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मलाला ने अफगानिस्तान और तालिबान पर जो बात लिखी है वो दहलाने वाली है

'मैं नौ साल में एक गोली से नहीं उबर पाई हूं.'

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मलाला ने इंस्टाग्राम पर अपनी फोटो साझाकर ज़ाहिर किया अफगानिस्तान को लेकर अपना दुख (फोटो - इंडिया टुडे)
मलाला युसुफजई. तालिबान के आतंक की कहानियों में मलाला भी एक दर्दनाक कहानी है. एक छोटी सी लड़की, जिसे तालिबान ने सिर्फ इसलिए गोली मार दी कि वो पढ़ना चाहती थी. मलाला पाकिस्तान की थीं और तालिबान इस वक्त पड़ोसी देश अफगानिस्तान में कब्ज़ा जमाए बैठा है. साल 2012 में खुद पर हुए तालिबानी हमले को याद करते हुए मलाला ने एक ब्लॉग लिखा है.
इसमें वो लिखती हैं कि घटना के नौ साल बाद भी डॉक्टर उनके शरीर की मरम्मत कर रहे हैं. वो लिखती हैं कि उस एक गोली से वो आज तक उबर नहीं पाई हैं. वो बताती हैं कि जब अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ा और जब तालिबान वहां कब्जा कर रहा था, तब वो बोस्टन के एक अस्पताल में भर्ती थीं. उनका छठा ऑपरेशन चल रहा था. तालिबान ने जो डैमेज उनके शरीर में किया है, उसे डॉक्टर्स ठीक करने की कोशिश कर रहे थे. और क्या लिखा है मलाला ने? मलाला लिखती हैं,
"पाकिस्तानी तालिबान का एक आदमी मेरी स्कूल बस में चढ़ा और सीधे मेरे सिर के बाएं ओर गोली मार दी. इससे मेरी बायीं आंख, खोपड़ी, फेशिअल नर्व और जबड़ों को नुकसान पंहुचा. मेरे कान के परदे भी फट गए थे."
इसके बाद वो अपने इलाज, पेशावर में हुई सर्जरी के बारे में लिखती हैं. वो लिखती हैं कि वो कोमा में थीं और जब होश आया तो उन्हें कुछ साफ नहीं दिख रहा था. मलाला बर्मिंघम के अस्पताल के अपने अनुभव लिखती हैं. बताती हैं कि जब उन्होंने अपना चेहरा शीशे में देखा तो कैसे वो खुद को पहचान नहीं पा रही हैं. बताया कि आधा सिर शेव्ड देखकर उन्हें लगा था कि उनके साथ ये बर्बरता तालिबान ने की है. हालांकि बाद में उन्हें पता चला था कि डॉक्टर ने सर्जरी करने के लिए उनके सिर के बाल हटाए हैं.
मलाला लिखती हैं कि इलाज के दौरान उन्हें चिंता थी कि उनके इलाज के पैसे कौन देगा. वो सवाल करती थीं, बताती थीं कि उनके पास पैसे नहीं हैं. वो बताती हैं कि सर्जरी के दौरान उनका एक स्कल बोन उनके पेट में चला गया था. जिसे डॉक्टरों ने सर्जरी करके निकाला. वो लिखती हैं कि उसे अब वो अपने बुकशेल्फ में रखती हैं.
मलाला लिखती हैं कि हो सकता था कि उन्हें कोई नहीं जान पाता. लेकिन पाकिस्तानी पत्रकार और इंटरनैशनल मीडिया को लोग उनका नाम जानते थे. क्योंकि वो लगातार लड़कियों की शिक्षा पर चरमपंथियों की रोक के खिलाफ बोल रही थीं. इस वजह से उनकी कहानी दुनिया तक आ पाई. वो लिखती हैं,
"नौ साल बाद भी मैं एक गोली से उबर नहीं पाई हूं. अफ़ग़ानिस्तान के लोग 40 साल से लाखों गोलियों का दंश झेल रहे हैं. मेरा दिल टूटता है उन लोगों के बारे में सोचकर जिनके नाम हम भूल जाएंगे या कभी नहीं जान पाएंगे. जिनकी पुकार हम तक पहुंच ही नहीं पाएगी."
मलाला 11 की उम्र से ही लड़कियों की शिक्षा के अधिकार पर बोलने लगी थीं. जनवरी 2009 में तालिबान ने पाकिस्तान के उस इलाके में लड़कियों के स्कूल जाने पर बैन लगा दिया था. इसी साल से ही मलाला गुल मकई के नाम से बीबीसी के लिए ब्लॉग लिखा करती थीं. उनके ब्लॉग में लड़कियों की शिक्षा पर काफी ज़ोर होता था. अपने ब्लॉग्स में वो लिखतीं कि कैसे तालिबान की वजह से उनके दोस्तों ने स्कूल आना बंद कर दिया है, कैसे वो लोग अपनी परीक्षा नहीं दे पा रहे हैं. अक्टूबर 2012 में मलाला की स्कूल बस पर चढ़कर एक तालिबानी ने उन पर गोली चला दी. इसके बाद पहले पेशावर और फिर यूके में मलाला का इलाज चला. साल 2014 में मलाला को नोबेल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया.
 

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