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डिंपल यादव की वो बातें, जो जनता को नहीं पता हैं

मुलायम सिंह यादव की बनाई हुई पार्टी में इस समय दूसरी सबसे बड़ी नेता डिंपल यादव का आज जन्मदिन है!

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यूपी के मुख्यमंत्री निवास 5, कालिदास मार्ग, लखनऊ का हॉल. कैंपेनिंग से लौटे अखिलेश और डिंपल यादव एक मैगजीन को इंटरव्यू देने के बाद फोटो खिंचाने जा रहे हैं. डिंपल अखिलेश की तरफ देखते हुए कहती हैं, 'आपका पूरा सिर चिपचिपा हो गया है. इसे धोने की जरूरत है.' चुनाव के वक्त में सब अस्त-व्यस्त है. डिंपल उंगलियों से ही अखिलेश के बाल संवारने लगती हैं. फिर दोनों फोटो खिंचाते हैं. ये इंटरव्यू 'द वीक' ने लिया था.



अखिलेश की पत्नी होने के अलावा डिंपल की और भी पहचान हैं. भारतीय सेना के कर्नल सीएस रावत (रिटा.) की बेटी. मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू. एक बार निर्विरोध और लगातार दूसरी बार जीतने वाली कन्नौज की सांसद. परिवारवाद और पितृसत्ता वाली समाजवादी पार्टी में इतना लंबा सफर तय करने वाली एक महिला.

यादव कुनबे के दंगल के बाद डिंपल उभरकर सामने आईं. यूपी चुनाव में उन्होंने अपने पति, परिवार और पार्टी के लिए प्रचार किया. सपा की सोशल मीडिया कैंपेनिंग देखने का जिम्मा भी डिंपल पर था. ये डिंपल की मौजूदगी ही है, जिसने अखिलेश-डिंपल को 'यूपी का पॉवर कपल' बना दिया. आज सपा नेताओं को ये स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं कि अब अखिलेश के बाद जो भी हैं, डिंपल ही हैं.


एक रैली में अखिलेश और डिंपल
एक रैली में अखिलेश और डिंपल

यूपी का विधानसभा चुनाव पूरी तरह मोदी बनाम अखिलेश रहा. मोदी और अखिलेश में काफी समानताएं भी हैं, मसलन विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ना, राज्य सरकारों पर दंगों के दाग, पार्टी में पिछली पीढ़ी को ठिकाने लगाना और कैंपेनिंग का हाइटेक तरीका. दोनों की निजी जिंदगी में एक बड़ा अंतर उनकी पत्नियां हैं. मोदी ने जहां अपनी पत्नी को बहुत पहले छोड़ दिया था, वहीं अखिलेश की पत्नी उनके साथ हैं और मजबूती दे रही हैं.

यहां तक कैसे आईं डिंपल

2009 में मुलायम की नाराजगी के बावजूद जब डिंपल को फर्रुखाबाद से चुनाव लड़ाया गया, तब वो बिल्कुल तैयार नहीं थीं. चुनाव तो हारीं ही, ये भी पता चल गया कि वो पॉलिटिक्स के लिए नहीं हैं. वो ढंग से भाषण नहीं दे पाती थीं, जनता से बात करने का अनुभव नहीं था, खुद की कोई पहचान नहीं थी. उस समय उनकी राहुल गांधी से तुलना की जाती है. राहुल कितना बदले, वो सभी जानते हैं, लेकिन इन 8 सालों में डिंपल में बहुत बदलाव आया है.

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डिंपल मंच से वही बातें बोलती हैं, जो अखिलेश अपनी रैलियों में कहते हैं, लेकिन अब लोग डिंपल को सुनते हैं. वो भाषण नहीं देती हैं, बातचीत करती हैं. कहती नहीं हैं, बताती हैं. योजनाओं के बारे में, मंशा के बारे में, अखिलेश के बारे में. 'आपके अखिलेश भइया' से शुरू होने वाली उनकी बात 'सपा की सरकार' पर खत्म होती है. सोशल मीडिया पर जो सपा दिखती है, वो डिंपल की सोची सपा है. अब वो फैसले लेने की पोजीशन में हैं.


अखिलेश की जरूरत हैं डिंपल

39 साल की डिंपल अखिलेश से काफी अलग हैं. वो सॉफेस्टिकेटेड हैं और अखिलेश जमीनी, मिलनसार. अखिलेश देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबे से आते हैं, तो डिंपल आर्मी बैकग्राउंड से. हमेशा लो प्रोफाइल रहीं डिंपल इस समय अधिकतर वक्त अखिलेश के साथ नजर आ रही हैं और कैमरे उनकी तरफ फिसले जा रहे हैं. ये अखिलेश की जरूरत भी है. पिछली पीढ़ी से पिंड छुड़ा चुके टीपू को अभी अपनी और पार्टी, दोनों की छवि बदलनी है. ये उनकी राजनीतिक जरूरत और मजबूरी दोनों हैं. डिंपल इसमें मददगार हैं.


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ये मुलायम सिंह ही थे, जो अखिलेश-डिंपल की लव-मैरिज के खिलाफ थे. बलात्कार पर 'लड़कों से गलती' जैसे बयान देने वाले मुलायम की सपा की छवि खराब है. उनकी सरकार में लॉ ऐंड ऑर्डर की धज्जियां उड़ाना अपने आप में नजीर है. अब सपा अखिलेश की है और डिंपल मंच से महिलाओं की बात करके इसे साफ-सुथरा दिखाने की कोशिश कर रही हैं. यूपी चुनाव के दौरान जारी हुए सपा के वीडियो 'अपने तो अपने होते हैं' के पीछे भी डिंपल ही थीं.

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अखिलेश की रैलियों में विकास, लैपटॉप और सड़कों की बात होती है. डिंपल की रैलियों में महिलाओं के हक और उनकी भागीदारी की बात होती है. वो 1090 की बात करती हैं, लड़कियों के अधिकारों की बात करती हैं. यूपी में सपा ने जितनी महिला कैंडिडेट्स को टिकट दिया है, डिंपल ने उनमें से कई कैंडिडेट्स के लिए चुनाव प्रचार किया. इनकी रैलियों में महिलाओं की तादाद अच्छी-खासी होती है. हां, उनकी 'अखिलेश भइया से शिकायत करूंगी' वाली बात की खूब खिल्ली उड़ाई जाती है.

इसे भले लच्छेबाजी कहें, लेकिन अखिलेश के पास डिंपल के लिए गिनाने को बहुत कुछ है. द वीक के इंटरव्यू में अखिलेश कहते हैं कि डिंपल की रैलियों में उनकी रैली से ज्यादा भीड़ आती है. 'जहां मैं नहीं जा पाता हूं, वो चली जाती हैं. वो महिलाओं के मुद्दों पर बात करती हैं.' राजनीति के कुछ खांचों में डिंपल 'फिलर' लगती हैं, लेकिन 2009 की सांसदी हारने के बाद सात साल में उनमें जो बदलाव आया है, उसे अंडर-एस्टिमेट नहीं किया जा सकता.


द वीक को दिए इंटरव्यू के दौरान जब अखिलेश यादव बड़े मलाल के साथ कहते हैं कि उन्हें साइकिल यात्रा न कर पाने का मलाल है, तो डिंपल कहती हैं, 'चुनाव के बाद चला लेना.' ये दोनों हर काम एक-दूसरे के लिए करते हैं.




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