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स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे की खबर आने के बाद BJP की मीटिंग में क्या हुआ?

बीच मीटिंग में बड़े OBC नेता के पार्टी छोड़ने की खबर ने कैसे पूरी प्लानिंग बदलवा दी

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जब स्वामी प्रसाद मौर्या ने इस्तीफा दिया तब दिल्ली में बीजेपी की मीटिंग चल रही थी (पहला फोटो: ट्विटर, दूसरा: पीटीआई )

मंगलवार 11 जनवरी को यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने अचानक कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इसके कुछ देर बाद ही वे समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिले. जिसके फोटो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए. मौर्या के इस्तीफे के कुछ देर बाद तीन विधायकों ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. ये तीनों विधायक स्वामी प्रसाद मौर्या के समर्थक हैं.
उत्तर प्रदेश की सियासत में जब यह उलटफेर हुआ, उस समय दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की एक बैठक चल रही थी. इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, यूपी बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह, बीजेपी महासचिव सुनील बंसल, बीएल संतोष, यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और सह प्रभारी अनुराग ठाकुर शामिल थे. इस मीटिंग में यूपी चुनाव के उम्मीदवारों और चुनावी रणनीति पर चर्चा चल रही थी. खबर आने के बाद बैठक में क्या हुआ? इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बैठक में चुनावी रणनीति पर चर्चा चल रही थी, तभी अचानक स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे की खबर आ गयी. इस खबर के आते ही मीटिंग में जारी चर्चा पर विराम लग गया, इस खबर ने कई घंटे चलने वाली इस मीटिंग की पूरी प्लानिंग ही अस्त-व्यस्त कर दी. मीटिंग में मौजूद बीजेपी नेताओं की घबराहट लाजमी थी क्योंकि मौर्या एक तो यूपी के बड़े ओबीसी चेहरा हैं और दूसरा उन्होंने जाते-जाते अपने साथ 15 और विधायकों को ले जाने की भी बात कह दी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक
मीटिंग में मौजूद बीजेपी नेताओं ने कहा कि मौर्या के चले जाने के बाद पार्टी को अब यूपी चुनाव की अपनी रणनीति पर फिर से काम करना होगा. और इस नई रणनीति को यह देखकर बनाया जाएगा कि स्वामी प्रसाद के जाने से ओबीसी वोटर्स के बीच क्या मैसेज गया है.
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(फोटो : अखिलेश यादव / ट्विटर)

यूपी चुनाव के पहले तीन फेज को लेकर यूपी बीजेपी ने उम्मीदवारों की एक सूची तैयार कर ली थी. इसमें हर निर्वाचन क्षेत्र से टिकट के अंतिम दो-तीन दावेदारों के नाम फाइनल कर दिए गए थे. लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद बदले समीकरणों के चलते पार्टी हाईकमान ने इस सूची को दोबारा रिव्यु करने का आदेश दिया है.
आजतक के कुमार अभिषेक के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्या सहित 4 विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी आलाकमान ने एक और बड़ा फैसला लिया. उसने प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को पार्टी से नाराज चल रहे नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी दी. अब यूपी बीजेपी के दोनों बड़े नेता पार्टी से नाराज नेताओं को बुलाकर उनकी मांगों और शिकायतों को सुनेंगे. फ़िलहाल बीजेपी ने कौन-सी रणनीति अपना ली है बीजेपी ने फिलहाल नई रणनीति के तौर पर स्वामी प्रसाद मौर्या के इस्तीफे को कमतर आंकना शुरू कर दिया है. बीजेपी नेता दावा कर रहे हैं कि मौर्या तो लंबे समय से पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे थे क्योंकि उनके बेटे को टिकट देने से मना कर दिया गया था, और इस वजह से वे बीजेपी से खासा नाराज थे. बीजेपी नेताओं के मुताबिक इस वजह से ही उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य ने संसद में बीजेपी के रुख से अलग ओबीसी जनगणना की मांग का समर्थन किया था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "मौर्या का जाना कोई चौंकाने वाली घटना नहीं है...यह खबर केवल एक दिन की सनसनी है, इसके बाद सब खत्म हो जाएगा.'' एक अन्य बीजेपी नेता का कहना था कि मौर्या के जाने से कोई बड़ा डैमेज नहीं होगा, पार्टी संभाल लेगी, रायबरेली, बदायूं और कुशीनगर इलाकों में बीजेपी के कुर्मी/मौर्य जनाधार पर असर पड़ सकता है. लेकिन, ज्यादा नुकसान नहीं होगा क्योंकि बीजेपी के पास केशव प्रसाद मौर्य जैसे बड़े नेता हैं. स्वामी प्रसाद या केशव प्रसाद - कौन मौर्य/कुशवाहा वोटों का असल वारिस करीब दो-तीन दशक से स्वामी प्रसाद मौर्या उत्तर प्रदेश में मौर्य-कुशवाहा बिरादरी के स्थापित नेता बने हुए हैं. बसपा प्रमुख मायावती ने उनके जरिए मौर्य-कुशवाहा समाज के लोगों को पार्टी से जोड़ा था. इसके चलते स्वामी प्रसाद को बसपा में प्रदेश अध्यक्ष पद से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया गया. इतना ही नहीं 1996 के बाद से स्वामी प्रसाद मौर्या लगातार यूपी की सियासत में बड़े ओहदे पर रहे, जिसके जरिए वे अपने समाज के बीच अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे. मौर्य समाज पर उनकी पकड़ का नतीजा है कि वे रहने वाले तो प्रतापगढ़ के हैं, लेकिन चुनाव वो रायबरेली से भी जीत गए और अब पूर्वांचल के कुशीनगर को कर्मभूमि बना रखा है. इतना ही नहीं, उनकी बेटी रुहेलखंड के बदायूं से सांसद हैं. इसके अलावा उनके कई करीबी मौर्य नेता यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों से विधायक रहे हैं. बसपा में रहते हुए स्वामी प्रसाद ने अपने करीबी नेताओं को खूब फायदा भी पहुंचाया था.
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केशव प्रसाद मौर्य की फाइल फोटो.

उधर, केशव प्रसाद मौर्य को सियासत में आए अभी एक दशक ही हुआ है. उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति से अपना सियासी सफर शुरू किया था. 2012 में पहली बार वे बीजेपी से विधायक बने और दो साल के बाद ही 2014 में लोकसभा सांसद चुन लिए गए. हालांकि, केशव प्रसाद का राजनीतिक कद बीजेपी के यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बढ़ा. 2017 में डिप्टी सीएम बनने के बाद उनकी यूपी में सियासी तूती बोलने लगी, उनकी और स्वामी प्रसाद मौर्या की जोड़ी के चलते ही मौर्य-कुशवाहा समाज ने एकतरफा बीजेपी को वोट दिया. ऐसे में केशव प्रसाद मौर्या की असल परीक्षा तो अब स्वामी प्रसाद के पार्टी छोड़ने के बाद शुरू होगी. यूपी में मौर्य-कुशवाहा वोटों की ताकत उत्तर प्रदेश में यादव और कुर्मी के बाद ओबीसी में तीसरा सबसे बड़ा जाति समूह मौर्य समाज का है. यह समाज मौर्य के साथ-साथ शाक्य, सैनी, कुशवाहा, कोरी, काछी के नाम से भी जाना जाता है. यूपी में करीब 6 फीसदी मौर्य-कुशवाहा की आबादी है, लेकिन करीब 15 जिलों में इनकी आबादी 15 फीसदी के आसपास है.