आपने अमिताभ बच्चन और रानी मुख़र्जी की 'ब्लैक' देखी है? उस फिल्म के आखिर में दिखाते हैं कि अमिताभ बच्चन के किरदार को एक ऐसी बीमारी हो जाती है कि उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता. उस बीमारी का नाम अल्ज़ाइमर्स है. इसमें धीरे-धीरे करके आप चीज़ें भूलने लगते हैं, शुरुआत भूलने की छोटी-छोटी आदतों से होती है. जैसे चाभी कहां रखी, फिर आप रास्ते भूलने लगते हैं, लोगों को भूलने लगते हैं. अपने आप को भूलने लगते हैं. ये बेहद डरावना है.
2018 तक भारत में 40 लाख ऐसे लोगों की पहचान हुई थी जो अल्ज़ाइमर्स से ग्रस्त थे. पूरी दुनिया में अल्ज़ाइमर्स के मामलों में भारत तीसरे नंबर पर है, अमेरिका और चीन के बाद. हमारे यहां उम्र के साथ याददाश्त जाने को ज़िंदगी का हिस्सा मान लिया जाता है, जबकि यह एक बीमारी है और इसे सीरियसली लेने की ज़रूरत है.
क्या होती है अल्ज़ाइमर्स डिजीज़?
ये हमें बताया डॉक्टर अखिल अगरवाल ने. मानश हॉस्पिटल, कोटा में काम करते हैं.

अल्ज़ाइमर्स एक तरह का डिमेंशिया होता है, जो 60 से 65 साल के बाद शुरू होता है. ये बीमारी युवाओं की नहीं होती है. ये बीमारी उम्र की होती है. डिमेंशिया में सोचने-समझने, काम करने की क्षमता में कमी आने लगती है. ये सब पूरे होश में होता है. पेशेंट को पता होता कि अभी दिन है या रात. उसे पता है कि मैं कौन हूं. ये मेरा घर है. हालांकि वो धीरे-धीरे अपने घर का रास्ता भटकने लगता है. डिमेंशिया का सबसे कॉमन टाइप है अल्ज़ाइमर्स. जितने भी डिमेंशिया होते हैं उसमें से 50-60 प्रतिशत डिमेंशिया अल्ज़ाइमर्स डिजीज़ होते हैं
कारण:
- जेनेटिक. लगभग 40 प्रतिशत लोगों में अगर माता-पिता को अल्ज़ाइमर्स होता है तो बच्चों को भी होने की संभावना बढ़ जाती है
-न्यूरोलॉजिकल बदलाव. दिमाग का बहुत लॉस हो जाता है
-न्यूरोकेमिकल बदलाव. न्यूरोट्रांसमीटर कम होने लगते हैं

चलिए अल्ज़ाइमर्स डिजीज़ क्या होती है और क्यों होती है. ये तो पता चल गया. पर ये कैसे पता चलेगा आपको अल्ज़ाइमर्स हो रहा है. या आपके किसी जानने वाले को हो रहा है. क्योंकि इसमें ऐसा नहीं होता कि एक दिन आप उठें और सब भूल चुके हों. इसके अलग-अलग स्टेज होते
अल्ज़ाइमर्स का क्या इलाज है? ये हमें बताया डॉक्टर गोविंद मैथ्यू ने. वो न्यूरोलॉजिस्ट हैं. AIIMS ऋषिकेश में.

डॉक्टर गोविंद मैथ्यू, न्यूरोलॉजिस्ट, AIIMS ऋषिकेश
-अगर दिमाग के अंदर न्यूरॉन्स का लॉस होने लग जाए या वो मरने लग जाएं. ऐसे मरें कि ज़िंदा न हों. तो इस स्थिति से दिमाग की क्षमताएं धीरे-धीरे खोने लगती हैं.
-अल्ज़ाइमर्स में ब्रेन में न्यूरॉन्स के बीच में कुछ ख़ास तरह के केमिकल या पदार्थ जमा होने लग जाते हैं. जिनके प्रभाव में आकर हमारे ब्रेन के कुछ हिस्से, ख़ासतौर पर पेराईटल और टेम्पोरल लोब के हिस्सों में न्यूरॉन का लॉस होने लगता है. इसकी वजह से ये हिस्से अपना काम नहीं कर पाते. इन हिस्सों का काम होता है याद्दाश्त रखना. हमारे किसी काम को करने के तरीके को सीखना. हमारे अगल-बगल के वातावरण से ख़ुद को आवगत कराना. रास्ता याद रखना. चीजों को देखना और पहचानना.
लक्षण:
-इसकी शुरुआत होती है जब पहली अवस्था में हम दिन-प्रतिदिन की चीज़ों का हिसाब-किताब नहीं रख पाते
-पुरानी बातें तो याद रहेंगी. पर 10 मिनट पहले क्या हुआ, एक मिनट पहले क्या हुआ या 15 दिन पहले क्या हुआ, ये चीज़ें भूलने लगते हैं
-धीरे-धीरे बीमारी जब आगे बढ़ने लगती है तो हम पुरानी चीज़ें भी भूलने लग जाते हैं.
-घर का रास्ता भूल जाते हैं. घर के अंदर किचन और बाथरूम का रास्ता भूल जाते हैं

-कपड़े पहनना भूल जाते हैं, उल्टा पहनने लग जाते हैं
-लोगों को, चीज़ों को पहचानने में भी परेशानी होने लग जाती है
-बीमारी जब अगली अवस्था में पहुंचती है तो शरीर पर से नियंत्रण खत्म हो जाता है
-हाथ-पांव अकड़ने लगते हैं. हम सुस्त हो जाते हैं
-आख़िरी अवस्था में शरीर स्थिर और अकड़ जाता है
इलाज:
इसकी पहचान के लिए हम न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाते हैं. डिटेल इंटरव्यू के बाद बीमारी की पहचान होती है. कंफर्मेशन के लिए MRI, PET स्कैन वगैरह करना पड़ता है.
-इसका इलाज संभव नहीं है लेकिन हां इससे बढ़ने से रोक सकते हैं, कुछ दवाइयां हैं जो ब्रेन के अन्दर न्यूरॉन को मरने से रोकती हैं.
-इस बीमारी को पहले स्टेज से आखिरी स्टेज तक पहुंचने में जो वक्त लगता है, उसे बढ़ाया जा सकता है. यानी अगर उस अवस्था में कोई पांच साल में पहुंचता है, तो दवाइयों और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट की मदद से उसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है.
-ऐसे मरीजों को प्यार और अपनापन चाहिए होता है. क्योंकि वो डिप्रेशन में जा सकते हैं. ऐसे मरीज़ अक्सर या तो आत्महत्या कर बैठते हैं या सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं
-आख़िरी अवस्था में खाना चबाने तक की प्रक्रिया भूल जाते हैं. खाना खाने के दौरान खाने का टुकड़ा छाती में फंस सकता है. इन्फेक्शन हो जाता है. जान तक जा सकती है.
-या बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्हें बेडसोर होने लग जाता है. घाव होने लग जाता है जिससे इन्फेक्शन होकर उनकी जान को ख़तरा होता है
-ये ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें प्रॉपर नर्सिंग केयर और देखभाल से बचाया जा सकता है
यानी अगर आप अल्ज़ाइमर्स के खतरे वाली उम्र पर पहुंच गए हैं और छोटी-छोटी चीज़ें भूलने लगे हैं तो इसे हल्के में मत लीजिए, डॉक्टर से मिलिए और इलाज करवाइए.
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