केरल का एर्णाकुलम जिला. यहां का कुंभलंगी गांव. अगर आप साउथ इंडियन फिल्मों के शौकीन हैं तो बीते साल आपने 'कुंभलंगी नाइट्स' फिल्म ज़रूर देखी होगी. लेकिन ये खबर फिल्म से जुड़ी नहीं है, खबर है महिलाओं से जुड़ी. दरअसल 13 जनवरी को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुंभलंगी को देश का पहला पैड फ्री गांव घोषित किया है. यानी इस गांव में अब सैनिटरी पैड्स न मिलेंगे और न ही इस्तेमाल किए जाएंगे. इससे पहले कि आप नाराज़ हों, हम बता दें कि पीरियड्स में यहां की लड़कियां और महिलाएं पैड की जगह अब मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करने लगी हैं.
देश के इस इलाके में सैनिटरी पैड मिलना बंद हो गया है!
... लेकिन ये एक अच्छी खबर है.
दरअसल, एर्णाकुलम के सांसद हिबी ईडन ने प्रधानमंत्री संसद आदर्श ग्राम योगना के तहत 'अवलकायी' अभियान की शुरुआत की थी. इसका मतलब होता है for her यानी महिलाओं, लड़कियों के लिए. इस अभियान के तहत 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 5000 से ज्यादा मेंस्ट्रुअल कप बांटे गए हैं. बीते तीन महीनों में महिलाओं को मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी गई.
इस दौरान सांसद हिबी ईडन ने कहा,
“हमने कई स्कूलों में नैपकिन-वेंडिंग मशीनें लगाई हैं, लेकिन अक्सर वो ठीक से काम नहीं करते. फिर हमें यह आइडिया आया और हमने एक्स्पर्ट्स से सलाह लेकर इसका विस्तार से अध्ययन किया. एक्स्पर्ट्स ने कहा कि मेन्स्ट्रूअल कप को कई सालों तक रीयूज़ किया जा सकता है और यह अधिक हाईजीनिक है.”सांसद हिबी ईडन का मानना है कि यह नई पहल सिंथेटिक सैनिटेरी नैप्किन के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करेगा. साथ ही यह वर्किंग वुमन और स्टूडेंट्स की पर्सनल हाइजीन को भी सुनिश्चित करेगा. मेन्स्ट्रुअल कप क्या होते हैं?
मेंस्ट्रुअल कप की एक तस्वीर
सिलिकॉन से बना एक छोटा सा कप. बेहद सॉफ्ट और ईज़ी टू यूज़ एंड ईज़ी टू स्टोर. माने जरा सी जगह लेगा. इसे अपने पर्स में भी आराम से कैरी कर सकती हैं आप. ये अलग कैसे है. पैड्स को आप बाहर लगाती हैं. यानी अपने अंडरवियर में. मगर कप को आप दबाकर अपने प्राइवेट पार्ट में इन्सर्ट कर सकती हैं. और ये वहां जाकर ठहर जाएगा. जैसा कि आप अनुमान लगा सकती हैं, ये आपका पीरियड ब्लड जमा करता रहेगा. और जब ये भर जाए तब आप इसे टॉयलेट में खाली कर सकती हैं. इस कप को गर्म पानी में अच्छे से उबालकर आप इसे दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं. यानी 300 से 400 रुपये का ये कप तब तक चलेगा, जब तक आप चलाओ. और आपको हर महीने होने वाले पैड्स के खर्चे से मुक्त करेगा.
मेंस्ट्रुअल कप क्या है, ये जानने के लिए बीते दिनों मेरी साथी सोनल ने बात की थी डॉक्टर लवलीना नादिर से. डॉक्टर लवलीना गायनेकोलॉजिस्ट हैं. उन्होंने बताया था,
“मेंस्ट्रुअल कप दो तरह के होते हैं. एक आता है वजाइनल कप, जो वजाइना में रहता है. और एक आता है सर्वाइकल कप, जो सर्विक्स पर फिक्स हो जाता है. कप्स अलग-अलग साइज़ में आते हैं. यू शेप्ड या सी शेप्ड. इसको इंसर्ट करना बहुत आसान है, मतलब आप अपनी उंगली से कप को बीच में थोड़ा सा दबाइए और अपनी उंगली के इर्द-गिर्द कप को फोल्ड करिए. ऊपर से देखने पर ये एक सी या यू शेप बनाएगा. अब चूंकि ये कंप्रेस्ड है, तो ये आसानी से वेजाइना में इंसर्ट हो जाएगा. बस एक चीज़ ध्यान रखनी है. वेजाइनल कैनल सीधी नहीं होती, तो सीधा इंसर्ट न कर के एक ऐंगल पर पुश करते हुए इंसर्ट करना है. और अगर ज़्यादा आसान करना है, तो उंगली के सहारे डायरेक्शन देख लीजिए. अगर कोई इरिटेशन हो तो लुब्रिकेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं. एक बार ये सही जगह बैठ जाए, तो उंगली हटा लीजिए. कप का मुंह खुल जाएगा.”और क्या फायदे हैं मेंस्ट्रुअल कप के? एक्सपर्ट्स का कहना है कि पीरियड्स के दौरान मेन्स्ट्रूअल हाइजीन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बाकि चीजों की तुलना में मेन्स्ट्रूअल कप एक सेफ़ ऑप्शन है. उन्होंने कहा कि मेडिकल ग्रेड सिलिकॉन और लेटेक्स से बना एक कप 10 साल तक चल सकता है और यह विभिन्न मेन्स्ट्रूअल प्रोडक्टस की तुलना में कम खर्चीला और इको फ़्रेंडली भी है.
ये बजट फ्रेंडली है ये तो हमने जान लिया. लेकिन ये पैड्स की तुलना में इकोफ्रेंडली भी है. डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट
के मुताबिक, भारत में आमतौर पर मिलने वाले सैनिटरी पैड्स में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होता है. प्लास्टिक यानी पर्यावरण का दुश्मन. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल 1200 करोड़ से ज्यादा सैनिटरी नैप्किन इस्तेमाल होता है, लगभग 1.13 लाख टन कचरा और उसमें से 90 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा. अगर सैनिटरी नैप्किन की जगह महिलाएं मेंस्ट्रुअल कप इस्तेमाल करने लगेंगी तो ये कचरा काफी कम किया जा सकता है.