इंडिया टुडे को 45 साल हो गए हैं. उसी के फाउंडेशन डे के मौके पर इंडिया टुडे मैग्ज़ीन में 45 हस्तियों के बारे में एक-से-एक बेहतरीन किस्सा छपा है. उसमें से एक किस्सा हम आपके लिए लेकर आए हैं. इनका नाम है अरुंधति भट्टाचार्य. कई लोग वाकिफ होंगे और कई नहीं भी. बता देते हैं कि ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी SBI की पहली महिला चेयरपर्सन हैं. इन्होंने SBI की कमान तब संभाली थी, जब बैंक की बहुत अच्छी नहीं थी.
SBI की पहली महिला चेयरपर्सन की ये कहानी आपको जरूर जाननी चाहिए
अरुंधति भट्टाचार्य की चुनौतियों और हौसले की कहानी

अरुंधति बताती हैं कि पिता स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया में थे. बिना पेंशन के ही रिटायर हो गए थे. इसलिए उन्हें जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा होना था. भिलाई में बड़ी हुईं अरुंधति की सबसे बड़ी प्रेरणा उनकी चाची और मां रहीं. अरुंधति ने बताया कि एक बार उनके पड़ोस में किसी व्यक्ति की इलाज के अभाव में मौत हो गई थी. तब उनकी मां ने दिन-रात एक करके पढ़ाई की और होम्योपैथ डॉक्टर बनीं, ताकि अपने समुदाय के लोगों की मदद कर सकें. उनका इलाज कर सकें. अरुंधति की मानें तो उनकी मां अपनी मौत के तीन महीने पहले तक क्लीनिक चलाकर लोगों का इलाज करती रही थीं.
अगर स्थिति का सामना करना है, तो कुछ करो. पीछे बैठने का कोई मतलब नहीं है.
अरुंधति ने बताया कि उनके लिए 2005 में एक और चुनौती आई. जब उन्हें किसी नए प्रोजेक्ट का चीफ जनरल मैनेजर बना दिया गया था. किसी को लगा नहीं था कि वो इस प्रोजेक्ट को आगे तक ले जाएंगी. लेकिन यही उनके लिए एक रिवॉर्ड साबित हुआ. इससे उन्हें जितना सीखने को मिला, उतनी ही संतुष्टि भी मिली.
PSU बैंकों में चार दशक से ज्यादा का समय बिताने के बाद अब अरुंधति एक स्टार्टअप कंपनी के साथ काम कर रही हैं. 2020 की शुरूआत में वह सॉफ्टवेयर फर्म सेल्सफोर्स में बतौर चेयरपर्सन और CEO शामिल हुईं. हालांकि किसी आईटी कंपनी से जुड़ना और वहां काम करना उनके लिए आसान नहीं था. लेकिन अरुंधति ने हर बार की तरह यहां भी मैनेज कर लिया. उनका कहना है कि उन्होंने PSU बैंकर को पीछे छोड़ दिया, और अब IT वर्ल्ड को गले लगा रही हैं.