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मज़दूरी की, सेना में रहा… मैदान पर उतरा तो आतंक मचा दिया!

क़िस्से बहुत तेज, फ्रेड ट्रूमैन के.

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फ्रेड ट्रूमैन (फोटो - Getty Images)

काला-सफेद. यानी ब्लैक एंड व्हाइट. दो शाश्वत रंग. जिनका स्वभाव एक-दूसरे से एकदम विपरीत माना जाता है. और टीवी में रंग आने से पहले हम सबकुछ इन्हीं दो रंगों में देखते थे. इस एरा को बहुत तरीके से याद करते हैं. इंग्लैंड में क्रिकेट फॉलो करने वालों से पूछेंगे तो वो इसे खदानों से जोड़कर याद करते हैं. ऐसा क्यों? बताते हैं.

दरअसल उस दौर में जब भी इंग्लैंड की काउंटी टीम्स को पेस बोलर्स चाहिए होते थे, वो नजदीक की किसी कोयला खदान में पहुंच जाते थे. और इन खदानों से निकले हीरों ने सालों तक इंग्लैंड क्रिकेट की सेवा की. ऐसे हीरों में हैरॉल्ड लारवुड और फ्रेड ट्रूमैन जैसे दिग्गजों का नाम शामिल है.

ट्रूमैन, जिन्हें अगला लारवुड बताया गया. लारवुड, जो अपने दौर के खौफ़नाक तेज बोलर थे. लारवुड, जिन्हें कुख्यात बॉडीलाइन एशेज के बाद नेपथ्य में जाना पड़ा. क्योंकि उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों के शरीर को निशाना बनाने वाली बोलिंग के लिए माफी मांगने से मना कर दिया था. अरे यार, हम भी कहां लारवुड में अटक गए. आज तो 'अगले लारवुड' बताए गए फ्रेड ट्रूमैन की बात करनी है. तो चलिए, शुरू कर लेते हैं.

# Fred Trueman Story

ट्रूमैन. जिनके बारे में ज्यूइस वर्चुअल लाइब्रेरी का दावा है कि पैदा होते वक्त उनका वजन छह किलो से ज्यादा था. ट्रूमैन अपने पिता की सात संतानों में चौथे नंबर के थे. उनके पिता, एलन घोड़ों की देखरेख के साथ एक कोल माइन में भी काम करते थे. एलन ने अपने बच्चों को बहुत अनुशासन से पाला था. एलन इन कामों के साथ एक मशहूर क्रिकेटर भी थे. वह लेफ्ट आर्म बोलिंग और बैटिंग करते थे. और फ्रेड ने कई बाद कहा भी था कि उन्हें क्रिकेटर बनने में उनके पिता का बड़ा रोल था.

स्कूल टाइम पर दो टीचर्स ने फ्रेड को पेस बोलिंग करने की सलाह दी. लेकिन तभी 11 साल के फ्रेड के ग्रोइन एरिया में चोट लग गई. वह डेढ़ साल तक क्रिकेट से दूर रहे. अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनका इंट्रेस्ट क्रिकेट से हट ना जाए, इसलिए टीचर्स उन्हें कभी स्कोरिंग तो कभी अंपायरिंग में लगाए रखते थे. महीनों तक चले इलाज के बाद वह ठीक हुए.

लेकिन अब जीवन बदल चुका था. परिस्थितियों के चलते फ्रेड को एक फैक्ट्री में काम करना पड़ा. और काम करते-करते वह सिर्फ 14 साल की उम्र में एक क्लब के लिए क्रिकेट भी खेलने लगे. सिर्फ दो साल में फ्रेड भयानक चर्चित हो चुके थे. साढ़े सोलह की उम्र में वह यॉर्कशर के बड़े क्लब्स में से एक, शेफील्ड यूनाइटेड से जुड़ गए.

फर्स्ट क्लास क्रिकेट में धमाल के बाद फ्रेड को दो साल की नेशनल सर्विस के लिए रॉयल एयरफोर्स जॉइन करनी पड़ी. हालांकि इस दौरान भी उनका क्रिकेट जारी रहा. और साल 1952 में फ्रेड को इंग्लैंड टेस्ट टीम में चुना गया. टीम इंडिया उस वक्त इंग्लैंड के टूर पर थी. लीड्स में ट्रूमैन का डेब्यू हुआ. और पहली पारी में उनके हाथ आए तीन विकेट.

लेकिन बवाल तो दूसरी पारी में हुआ. इंडिया ने बिना कोई रन बनाए चार विकेट गंवा दिए. और इन चार में से तीन फ्रेड के नाम रहे. ये किसी भी टीम की टेस्ट में सबसे खराब शुरुआत का रिकॉर्ड है. इतना ही नहीं, जब ऐसा हुआ तो किसी को यकीन ही नहीं आया. मैच कवर कर रहे एक ईवनिंग न्यूज़पेपर के रिपोर्टर ने अपने दफ्तर फोन किया. और बताया कि भारत का स्कोर बिना किसी रन के चार विकेट है. लेकिन फोन के उस पार बैठे व्यक्ति को यकीन ही नहीं हुआ. उस शाम अख़बार की हेडलाइन बनी- भारत ने बिना विकेट खोए चार रन बना लिए हैं.

# Fred Trueman vs India

इस पारी में फ्रेड ने कुल चार विकेट लिए. यानी पहले ही टेस्ट में सात विकेट. लॉर्ड्स टेस्ट में ट्रूमैन ने दोनों पारियों में चार-चार विकेट निकाले. फिर आया मैनचेस्टर. भारत पहली पारी में 58 और दूसरी में 82 रन ही बना पाया. और वजह बने फ्रेड ट्रूमैन. फ्रेड ने पहली पारी में सिर्फ 31 रन देकर आठ विकेट निकाले. जबकि दूसरी पारी के आठ ओवर्स में उन्होंने सिर्फ नौ रन देकर एक विकेट लिया.

विज़्डन की मानें तो इस मैच में भारतीय बल्लेबाज ट्रूमैन के आगे कांपते दिखे. हालांकि लोग ट्रूमैन की इस बोलिंग को हल्के में ले रहे थे. यहां तक कि उनके खुद के देश के टेस्ट सेलेक्टर्स तक का मानना था कि बारिश से प्रभावित पिच के चलते ट्रूमैन ने ऐसी बोलिंग की. एक सेलेक्टर ने तो आगे बढ़ते हुए काफी कुछ कह दिया. उन्होंने कहा,

'ट्रूमैन सोच रहा होगा कि फास्ट बोलिंग आसान है. मैं चाहता हूं कि वह ओवल टेस्ट की पहली पारी में 100 रन देकर एक विकेट ले. और दूसरी में 60 रन देकर तीन विकेट. इससे चीजें बैलेंस हो जाएंगी.'

लेकिन ये बैलेंस बन नहीं पाया. इस टेस्ट में इंडिया ने सिर्फ एक पारी बैटिंग की. और ट्रूमैन ने 16 ओवर्स में 48 रन देकर पांच विकेट निकाले. इस सीरीज़ में ट्रूमैन ने 13.31 की ऐवरेज से 29 विकेट निकाले. यानी भयानक शुरुआत. मैनचेस्टर में उनके द्वारा 31 रन देकर लिए गए आठ विकेट्स तब तक किसी भी फास्ट बोलर द्वारा की गई बेस्ट बोलिंग थी.

इस कमाल के डेब्यू के बाद ट्रूमैन का करियर आगे ही बढ़ता रहा. उन्होंने इंग्लैंड के लिए 67 टेस्ट में 307 विकेट लिए. फ्रेड 300 टेस्ट विकेट्स लेने वाले पहले बोलर थे. लेकिन लोग कहते हैं कि यह आंकड़ा 400 या उससे ज्यादा भी हो सकता था. अगर ट्रूमैन के साथ सेलेक्टर्स भेदभाव नहीं करते तो.

कैसा भेदभाव? दरअसल फ्रेड बड़े अक्खड़, गुस्सैल इंसान थे. और ये बात लोगों को पसंद नहीं आती थी. उन्हें तमाम टूर्स में शामिल नहीं किया गया. उनके करियर के शुरू और खत्म होने के बीच इंग्लैंड ने 118 टेस्ट खेले. ट्रूमैन ने इसमें से 51 मिस किए. इस बारे में ट्रूमैन ने एक दफ़ा कहा था,

'भले ही मैं यॉर्कशर के लिए कमाल कर रहा था और अक्सर ही काउंटी के बोलिंग ऐवरेज्स में टॉप पर रहता था, इंग्लैंड के सेलेक्टर मुझे नज़रअंदाज करते थे. मेरे हिसाब से इसका कारण व्यक्तिगत था. जाहिर तौर पर, सेलेक्शन कमिटी को मेरा एटिट्यूड नहीं पसंद था. उन्हें गलतफहमी थी कि मैं असहयोगी टाइप का व्यक्ति हूं.

और वो बेस्ट 11 क्रिकेटर चुनने की जगह अपने हिसाब से कोई जेंटलमेन चुनकर ले जाते थे. इन्हीं कारणों के चलते मुझे उम्मीद से कम टेस्ट मैचेज के लिए सेलेक्ट किया गया. मेरे हिसाब से, अगर मुझे उन टेस्ट्स में खेलने का मौका मिलता, तो मैं 400 से ज्यादा विकेट्स लेता. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भले ही मैं यॉर्कशर के लिए रेगुलर ही हर सीजन के 100 विकेट्स ले रहा था.'

ट्रूमैन के फर्स्ट क्लास स्टैट्स देखें तो उन्होंने 18.27 की ऐवरेज के साथ 2302 विकेट्स लिए थे. ट्रूमैन के रनअप से भी प्लेयर्स को डर लगता था. वह पिच की लंबाई से भी ज्यादा दूर से दौड़ते हुए आते थे. फ्रेड हर गेंद फेंकने के बाद बल्लेबाज को घूरते हुए अपनी दाहिनी बांह पर ढलक आई शर्ट की बाजू मोड़ते हुए वापस लौटते थे. और जब कोई बल्लेबाज इन तमाम चीजों से ना डरे तब? तब फ्रेड ट्रूमैन का भागना साइटस्क्रीन से शुरू होता था.

ट्रूमैन के ऑफ द फील्ड क़िस्से भी कमाल के हैं. जब उन्हें इंडिया के खिलाफ़ चुना गया. उस वक्त वह अपने RAF बेस पर थे. फोन आया. ट्रूमैन को कनेक्ट किया गया. और अपने सेलेक्शन की ख़बर सुन उन्होंने कहा- 'भाड़ में जाओ.' दोबारा फोन आया. जवाब सेम रहा. फिर यॉर्कशर और इंग्लैंड के लिए खेलने के बाद पत्रकार बने बिल बोव्स ने ट्रूमैन से बात की, तब जाकर उन्हें यकीन हुआ कि सच में उन्हें चुन लिया गया है.

अब सेलेक्शन तो हो गया. लेकिन जाने के लिए चाहिए परमिशन. वो भी मिली. कैसे? मैच की टिकट देकर. ट्रूमैन के डेब्यू का एक और क़िस्सा है. 11 साल के ज़्यॉफ्री बॉयकॉट अपने दोस्तों के साथ इस मैच को देखने पहुंचे थे. इंडिया की दूसरी पारी में जब ट्रूमैन ने पहले दो विकेट लिए. तो बॉयकॉट के साथ बैठे एक व्यक्ति ने कहा कि अगर ट्रूमैन एक और विकेट लेंगे, तो वो बॉयकॉट और उनके दोस्तों को आइसक्रीम खिलाएगा. और फ्रेड ने अपनी गेंदों से बॉयकॉट और उनके दोस्तों के लिए आइसक्रीम का बंदोबस्त कर दिया.
 

वीडियो: Border Gavaskar Trophy के ठीक पहले एक-एक ऑस्ट्रेलियाई ढेर हो रहा है!