जन्म हुआ कोलार में जहां सोने की खदान थी
बेजवाड़ा विल्सन एक एक्टिविस्ट हैं और भारत में 'सफाई कर्मचारी आन्दोलन' के अगुआ हैं. ये आन्दोलन उस प्रथा के खिलाफ है, जिसमें कुछ लोग सिर्फ अपनी 'जाति' के चलते पीढ़ियों से 'हाथ से उठाकर दूसरों का मल फेंकने का काम' करते हैं. इनका संगठन देश के 500 जिलों में फैला है. 7000 लोग इसके मेम्बर हैं. भारत में कुल 6 लाख लोग इस गंदी प्रथा के हिस्सा थे. इस संगठन ने इसमें से 3 लाख लोगों को इस काम से मुक्त करा लिया है.'मुक्त कराना' इसलिए महत्त्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि वो लोग इतने मजबूर होते हैं कि दुनिया में उन्हें अपने लायक कोई जगह और काम नहीं मिलता. समाज का उनके प्रति घिनौना रवैया उन्हें जिंदगी फिर से शुरू करने का मौका नहीं देता. ये वही रवैया है जो ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को भीख मांगने और छीना-झपटी करने के लिए मजबूर कर देता है. अगर हम ऐसे लोगों की जगह पर खुद को रख के देखें तो शायद अहसास हो कि इन फंसे लोगों को जिन्दगी में क्या झेलना पड़ता है. जहां चाहकर भी ये कुछ नहीं कर सकते. और जीने के लिए वही गलीज भरा काम करना पड़ता है.

ये काम बहुत ही अजीब है, जिसे करना तो दूर लोग देख भी नहीं पाएंगे
जन्म के बाद पता चला कि जिंदगी भर दूसरों की टट्टी फेंकनी है, पर इरादे थे कुछ और
विल्सन का जन्म इसी समुदाय के घर में हुआ था. कर्नाटक के कोलार में. जहां एक वक़्त सोने की खान हुआ करती थी. विल्सन ने जब अपने मां-बाप को दूसरों के घर में टट्टी साफ़ करते और सर पर ढोकर फेंकते देखा, तो इनके दिमाग की नसें फट गयीं. खूब रोये. और 17 साल की उम्र में विल्सन ने तय कर लिया कि ये तो नहीं होने देंगे. किसी के साथ.ड्राई लैट्रिन ऐसे टॉयलेट होते हैं, जो फ्लश नहीं किए जाते. ज्यादातर घरों में ऐसे टॉयलेट बदल दिए गए हैं. पर अभी भी बहुत सारे राज्यों में दूर की जगहों पर यही टॉयलेट हैं. जहां भारत का विकास नहीं पहुंचा है. जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु. 1993 में एक कानून बना था कि ऐसे सारे लैट्रिन तोड़ दिए जाएं. और लोगों के द्वारा साफ़ करने की ये प्रथा ख़त्म कर दी जाये.

ड्राई लैट्रिन
इसमें एक और बात है. ऐसे सारे टॉयलेट 'ऊपरी जाति' के घरों में हैं. और 'दलित' समुदाय के लोगों पर इन्हें साफ़ करने की जिम्मेदारी है. पर इस जिम्मेदारी के पैसे भी ढंग के नहीं मिलते. करने वाले इसलिए करते हैं कि बाप-दादाओं की यही जागीर है. इसी समुदाय को आजकल 'वाल्मीकि समुदाय' कहा जा रहा है. और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी समुदाय के मोहल्ले से 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत की थी.

कहा ना, देखना भी मुश्किल है
विल्सन ने इसके लिए 1986 से ही कैंपेन शुरू किया था. इस कैंपेन के दो उद्देश्य थे: एक कि इन लोगों के मन में ये बिठाना कि सिर्फ यही काम करने के लिए पैदा नहीं हुए हो. और दूसरा कि चलो, हम तुमको कोई और काम दिलवाते हैं. इस कैंपेन में 'झाड़ू और बाल्टी' को जलाया गया था. प्रतीक के तौर पर. इसी दौरान आंध्र प्रदेश में एक अजीब वाकया हुआ. एक जगह ड्राई लैट्रिन तोड़े गए. पता चला कि इसे उस जिले के जज इस्तेमाल करते थे.
ये भी पाया गया कि साफ़ करने वालों को घर के बर्तन तो दूर, दीवारों को भी 'टच' कर जाने से बचाया जाता है. लोग उनसे दूर ही रहते हैं. नाक बंद कर के बात करते हैं. बात कर लेने के बाद घिन से थूकते हैं. उनके सामने पानी भी नहीं पीते. पिलाने की तो बात ही नहीं है.

सफाई कर्मचारी आन्दोलन, 2010
1994 में विल्सन ने एस आर शंकरन और पॉल दिवाकर के साथ मिलकर सफाई कर्मचारी आन्दोलन शुरू किया. पहले ये कर्नाटक से शुरू हुआ. फिर ये लोग दिल्ली आ गए. सुप्रीम कोर्ट में एक PIL डाली गई. रेलवे, डिफेन्स, जुडीशियरी सबका नाम इस मामले में जोड़ा गया. तब जा के सारे राज्यों और केंद्र ने इस मुद्दे को स्वीकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर निकाला कि इस केस की सुनवाई के दौरान हर राज्य का चीफ सेक्रेटरी और केंद्र के हर डिपार्टमेंट का चीफ मौजूद रहेगा. 2010 में बारहवीं पंचवर्षीय योजना बनाए जाने के दौरान इस मुद्दे को गंभीरता से लिया गया. 2012 में विल्सन आमिर खान के शो 'सत्यमेव जयते' में भी आये थे.
पर अभी भी देश से ये कुप्रथा ख़त्म नहीं हुई है. विल्सन कहते हैं: 'हर चीज गड्ड-मड्ड है. लोग कहते हैं कि हम लोग गंदे हैं. किसने गन्दा बनाया है हमें? वो लोग हगते हैं, हम साफ़ करते हैं. हजारों साल से यही चल रहा है. पर अब हम लोग चिल्लायेंगे, हम गंदे नहीं हैं.'