बेकल उत्साही : जो अपने कातिल को छुड़वाने के लिए खुद गवाही दे देते
हिंदू मुस्लिम एकता, हिंदी-उर्दू समरसता को अपनी ज़िंदगी का मकसद बनाने वाले बेकल उत्साही.
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1928, बलरामपुर में पैदा हुए ‘मोहम्मद शफ़ी खान’ वारिस अली शाह की दरगाह पर गए तो वहां अपने अंदर की ‘बेचैनी’ को पहचान कर ‘बेकल वारिस’ के नाम से शेर कहने लगे. 1952 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके उत्साह को देख कर उन्हें नया तख़ल्लुस दिया. ‘उत्साही’. हिंदू मुस्लिम एकता, हिंदी-उर्दू समरसता को अपनी ज़िंदगी का मकसद बनाने वाले बेकल उत्साही.
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