“शिक्षा हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है और इस हक़ से उसे कभी भी वंचित नहीं किया जा सकता. शिक्षा इंसान को निडर बनाती है, एकता सिखाती है, उसे अधिकार का मतलब समझाती है और अधिकरा और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना सिखाती है.”
ये कहा था डॉ भीमराव आम्बेडकर ने. भारतीय संविधान के जनकपुरुष आम्बेडकर. आज, 14 अप्रैल है. यानी आम्बेडकर जयंती. आप सभी को बधाई. डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर, जिन्हें प्यार से बाबा साहब भी कहा जाता है. एक नामी स्कॉलर, नौकरशाह, क़ानूनविद, समाज सुधारक और राजनेता - जिन्होंने आज़ाद भारत के संविधान के निर्माण में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. और ये करते हुए वो किसी धारा के बंधक नहीं हुए. उन्होंने एक अलहदा और स्पष्ट लकीर खींची. लेकिन लक़ीर खींच दी जाए, और वैसी की वैसी मान ली जाए, तो क्या बात होती? आम्बेडकर के समानता और प्रतिनिधित्व के मूल्य संविधान में निहित हैं. फिर भी संविधान समाज में कितना है, इसके अप्रत्यक्ष और कभी-कभी प्रत्यक्ष सबूत आपको और हमें समय-समय पर मिलते रहते हैं.