आप बिस्तर पर लेटे हैं. अचानक से उठे. आपको चक्कर आया. ऐसा लगा जैसे दुनिया गोल-गोल घूम गई. अब ऐसा अक्सर हममें से बहुत लोगों के साथ होता है. पर सोचिए अगर आपको दिनभर ऐसा महसूस होता हो जैसे चक्कर आ रहा है. बैलेंस बिगड़ रहा है. ऐसा ही कुछ दीक्षित के साथ होता है. 25 साल के हैं. नोएडा के रहने वाले हैं. उन्हें कई सालों से दिनभर में कई बार चक्कर जैसा महसूस होता था. चलते हुए, खड़े हुए उनका बैलेंस बिगड़ जाता था. जब भी वो बैठकर या लेटकर उठते तो कुछ सेकंड उन्हें नॉर्मल होने में लगते. क्योंकि काफ़ी देर तक उन्हें इस चक्कर का एहसास होता रहता. समय के साथ ये और बिगड़ता गया. उनको गाड़ी में बैठने पर दिक्कत होने लगी. जब गाड़ी चलती तो उनको चक्कर आता. किसी भी तरह का मूवमेंट वो झेल नहीं पा रहे थे. आख़िरकार उन्होंने डॉक्टर को दिखाया. पता चला उन्हें वर्टिगो की दिक्कत है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 15 प्रतिशत लोगों को ये प्रॉब्लम है. हिंदुस्तान में 180 मिलियन लोगों को लगातार चक्कर आना, बैलेंस बिगड़ जाने जैसी शिकायतें होती हैं.
अब अगर आपको बहुत ज़्यादा चक्कर आते हैं, बैलेंस बिगड़ा हुआ सा लगता है तो इसे इग्नोर न करें. इसे महज़ कमज़ोरी न समझें. जैसे दीक्षित ने समझा. हो सकता है आपको वर्टिगो की दिक्कत हो. दीक्षित चाहते हैं हम सेहत पर वर्टिगो के बारे में बात करें. ये क्या होता है, क्यों होता है, इसका इलाज क्या है, इसकी जानकारी डॉक्टर्स से लेकर आपको दें. हमने वही किया. तो सुनिए हमें क्या पता चला. वर्टिगो क्या होता है? ये हमें बताया डॉक्टर प्रवीण गुप्ता ने.

डॉक्टर प्रवीण गुप्ता, डायरेक्टर एंड हेड, न्यूरोलॉजी, फ़ोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम
-कोई हिलने को चक्कर बोलता है, कोई सिर घूमने को चक्कर बोलता है, कोई कमज़ोरी को भी चक्कर बोल सकता है.
-तो असल में वर्टिगो क्या है? वर्टिगो यानी अगर हम अपना सिर हिलाएं या न हिलाएं, हमारे आसपास की चीज़ें जैसे कमरा, छत घूमने से लगते हैं.
-इसमें हमारा बैलेंस बिगड़ सकता है.
-चलने पर शरीर लड़खड़ा सकता है.
-कान में आवाज़ आ सकती है.
-या सुनने में दिक्कत हो सकती है. कारण -वर्टिगो के दो मुख्य कारण हो सकते हैं.
-पहला. ये कान के इम्बैलेंस के कारण होता है. यानी कान की नस में वायरस का इन्फेक्शन हो जाए.
-कान में इन्फेक्शन हो जाए.
-कान की नस में जो सेल होते हैं, उनमें पानी भर जाए.

-जिसे मेनिएर रोग (Menier`s disease) कहते हैं.
-दूसरा कारण. ब्रेन में एक्यूट डैमेज हो जाए यानी ब्रेन को भारी नुकसान पहुंचे.
-ब्रेन की नर्व या उन हिस्सों को नुकसान पहुंचे जो चक्कर को कंट्रोल करते हैं जैसे सेरिबैलम और ब्रेन स्टेम.
-इन कारणों से वर्टिगो हो सकता है.
-जो कान से जुड़े कारण होते हैं वो असहज ज़रूर महसूस करवाते हैं पर सीरियस नहीं होते.
-पर ब्रेन से जुड़े कारण जैसे ट्यूमर और स्ट्रोक सीरियस कारण होते हैं.
-इनका तुरंत पता लगना बेहद ज़रूरी होता है,
-इससे पहले कि ये चीज़ें आपको नुकसान पहुंचा सकें. डायग्नोसिस -जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो पता किया जाता है कि आपका वर्टिगो कान के कारण है या ब्रेन के कारण.
-आमतौर पर पोजीशन बदलने से, करवट बदलने से या लेटने से वर्टिगो बढ़ता है तो ये कान के कारण है.
-ऐसा BPPV नाम की बीमारी के कारण होता है.
-अगर वर्टिगो के साथ शरीर के किसी हिस्से में सुन्न महसूस होना, कमज़ोरी, पैर का लड़खड़ाना, आवाज़ का तुतलाना, दिल में तेज़ दर्द होना जैसे लक्षण हों तो ये ब्रेन का वर्टिगो होता है
-ये बहुत सीरियस होता है.

-इसमें तुरंत MRI करवाने की ज़रूरत होती है. ऐसा एक्यूट वर्टिगो में होता है.
-कुछ लोगों को रह-रहकर वर्टिगो के अटैक आते हैं जो सालों चलते हैं.
-एक अटैक कभी 10 मिनट चल सकता है.
-कभी 10 दिन चल सकता है.
-2 दिन चल सकता है.
-अटैक कितना लंबा होता है, कितने दिन चलता है, इससे वर्टिगो के सीरियस और नॉन-सीरियस कारणों में अंतर किया जाता है.
-बहुत सारे लोगों को सिर में चक्कर की फीलिंग और भारीपन महसूस होता है.
-ये सालों-साल चलता है. 2-3 दिन रहता है फिर ठीक हो जाता है.
-ये असल में वर्टिगो नहीं है.
-ये वर्टिजनस माइग्रेन है, जो ब्रेन की एक बीमारी है.
-ये दवा लेने से ठीक हो जाती है. इलाज -वर्टिगो के लिए वेर्टिन, सिनार्ज़िन जैसी दवाइयां खाकर लोग सोचते हैं ये ठीक हो जाएगा.
-जब हम ये दवाइयां खाते हैं तो कुछ दिनों के लिए वर्टिगो दब जाता है.
-पर वो फिर वापस आ जाता है.

-क्योंकि वर्टिगो का सबसे आम कारण BPPV है, जो कान के अंदर पाए जाने वाले पार्टिकल के असंतुलन से होता है.
-उसको सेट करने के कुछ तरीके होते हैं.
-जिसमें सबसे आम है एप्लेस मनोवर.
-वर्टिगो की एक्सरसाइज भी करवाई जाती हैं.
-जब तक वो एक्सरसाइज नहीं करते, BPPV में वो पार्टिकल अपनी जगह पर सेट नहीं होते.
-इसलिए पूरा इलाज नहीं मिल पाता.
-कभी-कभी वर्टिगो हमारे बैलेंस को खराब कर देता है.
-वर्टिगो ठीक होने के बाद भी असंतुलन की भावना, चलने में डर, हाथ-पैर का लड़खड़ाना.
-ऐसा लगना कि शरीर हिल रहा है, ऐसे सेंसेशन महसूस होते हैं.
-इसे फ़ोबिक वर्टिगो कहा जाता है.
-इसे भी डायग्नोज़ करके ठीक किया जा सकता है.
-बहुत लोग जो वर्टिगो से ठीक होकर बाहर आते हैं, वो फ़ोबिक वर्टिगो के शिकार होते हैं.
-पर वो वर्टिगो का इलाज करवाते रहते हैं.
-वर्टिगो में सही डायग्नोसिस होना बेहद ज़रूरी है.
-सही डायग्नोसिस डॉक्टर आपकी बात सुनकर, समझकर, जांच करके कर पाते हैं.
-स्ट्रोक और ट्यूमर को छोड़ दें तो अधिकतर केसेस में MRI, CT-स्कैन या बाकी टेस्ट नॉर्मल आते हैं.
-एक इलेक्ट्रोनिस्टैग्मोग्राम नाम का टेस्ट होता है, जो वर्टिगो के मुश्किल केसेस को डायग्नोज़ करता है.
-एक बार वर्टिगो कितना सीरियस है, ये पता चल गया,
-यानी क्रोनिक वर्टिगो है या एक्यूट वर्टिगो है
-तब इसकी सही दवाई, सही समय पर, सही एक्सरसाइज करने से वर्टिगो को कंट्रोल किया जा सकता है.
-अगर स्ट्रोक या ट्यूमर है तो उसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए, क्योंकि ये ख़तरनाक हो सकता है.
जैसे कि डॉक्टर साहब ने बताया, ज़रूरी नहीं कि अगर आपको चक्कर आते हैं तो ये वर्टिगो के कारण ही हो. इसका सही डायग्नोसिस होना बेहद ज़रूरी है. इसलिए अगर आपको लक्षण दिख रहे हैं, तो उन्हें नज़रंदाज़ न करें. डॉक्टर को दिखाएं. सही जांच करवाएं. ताकि समय रहते कारण भी पता चल सके और इलाज हो सके.