
Justice BV Nagarathna को साल 2008 में कर्नाटक हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त किया गया था. दो साल बात उनकी नियुक्ति स्थाई हो गई. (फोटो: कर्नाटक ज्युडिशरी)
वकील के तौर पर प्रैक्टिस करने के बाद 18 फरवरी, 2008 को जस्टिस बीवी नागरत्ना की नियुक्ति कर्नाटक हाई कोर्ट में हुई. शुरुआत में उन्हें एडिशनल जज के तौर पर नियुक्ति मिली. दो साल बाद यानी 17 फरवरी 2010 को उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का स्थाई जज बना दिया गया. इस पद पर नियुक्त होने के बाद उन्होंने कुछ जरूरी फैसले दिए. जस्टिस बीवी नागरत्न के फैसले # साल 2012 में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़ा एक फैसला सुनाया. उन्होंने मीडिया को नियंत्रित करने की बात कही. नियंत्रण की बात उन्होंने सनसनी फैलाने के संदर्भ में कही थी. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस नागरत्ना ने कहा,
"सूचना को सही तरीके से पेश करना किसी ब्रॉडकास्टिंग चैनल का जरूरी काम है, लेकिन ब्रेकिंग न्यूज और फ्लैश न्यूज के रूप में सनसनी फैलाने की कवायद पर रोक लगनी चाहिए."उन्होंने केंद्र सरकार से यह भी कहा कि ब्रॉडकास्ट मीडिया पर नियंत्रण करने के लिए एक ऑटोनॉमस संस्था का गठन किया जाना चाहिए. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया को नियंत्रित करने का मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि सरकार उसके लिए नियम कायदे तय करे.
# हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने साल 2019 में कर्नाटक के मंदिरों में काम करने वालों को लेकर एक फैसला सुनाया था. फैसले में उन्होंने कहा था,
कर्नाटक के मंदिर कोई व्यावसायिक संस्थान नहीं हैं. ऐसे में यहां काम करने वालों को ग्रेच्युटी पेमेंट एक्ट के तहत ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया जा सकता है. लेकिन कर्नाटक के मंदिरों में काम करने वाले कर्नाटक हिंदू रिलीजियस इंस्टीट्यूशंस एंड चैरिटेबल एंडाउमेंट एक्ट के तहत ग्रेच्युटी के हकदार होंगे. यह एक विशेष कानून है, जो मंदिर में काम करने वालों के संबंध में बनाया गया है.# जस्टिस नागरत्ना महिला और बच्चों से जुड़े मामलों में कड़ी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी हाल की एक कोर्ट हियरिंग में जस्टिस नागरत्ना ने कहा था,
'भारत का पितृसत्तात्मक समाज ये नहीं जानता है कि एक सशक्त महिला के साथ कैसे व्यवहार करें.'वहीं इस साल जुलाई में, एक और सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एच संजीव कुमार ने ऑब्जर्व किया था,
"अवैध माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन कभी भी बच्चा अवैध नहीं हो सकता है."जब वकीलों ने जस्टिस नागरत्ना को कमरे में बंद कर दिया था साल 2009 की बात है. हाईकोर्ट के एक जज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. कुछ वकील उनके खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. प्रदर्शनकारी वकीलों ने जस्टिस नागरत्ना और उनके दो साथी जजों को एक कोर्ट रूम में बंद कर दिया था. काफी देर बाद उन्हें बाहर निकलने दिया. बाहर आने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि वो वकीलों से गुस्सा नहीं हैं. हालांकि, जो कुछ भी हुआ है उसे लेकर उदास जरूर हैं. उन्होंने उस पूरे घटनाक्रम को शर्मसार करने वाला बताया था.