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भारत का सबसे जिद्दी चुनाव उम्मीदवार, 238 बार हारा, 239वें की तैयारी है!

इलेक्शन किंग की कहानी. अटल बिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी, मनमोहन सिंह किसी को नहीं छोड़ा के पद्मराजन ने. सबको टक्कर दे चुके हैं.

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इलेक्शन किंग का नाम लिमका बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी है. (फ़ोटो - AFP)

‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ – कवि अटल जी कहते थे. इंटरनेट पर हार न मानने वाली ‘शायरी’ और मोटिवेशनल वीडियो की भरमार है. दुनिया भर में मोटिवेशन मिल रहा है, बस कोई ले नहीं रहा. तमिलनाडु के के पद्मराजन ने ली. और दाव खेला कहां? भारतीय लोकतंत्र में. राज्य के मेट्टूर में उनकी टायर मरम्मत की दुकान है. 65 साल के हैं और कुल 238 चुनाव लड़ चुके हैं, और 238 चुनाव हार चुके हैं. अपने दाव में बारहा असफल होने के बावजूद, वो बेफिक्र हैं और आने वाला लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

साल 1988 में के पद्मराजन ने चुनाव लड़ना शुरू किया था. जब उन्होंने ऐसा किया तो लोग उन पर हंसे. आज भी हंसते हैं. लेकिन उनका कहना है कि वो ये साबित करना चाहते थे कि एक सामान्य आदमी भी चुनाव लड़ सकता है.

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इसी जुगत में हमारे ‘इलेक्शन किंग’ प्रधानी से लेकर सांसदी तक, सारे चुनाव लड़े हैं. और बीते सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व-प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, तक सबसे हार चुके हैं. इस साल वो तमिलनाडु के धर्मपुरी ज़िले की एक संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

अपने कंधे पर चमकीला शॉल लपेटे हुए और जानदार मूंछों पर ताव देते हुए वो कहते हैं,

"सब चुनाव में जीतना चाहते हैं. मैं नहीं… सामने कौन खड़ा है मैं इसकी परवाह नहीं करता."

उनके लिए जीत केवल इतनी है कि वो भाग ले रहे हैं, और अब तो वो हारकर ख़ुश भी हो लेते हैं. यहां तक कहते हैं कि अगर कभी ग़लती से जीत गए, तो उन्हें दिल का दौरा पड़ सकता है.

अपनी टायर मरम्मत की दुकान के अलावा पद्मराजन होम्योपैथिक डॉक्टर भी हैं और स्थानीय मीडिया के लिए एक संपादक के तौर पर भी काम करते हैं. हालांकि, उनका कहना है कि उनके सारे कामों में चुनाव लड़ना उनके लिए सबसे ज़रूरी है और वो आख़िरी सांस तक चुनाव लड़ेंगे.

हालांकि, ये शगल सस्ता नहीं है. उनका अनुमान है कि उन्होंने नामांकन शुल्क पर तीन दशकों से अधिक समय में लाखों रुपये खर्च दिए हैं. जैसे आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उन्होंने ₹25,000 की जमा किए हैं, जो तब तक वापस नहीं किया जाएगा जब तक कि वो 16% से ज़्यादा वोट नहीं जीत लेते.

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के पद्मराजन का नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है. भारत के सबसे असफल उम्मीदवार के रूप में. मगर वो अपनी हर हार का चिह्न रखते हैं. नामांकन पत्र से लेकर सिंबल तक.

उनका मानना है कि अब ये पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि देश का हर नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करे.

भले ही ये ख़बर आपने हंसी-मज़ाक में पढ़ी. मगर उनका बस ये सोचना कि एक साधारण आदमी भी चुनाव लड़ सकता है और लड़ता रह सकता है, ये एक जगे हुए नागरिक और लोकतंत्र का प्रतीक है.