. Zoho के प्रोडक्ट विंडोज और Amazon Web Services (AWS) जैसे प्लेटफॉर्म पर नहीं बल्कि Linux जैसे ऑपरेटिंग्स सिस्टम पर काम करते हैं. Apple, महिंद्रा और Netflix जैसे 7 लाख से ज्यादा ग्राहक इसके प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं. कंपनी के मुताबिक वो इंडियन यूजर्स का डेटा भी दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में ही स्टोर करती है.

श्रीधर वेंबु अपनी कंपनी को “Made in India, Made for the World” कहते हैं. Zoho की मार्केट वैल्यू 1 लाख करोड़ रुपये है और उसका कुल कारोबार 8500 करोड़ के पार है. मुनाफा भी 3 हजार करोड़ टच हो रहा है. श्रीधर की कुल संपत्ति भी 51 हजार करोड़ रुपये के पार है. वो 2024 में फोर्ब्स की भारत के रईसों की लिस्ट में 39वें नंबर पर थे.

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अब अपन थोड़ा पीछे चलते हैं, जब Zoho ये सारे प्रोडक्ट नहीं बनाती थी. साल 1996 में अमेरिका में श्रीधर ने अपने भाई और सीनियर टोनी थॉमस के साथ एक कंपनी बनाई. नाम रखा Adventnet INC. ये वो समय था जब इंटरनेट अपना जाल तेजी से बढ़ा रहा था. मोबाइल डिवाइस और मोबाइल कंपनियां मार्केट में आने लगी थीं. लेकिन एक दिक्कत थी.

हर कंपनी का अपना नेटवर्क था. अपना प्रोटोकाल था. मॉनिटर करने में दिक्कत होती थी. इसी दिक्कत का हल निकाला Adventnet INC ने. उनका बनाया नेटवर्क मैनेजमेंट सिस्टम एक ही जगह से हर नेटवर्क पर नजर रखने का काम करता था. इसे घर में लगे हर बटन को कंट्रोल करने वाला मेन स्विच समझ लीजिए. प्रोडक्ट हिट हुआ और कंपनी चल निकली. मोटोरोला जैसी बड़ी कंपनी ने अपने प्रोडक्टस के साथ Adventnet INC का सॉफ्टवेयर देना स्टार्ट किया.

लेकिन साल 2000 और 2001 के ‘डॉट कॉम’ बबल ने इनके धंधे को बड़ी चोट पहुंचाई. ये वो समय था जब दुनिया भर में बड़ी-बड़ी इंटरनेट कंपनियां बंद हो रही थीं. श्रीधर को समझ आया कि सिर्फ टेलिकॉम से काम नहीं चलेगा. इसलिए साल 2005 में बनी Zoho. साल 2009 में इसका हेड क्वार्टर इंडिया आ गया. आपके मन में सवाल होगा कि जो काम गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां कर रही हैं, उससे अलग इन्होंने क्या किया.

दरअसल Zoho ने अपने यूजर्स को सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने की झंझट से मुक्ति दिला दी थी. आपको याद होगा कि कुछ सालों पहले तक माइक्रोसॉफ्ट की हर फाइल, जैसे वर्ड या PPT, को ओपन करने के लिए उनके ही सॉफ्टवेयर की जरूरत होती थी. Zoho में ऐसा नहीं था. उनका सारा सिस्टम क्लाउड बेस था. मतलब फाइल ब्राउजर में ही ओपन होती थी. 

Zoho ने जो काम आज से 20 साल पहले किया, वही बाद में गूगल और माइक्रोसॉफ्ट ने भी अपनाया. क्लाउड बेस होना कंपनी की सबसे बड़ी ताकत बना. श्रीधर की एक और खासियत है. वो बड़े से आलीशान दफ्तर की जगह तमिलनाडु के एक छोटे से गांव तेनकासी (Tenkasi) से सारा कामकाज संभालते हैं.

श्रीधर
श्रीधर 
Zoho की इतनी चर्चा क्यों?

दरअसल बीती 21 सितंबर को शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में लोगों से 'स्वदेशी' अपनाने की अपील की थी. अगले दिन यानी 22 सितंबर को केन्द्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अपने एक्स अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया. इसमें उन्होंने Zoho प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होने की बात कही. अश्विनी वैष्णव ने बताया कि वह डिजिटल कामों के लिए ZOHO ऐप पर शिफ्ट हो रहे हैं.

इस वीडियो का असर तो हुआ, मगर कंपनी के दूसरे ऐप Arattai पर. साल 2021 में बने इस मैसेजिंग ऐप के अचानक से डाउनलोड बढ़ गए. ऐप स्टोर पर ये एक नंबर पर आ गया. चर्चा होने लगी कि क्या हमें WhatsApp का विकल्प मिल गया है. पिछले एक हफ्ते से यह ऐप और श्रीधर ट्रेंड में चल रहे हैं. 

ये भी पढ़ें: WhatsApp को बोरिया-बिस्तर समेटने पर मजबूर करेगा Arattai App? या बस कैजुअल चैट तक सिमट के रह जाएगा

क्या Zoho वाकई एक विकल्प बन सकता है?

असंभव तो नहीं, लेकिन मुश्किल है. इसकी सबसे बड़ी वजह गूगल और माइक्रोसॉफ्ट का बड़ा यूजर बेस है. दुनिया भर में जीमेल के 250 करोड़ यूजर हैं. ऐसे ही माइक्रोसॉफ्ट हर बड़ी कंपनी की बैक बोन है. वॉट्सऐप के अकेले भारत में इसके 80 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं और दुनिया भर में 300 करोड़. इसके पहले भी कई ऐप आए तो ज्यादा दिन नहीं टिके. जैसे एक्स की काट के तौर पर आया इंडिया का "Koo" भी नहीं चला, जबकि इसका प्रमोशन तो भारत सरकार के कई मंत्री भी करते थे.

Google Hangouts से लेकर ChatON by Samsung, HipChat, FireChat जैसे कई नाम हैं जो कुछ महीने या कुछ साल में बंद हो गए. Arattai से पहले भी कई देसी और विदेशी ऐप्स ने ऐसा करने की कोशिश की है. उदाहरण के लिए, Hike या गूगल का Allo. Hike ऐप 2012 में स्टार्ट हुआ और 2021 में बंद हो गया. इसी तरह 2016 में स्टार्ट होकर Allo सिर्फ तीन साल में ही मार्केट से बाहर हो गया.

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