पिंडरा से ग्राउंड रिपोर्ट : 'मोदी पसंद हैं, वो विधायक तो बनेंगे नहीं, फिर क्यों जिता दें'
इस सीट पर वो नेता मैदान में है जो 2014 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा.
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वाराणसी का बाबतपुर एयरपोर्ट, पिंडरा विधानसभा में लगता है. ये इस विधानसभा का तीसरा नाम है. 1952 में जब पहला चुनाव हुआ तो इस सीट को 'वाराणसी पश्चिम' कहा जाता था. पांच साल बाद ही विधानसभा क्षेत्र का नाम 'कोलअसला' हो गया जो 2007 तक रहा.
नए परिसीमन के बाद 2012 में इसका नाम पिंडरा हो गया. कुर्मी बहुल इलाका है. सीपीआई के उदल यहां से नौ बार विधायक रहे. भाजपा दफ्तर में भी उनका नाम कार्यकर्ताओं ने 'आदरणीय' के संबोधन के साथ लिया. लेकिन यहां सीपीआई का सफाया 1996 में अजय राय ने किया, जो उस वक्त बीजेपी में हुआ करते थे.
पिंडरा रोड, बनारस
पिंडरा ग्रामीण इलाका है. लोग ज़्यादातर कृषि पर निर्भर हैं. लेकिन इलाके में बड़ी मंडी नहीं है. किसानों को शहर जाना पड़ता है. औराई चीनी मिल सालों से बंद है. करखियांव में एग्रो पार्क बनना है, जिससे लोगों को बड़ी उम्मीदें हैं. पिंडरा बाजार में जल निकासी की समस्या से व्यापारी परेशान हैं. नालियों और सीवर की ज़रूरत है. गांवों में पीने के पानी की समस्या है.
अजय राय भाजपा और सपा से होते हुए निर्दलीय भी चुनाव जीत चुके हैं और अब पिंडरा से कांग्रेस विधायक हैं. 2014 के बाद से उनकी मुख्य पहचान यही हो गई है कि वह वाराणसी लोकसभा सीट पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े थे. उस समय उनकी पार्टी के सीनियर नेताओं, जैसे दिग्विजय सिंह, आनंद शर्मा और पी चिदंबरम तक ने मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. प्रतापगढ़ से आने वाले और अब तक विधानसभा चुनावों में अजेय रहे प्रमोद तिवारी तक के नाम पर भी विचार हुआ था. लेकिन अंतत: अजय राय का नाम 'लोकल' होने की वजह से फाइनल हुआ.
अजय राय गठबंधन की तरफ से कांग्रेस उम्मीदवार हैं.
अजय उन उम्मीदवारों में शुमार किए जाते हैं, जो लोकल स्तर पर अपनी पार्टी से बड़े हो गए हैं. वो 1996 से लगातार विधायक हैं, लेकिन इस बार हल्ला है कि उनकी सीट फंस गई है. बहुत सारे लोग बीजेपी के अवधेश सिंह की जीत के दावे कर रहे हैं. उधर कागजों पर बसपा उम्मीदवार बाबूलाल पटेल भी मजबूत नजर आते हैं. इसलिए बनारस की इस सीट पर लड़ाई पूरी तरह त्रिकोणीय हो गई है.
बीजेपी उम्मीदवार अवधेश s
बसपा कार्यालय में लोगों ने कहा कि उनका और अजय राय का मुकाबला है. अजय राय के दफ्तर में कहा कि उनका और बसपा का मुकाबला है और भाजपा ने कहा कि अजय राय मुकाबले से बाहर हैं. तीनों पार्टियां बसपा को मुकाबले में बता रही हैं. वजह, उसका कोर वोटर और उनका 'कुर्मी' उम्मीदवार.
इस सीट पर 80 हजार कुर्मी वोट बताए जाते हैं. भाजपा कार्यकर्ता कहते हैं कि अपना दल से गठबंधन की वजह से इन वोटों का बड़ा हिस्सा उसे मिलेगा. लेकिन बसपा बाबूलाल पटेल के नाम पर उनमें आधे की सेंध का दावा कर रही है. यहां 40 हजार ब्राह्मण, 50 हजार दलित, 18 हजार भूमिहार, 10 हजार चौहान, 10-12 हजार मौर्य, 18 हजार राजभर, 15 हजार यादव और 8 हजार वैश्य वोट हैं.
बसपा समर्थकों से बात करते कुलदीप सरदार.
लेकिन अजय राय की वजह से जातीय समर्थन का पैटर्न यहां ठीक-ठीक वैसा नहीं हैं, जैसा बाकी उत्तर प्रदेश में हैं. अजय राय को उनका सजातीय भूमिहार वोट तो मिलता ही है, लेकिन वे हर तबके का कम-अधिक समर्थन एंजॉय करते हैं. उनके दफ्तर पर ही दो दलित कार्यकर्ता मिल गए जो दावा करने लगे कि उनके यहां बहुत सारे दलित हर बार अजय राय को वोट देते हैं. भरोसा न हो तो चलकर देख लीजिए. मैंने पूछा कि इस बार उनके कुछ जातियों के वोट टूट रहे हैं तो एक बुजुर्ग कार्यकर्ता ने कहा, '108 दाने की माला होती है. एक भी दाना कम हो गया तो उसे नहीं पहनना चाहिए. हमारे विधायक जी आज भी 108 दानों की माला पहनकर चल रहे हैं. उनका कुछ टूटा नहीं है, बकिया में बहुत टूटा हुआ है.'
समाजवादी पार्टी समर्थक
अजय राय ने अपनी सियासत का बड़ा मिलाजुला हिसाब किताब बनाया है. वो पर्याप्त बाहुबली भी हैं और थोड़े मददगार भी. थोड़े 'डाउन टू अर्थ' भी. पूर्व भाजपाई हैं और इसलिए थोड़े से हिंदू भी. इसी दफ्तर में एक कार्यकर्ता ने उन्हें असली सनातनी हिंदू बताया और दूसरे ने कहा कि उसके बड़े भाई का ट्रांसफर रुकवाने के लिए विधायक जी उसके साथ लखनऊ तक चले गए थे.
अजय राय 5 अक्टूबर 2015 को गिरफ्तार कर लिए गए थे. बवाल ये था कि वो गंगा में मूर्तियों के विसर्जन पर रोक के प्रशासनिक फैसले का विरोध कर रहे थे. इसके बाद बवाल हुआ था और गाड़ियां वगैरह फूंक दी गई थीं. दशाश्वमेध पुलिस थाने में एफआईआर हुई थी. आमतौर पर कांग्रेस के हर नेता को आप हिंदू आस्था के मुद्दे पर ऐसे प्रदर्शन करते नहीं देखते. बीजेपी कार्यालय पर कार्यकर्ताओं ने स्वीकारा कि पिछले चुनाव में उनके कार्यकर्ता अजय राय के साथ थे. लेकिन लगे हाथ ये भी कहा कि इस बार प्रधानमंत्री की वजह से कार्यकर्ताओं में उत्साह है.
बीजेपी समर्थक.
लेकिन बीजेपी प्रत्याशी अवधेश सिंह की चुनावी परफॉर्मेंस बहुत खराब रही है. उन्होंने कांग्रेस से राजनीति शुरू की थी. फिर बसपा में गए. फिर कांग्रेस में लौटे. अब भाजपा में हैं. अलग-अलग पार्टियों से 5 बार विधायकी हार चुके हैं. एमएलसी का चुनाव भी हारे हैं. लेकिन कई लोगों का मानना है कि इस बार नरेंद्र मोदी के साथ और 'अजय राय हराओ' फैक्टर भी काम कर रहा है. इसलिए अजय राय के खिलाफ सारे नॉन यादव ओबीसी वोट भाजपा की तरफ जा सकते हैं. यादवों की संख्या यहां बहुत अधिक नहीं है, इसलिए अजय राय को गठबंधन का बड़ा फायदा नहीं हुआ है.
अपना दल को पिछली बार यहां से 40 हजार वोट मिले थे, जिन्हें अब भाजपा अपना मानकर चल रही है. ओमप्रकाश राजभर का यहां अच्छा प्रभाव है. उनकी पार्टी भासपा से भी बीजेपी का गठबंधन है. ये लोकसभा सीट मछलीशहर लगती है, लेकिन बनारस शहर सटा हुआ है. इसलिए नरेंद्र मोदी की सांसदी का असर यहां भी है.
बाबतपुर एयरपोर्ट के पास एक चाय की दुकान पर एक 'ब्राह्मण' अंकलजी ने कहा कि बीजेपी आएगी तो विकास होगा, लेकिन हम लोग अजय राय से मुंह कैसे मोड़ लें. मोदी को पसंद करते हैं पर कोई बिना वजह किसी से संबंध कैसे तोड़ सकता है. अजय राय का जो व्यवहार और काम रहता है, उनसे अलग होने का कोई बड़ा कारण नजर नहीं आता. आप मानिए कि वो आदमी बहुत सारे वोटरों को पहचानता है. गांवों में बुजुर्गों के नाम तक जानता है. मोदी तो विधायक बनेंगे नहीं, तो उनके चक्कर में आदमी अवधेश को कैसे जिता दे.
बीजेपी के पोस्टर
बीजेपी दफ्तर में पूछा कि कुर्मी वोट अपने सजातीय बसपा उम्मीदवार के पास क्यों नहीं जाएगा तो एक कार्यकर्ता ने गुमनाम रहने की शर्त पर कहा, 'क्योंकि यहां कुर्मी हरिजन को पसंद नहीं करता. दोनों जातियां एक जगह वोट नहीं कर सकतीं. बाबूलाल किसी और पार्टी से होते तो कुछ कुर्मी वोट जरूर ले जाते. लेकिन हाथी के निशान पर पटेल लोग नहीं जाएंगे.'
बसपा की जनसभा
बीजेपी कार्यकर्ताओं का कहना है कि गैस सिलेंडर सरीखी योजनाओं से दलित बस्तियों में भी उनके लिए समर्थन की खिड़की खुल गई है. उन्हें ये भी लगता है कि मूर्ति विसर्जन वाले बवाल के बाद अजय राय अपना मुस्लिम समर्थन भी खो सकते हैं और वो बसपा में जा सकता है. बीजेपी यहां अजय राय का वर्चस्व खत्म करने को उतावली है, इसीलिए उन्हें पूरी तरह लड़ाई से बाहर बता रही है. एक बीजेपी पदाधिकारी ने कहा कि वो इस बार 20 हजार से नीचे सिमट जाएंगे. उन्होंने ये भी कहा कि अजय राय को अब तक अपनी भाजपा विधायकी के समय बनाए जनाधार पर वोट मिलते हैं.
बीजेपी समर्थक.
बीजेपी दफ्तर में पूछा कि क्या आपका हिंदुत्व चेहरा यहां स्थानीय स्तर पर अजय राय ले गए हैं तो प्रदेश स्तर के एक पदाधिकारी ने कहा, 'क्या इस बात को अजय राय सबके सामने कहेंगे कि वो हिंदूवादी हैं? वो छद्म हिंदूवादी हैं. वो कांग्रेस प्रत्याशी हैं, जिसका सपा से गठबंधन है. कौन नहीं जानता कि सपा क्या है.'
बसपा जनसभा (सभी फोटो : अमितेश )
बनारस से गोरखपुर, बनारस से लखनऊ और बनारस से अतरौलिया की चार लेन की सड़क बन रही है. बसपा कार्यकर्ताओं ने कहा कि इसमें से दो मनमोहन सिंह के समय स्वीकृत हुई थीं. बीजेपी कार्यकर्ताओं ने कहा कि हम एक के बारे में जानते हैं. मनमोहन ने काम शुरू कराने में देरी की, इस सरकार ने शुरू करा दिया, तो श्रेय तो मोदी जी को ही जाएगा. वैसे इसमें शक नहीं है कि प्रधानमंत्री की वजह से बनारस को जो मिला है, उसने पिंडरा के वोटरों को भी प्रभावित किया है. लेकिन अजय राय का बनाया तिलिस्म और बसपा का गणित तोड़ना यहां आसान नहीं है. पर बीजेपी के प्रदेश स्तर के पदाधिकारी इस सीट को अपने पक्ष में मानकर चल रहे हैं.
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