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दिल-दिमाग खराब कर देगी, पता भी नहीं चलेगा कब हो गई ये बीमारी!

लाइम डिजीज अमेरिका में काफी आम बीमारी है. हालांकि, भारत में इसके केस काफी कम दर्ज होते हैं. हाल ही में केरला के एक व्यक्ति को यह बीमारी हो गई है. लाइम डिजीज का समय पर इलाज ज़रूरी है वरना यह दिल-दिमाग से जुड़ी गंभीर दिक्कतें कर सकती है.

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लाइम डिजीज टिक के काटने पर होता है. (सांकेतिक फोटो)

हाल ही में केरल में एक 56 साल के आदमी को एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त पाया गया है जो बहुत आम नहीं है. इसका नाम है, लाइम डिजीज. हमारे देश में इसके मामले काफी कम हैं. लेकिन अमेरिका जैसे देश में यह बहुत आम बीमारी है. इस बीमारी का समय पर इलाज ज़रूरी है. अगर इसका ठीक समय पर इलाज न हो, तो यह हमारे घुटनों, दिल और नर्वस सिस्टम के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है. डॉक्टर से जानिए, लाइम डिजीज के बारे में, यह क्यों होती है? इसे कैसे पहचानें? कैसे होगा इसका बचाव और इलाज. 

लाइम डिजीज क्या है और क्यों होती है?

ये हमें बताया डॉ. तनु सिंघल ने. 

डॉ. तनु सिंघल, कंसल्टेंट, इंफेक्टियस डिजीज, कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी हॉस्पिटल

लाइम डिजीज भारत में एक रेयर बीमारी मानी जाती है. यह  बोरेलिया बर्गडोरफेरी नामक एक बैक्टीरिया से फैलती है. यह बैक्टीरिया छोटे पशुओं में पाया जाता है. हिरण में भी यह मिलता है. इनमें यह इक्सोडेस टिक के काटने से होता है. इसे डियर टिक भी कहा जाता है. जब ये टिक किसी व्यक्ति को काटते हैं, तब ये बैक्टीरिया उन व्यक्तियों के शरीर में प्रवेश कर जाता है. इन्फेक्शन फैलाने के लिए इनका 24 घंटे तक शरीर पर रहना ज़रूरी है. 

अमरीका के लाइम गांव में यह पहली बार पाया गया था. इसी वजह से इसका नाम लाइम डिजीज पड़ा. वहां यह काफी आम बीमारी है. अमरीका में हर साल इसके 30 से 40 हज़ार केस आते हैं. वहीं भारत में यह आम बीमारी नहीं है. यहां करीब 3 से 4 हज़ार केस ही दर्ज होते हैं. हालांकि, इसका एक कारण इस बीमारी के बारे में कम जागरूकता भी हो सकती है.

क्या हैं इसके लक्षण?

लाइम डिजीज के 300 से ज्यादा लक्षण हो सकते हैं. इसलिए इसे 'ग्रेट मिमिकर' भी कहा गया है. टिक के काटने पर शरीर में उस जगह रैश हो जाता है. इस रैश को एरिथेमा माइग्रेन रैश कहते हैं. कई बार यह रैश बढ़ते-बढ़ते 12 इंच तक पहुंच जाता है. इसमें न तो दर्द होता है और न ही खुजली होती है. हालांकि, हाथ लगाने पर थोड़ा गर्म महसूस होता है. इसके अलावा बुखार, ठंड लगना, बदन और सिर दर्द होता है. लिम्फ नोड्स में सूजन भी आ जाती है. 

अगर इस स्टेज पर व्यक्ति का उपचार शुरू हो गया तो वह ठीक हो जाता है. लेकिन अगर डायग्नोसिस नहीं हो पाया तो वह आगे की स्टेज में चले जाते हैं. फिर इसे क्रोनिक लाइम्स डिजीज कहा जाता है. इस स्टेज में शरीर पर अलग-अलग टाइप के रैश आते हैं या दिल की धड़कन में समस्या आ जाती है. घुटनों में दर्द और उनके सूजने की दिक्कत भी होने लगती है. इससे ब्रेन से जुड़ी दिक्कतें भी हो सकती हैं. जैसे- मेनिनजाइटिस, मुंह का टेढ़ा होना, फेशियल पाल्सी और पेरिफेरल न्यूरोपैथी.

टिक के काटने पर शरीर में उस जगह एरिथेमा माइग्रेन नाम का रैश हो जाता है

बचाव और इलाज कैसे करें? 

जिन लोगों में लाइम डिजीज के लक्षण होते हैं या फिर टिक्स होते हैं, उनके खून में एंटीबॉडी टेस्ट किया जाता है. डायग्नोसिस के बाद इसका उपचार साधारण एंटीबायोटिक्स से ही होता है. जैसे- एजिथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, सेफुरोक्साइम आदि. हालांकि, ये एंटीबायोटिक्स शुरुआती स्टेज में ही काम करते हैं. अगर किसी मरीज़ को क्रोनिक लाइम डिजीज है तो ये ज़्यादा काम नहीं करेंगे. ऐसे में आवश्यक है कि जब भी हम टिक वाले एरिया में जाएं तो लंबी बांह वाले कपड़े पहनें, इंसेक्ट रिपेलेंट का इस्तेमाल करें. बाहर से आने के बाद तुरंत नहाएं. चेक करें कि कहीं कोई टिक चिपका हुआ तो नहीं है. अगर वह चिपका हुआ हो तो उसे शरीर से निकाल दें. ध्यान रखें कि लाइम डिजीज का समय पर इलाज कराना ज़रूरी है. वरना यह गंभीर समस्या बन सकती है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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