जैसा कि आमतौर पर होता है, कई लोगों को ये गाना इसी फिल्म की वजह से याद है. लेकिन असल में इसका ओरिजिनल वर्जन काफी समय से लोगों का पसंदीदा रहा है. इसे लिखा है शिव कुमार बटालवी ने. शिव कुमार वही, जिनकी लिखी हुई कविताएं पंजाब के लोक साहित्य का अहम हिस्सा रही हैं. इन्हें 'बिरह दा सुल्तान' भी कहा जाता है.
हम शिव कुमार बटालवी और इस गाने की बात क्यों कर रहे हैं?
क्योंकि इस गाने को लेकर एक कहानी चलती है. एक ऐसी कहानी, जिसका एक मोड़ अभी चंद दिनों पहले अपना अंत छू गया. पढ़ने को मिलता है कि ये गाना शिव कुमार बटालवी ने अनुसूया सिंह नाम की लड़की के लिए लिखा था. अनुसूया सिंह, जो वेनेज़ुएला की मेरिडा यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी पढ़ाती थीं. वहीं पर 84 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
उनके निधन की खबर के साथ कई सोशल मीडिया पेजेज़ पर अनुसूया सिंह और शिव कुमार बटालवी के नाम के कई किस्से चलने लगे. लोगों ने लिखा, शिव कुमार बटालवी और अनुसूया के बीच का प्रेम साकार नहीं हुआ. क्योंकि अनुसूया सिंह के पिता को ये रिश्ता पसंद नहीं था. एक फेसबुक पेज 'किताब त्रिंजन' ने पोस्ट डाली और उसमें लिखा,
‘शिव कुमार बटालवी का पहला प्यार नहीं रहीं’.

इसमें कई बातें ऐसी लिखी गईं, जिन पर अनुसूया सिंह के परिवार वालों ने आपत्ति जताई. लेकिन उन पर बात करने से पहले आप ये पढ़ लें कि इस पोस्ट में लिखा क्या था, जिस पर बवाल हुआ.
अनुसूया सिंह, पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की सबसे छोटी बेटी और शिव कुमार बटालवी का पहला प्यार नहीं रहीं. कवि शिव कुमार के साथ उनका प्रेम संबंध रहा था, लेकिन कहा जाता है कि उनके पिता को ये पसंद नहीं था. उनके पहले पति, जिनसे उनकी अरेंज मैरिज हुई थी, ने सुसाइड कर लिया था.इस पोस्ट से मिलते-जुलते कई और पोस्ट भी पढ़ने को मिले सोशल मीडिया पर. जैसे 'द पंजाब क्लब' नाम के इंस्टाग्राम पेज पर लिखी ये कहानी. इसमें आरोप लगाया गया,
जब शिव कुमार बटालवी को अनुसूया से प्रेम हुआ तो गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी अपने घर में प्रेम की कहानी बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने शिव और अनुसूया के प्रेम को कभी स्वीकृति नहीं दी. क्योंकि वो अब एक अमीर 'शहरी पंजाबी' थे, जबकि शिव गांव के एक हिन्दू लड़के. इसीलिए प्रीतलड़ी ने अनुसूया को विदेश भेज दिया. जब वो चली गईंं, तब शिव ने उनकी याद में ‘इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत है’ लिखा.

इस बात को लेकर प्रीतलड़ी के परिवार के सदस्यों ने आपत्ति जताई. उनकी आपत्तियां क्या थीं, और उनके हिसाब से अनुसूया और शिव बटालवी की कहानी क्या थी, वो जानने से पहले गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी के बारे में थोड़ा-सा जान लीजिए.
'प्रीत की लड़ी' शुरू करने वाले गुरबख्श सिंह
कहते हैं कि अमृता प्रीतम पहली बार साहिर से यहीं मिली थीं. और इसके बाद दोनों में प्रेम हुआ. देश के विभाजन से पहले तक प्रीत नगर लाहौर और अमृतसर के बीच बसा एक ऐसा केंद्र था, जहां साहित्य और संस्कृति की कई धाराएं आकर मिलती थीं. विभाजन के बाद सब ख़त्म हो गया. कोशिश की गई इसकी लोकप्रियता बनाए रखने की. पर ऐसा हो न सका. प्रीत नगर अब भी मौजूद है. हां, पहले जैसी बात नहीं रही. अब प्रीत नगर अमृतसर शहर की सीमा पर बसा एक छोटा-सा इलाका बनकर रह गया है. लेकिन गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी को लोग आज भी याद करते हैं.

वापस आते हैं पोस्ट पर. इन्हीं गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी के परिवार के सदस्य पूनम सिंह और सुकीरत आनंद ने इन पेजों पर लिखी कहानियों का विरोध किया. पूनम सिंह अब प्रीतलड़ी मैगजीन की संपादक हैं. उन्होंने लिखा,
"अनु जी (अनुसूया) ने खुद मुझसे इन सभी विषयों पर बात की थी. उन्होंने बताया था कि उनके पिता ने पूछा था उनसे कि क्या वह शिव से शादी करना चाहती हैं? उन्होंने मना कर दिया था. उसके बाद गुरबख्श जी ने उनसे कहा कि तुम जाकर पढ़ाई करो फिर. अनु ने मुझे बताया था कि वह खुद को शिव की पत्नी के रूप में नहीं देख सकती थीं. दोनों के बीच आकर्षण था. शिव ने कोई मिथ नहीं बनाया था. लेकिन वो शायद चोटिल हो गए थे इस बात से."सुकीरत आनंद ने लिखा,
"अनु और शिव प्रीत नगर में मिले थे. तब तक अनु विधवा हो चुकी थीं. दोनों अच्छे दोस्त बन गए. जब अनु ने गुरबख्श सिंह को बताया कि वो शिव से शादी नहीं करना चाहतीं, तो उन्होंने सलाह दी कि अनु को पीछे हट जाना चाहिए. कहीं उनकी करीबी से शिव को गलत संकेत न मिल जाए. उसके बाद अनुसूया मॉस्को गईं, और अपने बैचमेट राउल से मिलीं. प्रेम हुआ, शादी कर ली.पूनम ने आगे बताया कि अनुसूया जब भारत आती थीं तो शिव के परिवार से भी मिलती थीं. आखिरी बार जब देश आई थीं, तब भी मिलने गई थीं. पूनम के मुताबिक, उन्होंने बताया था कि एक सितारे का नाम उन्होंने शिव रख छोड़ा है. जब तक उनसे बन पड़ा, उन्होंने उस तारे को देखना नहीं छोड़ा.
गुरबख्श सिंह ने यही सवाल मेरी मां उर्मिला से भी पूछा था. उन्होंने देखा था कि मेरी मां लाहौर में एक गरीब कम्युनिस्ट जगजीत (मेरे पिता) के साथ घूम रही थीं. मेरी मां ने उनके लिए हां कर दी थी. 1951 में उन दोनों की शादी हुई क्योंकि जगजीत जेल आते-जाते रहते थे. उन्होंने मेरी मां उर्मिला के लिए पेपर्स भी साइन किए, ताकि वो जगजीत की पत्नी बनकर जेल में उनसे मिलने जा सकें. क्योंकि तब तक शादी नहीं हुई थी दोनों की, और मंगेतरों को जेल में मिलने आने की छूट नहीं थी. मेरी मौसी प्रोतिमा के साथ भी यही हुआ. उन्होंने एक बंगाली कम्युनिस्ट से शादी की थी. गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी अपने समय से काफी आगे थे. और उनकी बेटियां भी."
ये बात भी साफ़ की गई कि अनुसूया की पहली शादी अरेंज मैरिज नहीं थी, वो भी प्रेम विवाह ही था. लेकिन उनके पति ने सुसाइड कर लिया था.
अनुसूया सिंह एस्तेवेज़
अनुसूया के दो बेटे और एक बेटी हैं. उनके बेटे सुमितो एस्तेवेज़ ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा,
“वो चार भाषाओं में लिख सकती थीं- संस्कृत, अरबी, सिरिलिक, लैटिन. चार भाषाएं बखूबी बोलती थीं- पंजाबी, रशियन, अंग्रेजी और स्पैनिश. और कई दूसरी भाषाएं समझ लेती थीं. बहुत कम ही मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिला हूं, जो उनके जैसा सुसंस्कृत हो. पंद्रह साल की उम्र में मैंने अनीस नीन की डायरी पढ़ ली थी. मुझे हेनरी मिलर और इजाडोरा डंकन के स्कार्फ की कहानी मालूम थी. जब मैं सत्रह का था, तब यूरोप के बेहतरीन म्यूजियम देखने गया था. तब मुझे वहां मौजूद पेंटिंग्स के बारे में पहले से ही सब कुछ रटा हुआ था. क्योंकि उन्होंने मुझे इन सबके बारे में बताया था.”अनुसूया की कहानी शिव कुमार बटालवी के अधूरे प्रेम की कहानी नहीं है. अनुसूया की कहानी एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसने जिंदगी अपनी शर्तों पर जी. अपना प्रेम खुद चुना. अपने फैसले खुद लिए. और उन सभी को स्वीकार करने से पीछे कभी नहीं हटीं.
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