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ये PPH क्या है जिस पर डॉक्टर अर्चना शर्मा की मौत के बाद बात हो रही है

भारत में बच्चे के जन्म के वक्त सबसे ज्यादा मौत PPH से ही होती है.

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राजस्थान के दौसा में एक महिला की पीरियड के वक्त ब्लड लॉस से मौत हो गई, डॉक्टर अर्चना शर्मा (लेफ्ट फोटो) पर मर्डर का केस दर्ज किया गया था, इससे परेशान डॉक्टर अर्चना शर्मा की सुसाइड से मौत हो गई.
राजस्थान का दौसा. यहां का लालसोट कस्बा. यहां आनंद अस्पताल की डॉक्टर अर्चना शर्मा की सुसाइड से मौत हो गई. वो गायनेकोलॉजिस्ट थीं. डिलिवरी के वक्त ज्यादा खून बहने की वजह से एक पेशेंट की मौत के बाद उनके खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया गया था. पेशेंट के घरवालों और गांववालों ने अस्पताल के बाहर प्रोटेस्ट किया था, तोड़फोड़ की थी. डॉक्टर अर्चना इसी के चलते परेशान चल रही थीं.
डॉक्टर अर्चना के घर से मिले सुसाइड नोट में ये बात लिखी है कि PPH यानी पोस्ट पार्टम हेमरेज एक मुश्किल परिस्थिति होती है. आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि PPH क्या होता है और ऐसे केसेस में पेशेंट्स का बचना कितना मुश्किल होता है.
हमारे देश में डिलिवरी के दौरान होने वाली ज्यादातर मौतें पीपीएच की वजह से होती हैं. PPH क्या होता है? क्यों होता है? क्या इससे बचा जा सकता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमने बात की मुंबई के मदरहुड हॉस्पिटल की गायनोकॉलोजिस्ट डॉक्टर सुरभि सिद्धार्थ से.
What is PPH
डॉ सुरभि सिद्धार्थ, गायनेकोलॉजिस्ट

PPH क्या है?
डिलीवरी के बाद जेनरली ब्लीडिंग होती ही है क्योंकि यूट्रस, प्लेसेंटा को बाहर निकालने के लिए सिकुड़ता है लेकिन कुछ मामलों यूट्रस सिकुड़ना बंद कर देता है, जिससे ब्लीडिंग होने लगती है. यह प्राइमरी पीपीएच का एक कॉमन कारण है. जब प्लेसेंटा के छोटे टुकड़े यूट्रस में जुड़े रह जाते हैं, तो बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग हो सकती है. इसमें ब्लड लॉस इतना ज्यादा होता है कि महिला कई बार शॉक में चली जाती है. नॉर्मल डिलीवरी के बाद 500 मिली से ज्यादा और सिजेरियन डिलीवरी के बाद करीब 1000 एमएल से ज्यादा ब्लीडिंग हो तो पीपीएच मानते हैं.
क्या इसे अवॉयड किया जा सकता है?
PPH किसी भी महिला में हो सकता है. इसको अवॉयड करने का कोई भी तरीका नहीं होता है. अगर सिज़ेरियन डिलीवरी हुई है, ट्विन डिलीवरी हुई है, बच्चे का साइज़ बड़ा है, डायबिटीज़ है, अंदर कोई फाइब्रॉएड है या किसी तरह की कोई सर्जरी हुई है तो उन महिलाओं में PPH होने के चांसेस ज्यादा होते हैं .अगर कोई महिला बहुत ज्यादा देर तक लेबर पैन में रही है तब भी PPH होने की संभवना बढ़ जाती है.
PPH
डिलीवरी के बाद 7 दिन से लेकर 12 हफ़्तों तक कभी भी हो सकता है PPH

डिलीवरी के दौरान PPH से बचने के लिए क्या किया जा सकता है?  
डिलीवरी के दौरान PPH की समस्या ना हो इसे लिए डॉक्टर्स ऑक्सीटॉसिन जैसी दवाइयां देना शुरू कर देते हैं. डिलीवरी के दौरान या कुछ दिन बाद तक अगर PPH नहीं हुआ है तो इसका मतलब ये नहीं है कि ख़तरा टल गया है . सेकेंडरी PPH सात दिन से लेकर 12 हफ़्तों तक कभी भी  हो सकता है . अगर ब्लड लॉस काफी ज्यादा हो रहा है तो कई बार डॉक्टर्स को आई वी फ्लूइड काफी ज्यादा देना पड़ सकता है या कभी-कभी ब्लड चढ़ाने की नौबत भी आ सकती है.
भारत में मैटरनल मोर्टेलिटी के मुख्य कारणों में PPH शामिल है. देश में 25% मौतें PPH, 15% इंफेक्शन, 12%  ऑब्स्ट्रक्टेड लेबर, 8% अनसेफ अबॉर्शन के कारण होती हैं. हमारे देश में प्रेग्नेंट महिलाओं को पर्याप्त न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता है, आयरन की कमी एक बड़ा कंसर्न है. ऐसे में ज़रूरत है कि मैटरनल हेल्थ से जुड़े इन प्रॉब्लम्स को लेकर लोगों को ज़ागरूक किया जाए. डॉक्टर को दोषी मानकर उन पर हमले करना, उनकी मेडिकल फेसिलिटी में तोड़फोड़ करना और उन्हें प्रताड़ित करना इसका सॉल्यूशन नहीं है.

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