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मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी से रातभर हुई पूछताछ, हाई कोर्ट ने ED को 'सोने के अधिकार' पर सुना डाला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि 'सोने या झपकी लेने का अधिकार' एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है. इसे प्रदान न करना किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

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बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसकी कथित सहमति के बावजूद आधी रात के बाद इंतजार कराने के बजाय किसी और दिन या अगले दिन भी बुलाया जा सकता था. (फोटो- इंडिया टुडे/AI)

Right to sleep यानी ‘सोने के अधिकार’ को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक वरिष्ठ नागरिक से रात भर पूछताछ करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ED) की निंदा की. साथ ही कहा कि सोने का अधिकार एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है जिसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता.

बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि बयान दिन में रिकॉर्ड किए जाने चाहिए. बेंच का मानना था कि बयान रात में नहीं लिए जाने चाहिए, क्योंकि उस वक्त किसी व्यक्ति की मानसिक क्षमता पर असर पड़ सकता है.

इंडियन एक्सप्रेस में PTI के हवाले से छपी खबर के मुताबिक बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच 64 साल के राम इसरानी द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसरानी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जांच एजेंसी द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने के लिए कोर्ट में याचिका डाली थी. ED ने पिछले साल अगस्त महीने में इसरानी को गिरफ्तार किया था. याचिका में इसरानी ने दावा किया था कि उनकी गिरफ्तारी अवैध और अनुचित थी. उनका मानना है कि वो जांच में सहयोग कर रहे थे और एजेंसी के सामने उपस्थित भी हुए थे.

याचिका में कहा गया था कि 7 अगस्त, 2023 को इसरानी जारी किए गए समन के अनुसार एजेंसी के सामने पेश हुए थे. उनसे पूरी रात पूछताछ की गई और अगले दिन उन्हें मामले में गिरफ्तार कर लिया गया.

कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए इसरानी की याचिका को तो खारिज कर दिया. लेकिन कहा कि वो याचिकाकर्ता से रात भर पूछताछ करने की प्रथा को अस्वीकार करता है. इस पर जांच एजेंसी की तरफ से पेश हुए वकील हितेन वेनेगांवकर ने कोर्ट को बताया कि इसरानी ने रात में अपना बयान दर्ज करने के लिए सहमति दी थी. हालांकि कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना.

इसरानी की याचिका के अनुसार ED के अधिकारियों ने उनसे सुबह 3 बजे तक पूछताछ की थी. जिस पर कोर्ट ने कहा,

पूछताछ स्वैच्छिक हो या अन्यथा हो, हम उस तरीके की निंदा करते हैं जिस तरह से इतनी देर रात में याचिकाकर्ता का बयान दर्ज किया गया, जो रात साढ़े 3 बजे तक चला.

कोर्ट ने कहा कि 'सोने या झपकी लेने का अधिकार' एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है. इससे वंचित करना किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि नींद की कमी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. वो उसकी मानसिक क्षमताओं को भी खराब कर सकती है.

बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसकी कथित सहमति के बावजूद आधी रात के बाद इंतजार कराने के बजाय किसी और दिन या अगले दिन भी बुलाया जा सकता था. नींद को लेकर कोर्ट ने कहा,

सहमति का कोई मतलब नहीं. रात के समय में बयान दर्ज करने से निश्चित रूप से किसी व्यक्ति की नींद पर असर पड़ता है. जो कि एक व्यक्ति का बुनियादी मानवाधिकार है. हम इस प्रथा को अस्वीकार करते हैं.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंत में कहा कि ED को समन जारी करने से पहले पूछताछ के लिए समय की जानकारी देते हुए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए. मामले की अगली सुनवाई कोर्ट 9 सितंबर को करेगी.

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